विदेश में भागलपुर के हैंडलूम बुनकरों की धमक

रेशमी शहर के हैंडलूम बुनकरों ने विदेशी बाजार में भी अपनी धमक बरकरार रखी है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 07 Aug 2020 06:42 AM (IST) Updated:Fri, 07 Aug 2020 06:42 AM (IST)
विदेश में भागलपुर के हैंडलूम बुनकरों की धमक
विदेश में भागलपुर के हैंडलूम बुनकरों की धमक

भागलपुर। रेशमी शहर के हैंडलूम बुनकरों ने विदेशी बाजार में भी अपनी धमक बरकरार रखी है। आधुनिक दौर में भी छह दशकों से हैंडलूम पर तैयार कपड़ों की आपूर्ति जारी है। विदेशी बाजार में हथकरघा पर निर्मित रेशमी कपड़ों को खूब पसंद किया जाता है। जिले के 2400 बुनकर भी इसका फायदा उठा रहे हैं। रेशम धागे से तैयार कपड़ों की दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा व इंग्लैंड आदि देशों में काफी मांग है। वॉल फर्निशिंग से लेकर सोफा कवर तक में इस्तेमाल

विदेश में पर्दा, सोफा कवर, कुशन कवर, वॉल फर्निशिंग के साथ ड्रेस मैटेरियल में यहां के रेशमी कपड़ों का इस्तेमाल होता है। मटका सिल्क, तसर, नूयाल, घिच्चा, केला रेशम, सूती व लिलेन धागों के साथ बिस्कोस का इस्तेमाल होता है।

मोटे धागे से कपड़ा बनाने में महारथ

रेशमी शहर के बुनकरों का हुनर भी बेमिसाल है। ये डिजाइन देखकर इसे हैंडलूम पर उतार देते हैं। कपड़ा चाहे रेशम का हो या सूती धागे का। नयाटोला, हुसैनाबाद के बुनकरों को किसी डिजाइनर की आवश्यकता नहीं है। मोटे धागे से फर्निशिंग का कपड़ा भागलपुर के बुनकर ही तैयार कर पाते हैं। जिले में 1989 से पहले 15 हजार के करीब हैंडलूम बुनकर हुआ करते थे। अब 2400 बुनकर ही बचे हैं। 1963 से मिलने लगा था ऑर्डर

: नयाटोला, हुसैनाबाद के बुनकर जयाउद्दीन ने बताया कि अमेरिका से फर्निशिंग के लिए रेशम के कपड़े का आर्डर 1963 से मिलने लगा था। तब 500 मीटर कपड़ा तैयार कर दिया गया था। उस समय अन्य देशों से भी काफी ऑर्डर मिला। मिलावटी धागों से पड़ा असर

1989 से पहले तक सिल्क का कारोबार काफी अच्छा हुआ करता था। इस धंधे से नए लोग जुड़े और हैंडलूम भी लगाया। अधिक फायदे के लिए रेशम कपड़ों की गुणवत्ता के साथ व्यापारियों ने छेड़छाड़ शुरू कर दी, क्योंकि भारत में तैयार कपड़ा चीन के मुकाबले मंहगा पड़ने लगा। व्यापारियों ने सिल्क में बिस्कोस व सूती धागों की मिलावट शुरू कर दी। इससे धंधे पर असर पड़ा। उस दौर में जहां बुनकर पूरे साल काम किया करते थे, वहीं अब चार माह भी काम नहीं मिलता है।

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:- बुनकरों की राय

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पूर्वजों के पुश्तैनी धंधे को हुसैनाबाद के लोगों ने संभाल कर रखा है। कम कमाई की वजह से नई पीढ़ी ने कार्य छोड़ दिया। इसे बचाने के लिए सरकार को प्रयास करना चाहिए।

- गुलाम कादिर

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विदेशी बाजार में रेशमी कपड़ों की मांग है। हमलोगों के पास पूंजी व बाजार की व्यवस्था के साथ व्यापारियों से संपर्क भी नहीं है। यह मिल जाए तो बुनकरों का धंधा चल पड़ेगा।

- नौशाद अंसारी

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दो दशक पहले पूरे साल बुनकरों को काम मिल जाता था। धीेरे-धीरे इस मांग में कमी होने लगी। अब तो एक वर्ष में चार माह ही काम मिल पाता है। इतने कम काम से परिवार के भरण-पोषण में परेशानी आ रही है।

- जियाउद्दीन अंसारी

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बुनकरों के हुनर ने भागलपुर को रेशमी शहर का दर्जा दिलाया। इसका फायदा बुनकरों को नहीं मिला। वे व्यापारी की कथपुतली बनकर रह गए है। आर्डर पूरा करने के छह माह बाद तक भी व्यापारी बकाया राशि नहीं देते।

- इम्तियाज

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