बाल विवाह का किया विरोध, खुद किया विरोध, दूसरों का भी बनी सहारा
बांका के शंभूगंज की ललिता ने खुद की शादी का इसलिए विरोध किया कि वह पढ़ना चाहती थी। इतना ही नहीं जिस समय उसकी शादी हो रही थी वह नाबालिग थी। आज ललिता बाल विवाह का अपने साथियों के साथ मिलकर विरोध कर रही है।
बांका [राहुल कुमार]। शंभूगंज के कसबा की ललिता कुमारी बाल विवाह के खिलाफ एक सशक्त आवाज बनकर उभरी है। उसने खुद का बाल विवाह रुकवाया और दूसरे लोगों को भी इसके लिए जागरूक किया। आज वह अपनी सखियों के साथ बाल विवाह के खिलाफ अभियान चला रही है। अब गांव में बाल विवाह नहीं होता है।
गरीब परिवार की ललिता धौनी विद्यालय में नवमी कक्षा में पढ़ रही है। वह बालिका छात्रावास में रहती है। दो साल पहले स्वजनों ने उसकी शादी तय कर दी थी। उस समय वह सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी। घर में छेंका की तैयारी की जा रही थी। कई उपहार भी उसके पिता खरीदकर ले आए थे। ललिता बिना पढ़ाई पूरी किए शादी नहीं करना चाहती थी। उसने विद्यालय में बाल संसद की प्रधानमंत्री रोजी को यह बात बढ़ाई। बात शिक्षक और इसके बाद शिक्षा विभाग के अधिकारी तक पहुंची। सबने मिलकर ललिता के अभिभावकों से बात की और वह बालिका वधू बनने से बच गई। इसके बाद ललिता ने राजनंदिनी, रोजी, सपना और राजलक्ष्मी के साथ मिलकर बाल-विवाह के खिलाफ अभियान शुरू किया। इन सभी लड़कियों ने अपने परिवार को समझाकर अपना बाल-विवाह रुकवाया है। घर में शादी का चर्चा हुई, तो इन्होंने खुलकर अपनी बात रखी। कसबा मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक अशोक कुमार ने बताया कि दो साल पहले ललिता की शादी रुकने के बाद गांव में कोई बाल-विवाह नहीं हुआ है। लड़कियों के साथ उसके अभिभावक भी अब जागरूक हुए हैं। किसी घर में बाल-विवाह की सूचना पर ललिता की टीम सक्रिय हो जाती है।
ललिता के साहस से पूरा जिला गौरवान्वित हुआ है। मुख्यमंत्री से भी उसे सम्मान मिल चुका है। प्रशासन ने नवमी में उसका नामांकन करवाकर उसे छात्रावास की सुविधा प्रदान की है। उसके सपनों को पूरा करने के लिए प्रशासन सजग है। - निशीथ प्रणीत सिंह, डीपीओ, समग्र शिक्षा