Chhath 2021: भगवान भास्कर को अघ्र्य दे मांगी सुख समृद्धि, अधिकतर व्रतियों ने घर की छतों पर किया छठ

Chhath 2021 चार दिवसीय छठ पर्व सोमवार को उगते सूर्य को अघ्र्य देने के साथ संपन्‍न हो गया। इस दोरान लोगों ने भगवान भास्‍कर से सुख समृदि की कामना की। कोरोना के कारण ज्‍यादातर लोगाें नेेअपने घरों में ही पूजा की।

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Mon, 19 Apr 2021 09:52 AM (IST) Updated:Mon, 19 Apr 2021 09:52 AM (IST)
Chhath 2021: भगवान भास्कर को अघ्र्य दे मांगी सुख समृद्धि, अधिकतर व्रतियों ने घर की छतों पर किया छठ
Chhath 2021: चार दिवसीय छठ पर्व सोमवार को उगते सूर्य को अघ्र्य देने के साथ संपन्‍न हो गया।

संवाद सहयोगी, भागलपुर। लोक आस्था के महापर्व चैती छठ के तीसरे दिन रविवार को व्रतियों ने भगवान भास्कर को सायंकालीन अघ्र्य दिया। चार दिवसीय इस अनुष्ठान के अंतिम दिन सोमवार को व्रती सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य अर्पित करेंगे। इसी के साथ छठ का समापन हो जाएगा।

बरारी पुल घाट पर इसके लिए सुबह साफ-सफाई कर घाट बनाया गया था। पुल घाट छठ समिति के अध्यक्ष नवीन ङ्क्षसह कुशवाहा व सचिन ठाकुर ने बताया कि कोरोना के कारण इस बार बहुत कम व्रती घाट पहुंचे थे। अधिकांश लोगों ने अपने-अपने घरों की छत पर अघ्र्य दिया। उधर, व्रतियों ने अपनी-अपनी छतों पर टब व आंगन में गड्ढे बनाकर भगवान भास्कर को अघ्र्य दिया। इंग्लिश गांव के मुखिया रामवरण यादव, भागवत चौबे, गौतम कुमार, दिनेश यादव, चंदा देवी आदि ने बताया कि गांव के दर्जनों लोगों ने गंगा के किनारे छठ का पहला अघ्र्य दिया।

वहीं, ज्योतिर्विद पं. सचिन कुमार दूबे ने बताया कि सोमवार को सूर्य उदय की तिथि प्रात:कालीन 5.38 है। इसी समय दूसरा अर्थ दिया जाएगा। अगले दिन यानी सोमवार को उगते सूर्य को प्रात:कालीन अघ्र्य देने के साथ छठ पर्व का समापन होगा। सूर्यदेव को संध्या अघ्र्य कार्तिक शुक्ल की षष्ठी के दिन दिया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार षष्ठी यानी छठ पूजा के तीसरे दिन शाम के वक्त सूर्यदेव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसीलिए संध्या अघ्र्य देने से प्रत्यूषा को अघ्र्य प्राप्त होता है। मान्यता यह भी है कि संध्या अघ्र्य देने और सूर्य की पूजा-अर्चना करने से जीवन में तेज बना रहता है और यश, धन और वैभव की प्राप्ति होती है।

पर्व को लेकर व्रतियों में उत्साह है और घरों में उगऽ हे सूरुजदेव अरघ के बेरिया..., दर्शन देहू न अपार हे दीनानाथ..., मरबो रे सुगवा धनुष से..., कांचहि बांस के बहंगिया..: जैसे लोकगीतों की गूंज से माहौल भक्तिमय हो गया है।  

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