पानी के बीच कोई प्यासा कैसे रह सकता है, आप भागलपुर आएं... आपका यह भ्रम दूर हो जाएगा
Flood in Bhagalpur गंगा तट पर स्थित भागलपुर की स्थति काफी विकराल हो गई है। गंगा का जलस्तर काफी बढ़ रहा है। चोरों ओर बाढ़ है। बाढ़ पीड़ितों को काफी समस्याएं हो रही है। हर ओर ही पानी ही पानी है। इसके बावजूद लोग जल के लिए तरस रहे हैं।
भागलपुर [ललन तिवारी]। Flood in Bhagalpur: भागलपुर जिला बाढ़ से घिर गया है। हर ओर पानी ही पानी है। लोगों की जिंदगी पानी के बीच कट रही है। इस बीच लोग पानी से प्यासे तड़प रहे हैं। पानी के बीच रहकर भी पानी के तड़प लोगों में देखी जा रही है। केंद्रीय जल आयोग के रिपोर्ट के अनुसार बुधवार को दोपहर से गंगा के बढ़ रहे जलस्तर में विराम लग गया। जलस्तर स्थिर हो गया है। पूर्वानुमान की बात करें तो जलस्तर घटने के संकेत मिल रहे हैं। बताया गया कि शाम से जलस्तर में कमी आना शुरू हो जाएगा।
उधर जल प्रलय में सबौर के बाढ़ पीड़ितों के हाल बेहाल हैं। पानी में रहकर प्यास से छटपटा रहे हैं। जिंदगी के जिल्लत का आलम यह हो गया है की पानी में ही शौचालय करना है और फिर उसी पानी से स्नान और घरेलू उपयोग करना है। हद तो तब हो गई जब गांव में रह रहे बाढ़ पीड़ित को पीने का पानी तक मयस्सर नहीं हो पा रहा है। चार से पांच फीट पानी में लंबी दूरी तय कर महिलाएं अपने बच्चों और परिवार के पीने का पानी लाने की जद्दोजहद में लगी रहती हैं।
जीवन भर एक एक पाई जमा कर आशियाना बनाया गया और उसे खून और पसीने की मेहनत से सजाया गया। उस आशियाने को छोड़कर बाढ़ पीड़ित शिविर में नहीं जाना चाहते। घर के सामान को जोगने और सुरक्षित रखने के लिए अपनी जिंदगी दाव पर लगा दिए हैं। फरका, घोषपुर, इंग्लिश, रजंदीपुर, बाबूपुर, संतनगर, बगडेर, मसाढु, शंकरपुर, अठगामा गांव में चार से पांच फीट तक बाढ़ के पानी का बहाव है। घर-घर में बाढ़ ने पूर्णरूपेण पांव पसार दिया है। उसके बावजूद ग्रामीण अपने अपने घरों में ही रहकर पानी घटने का इंतजार कर रहे हैं।
सरकारी व्यवस्था की बात करें तो आवागमन के लिए नाव तक उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। भोजन की बात तो दूर लोगों को शुद्ध पेयजल की भी उपलब्धता नहीं कराई जा सकी है। बच्चे दूध के अभाव में भूख से बिलबिला रहे हैं। नौनिहालों की मां बस बच्चे को बहला रही है। लेकिन क्षुधा की आग के आगे मां का प्रयास भी विफल हो जा रहा है। अर्थात यूं कहें की सबौर में बाढ़ पीड़ित भगवान भरोसे जिंदा हैं। ऐसा नहीं की सरकारी खर्च आपदा के नाम पर नहीं हो रहा है, बल्कि खर्च के बावजूद लाभुकों तक उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।