Bihar BJP Politics: किसे बैलेंस करने के लिए वापस बिहार की संगठनात्मक राजनीति में उतारे गए अश्विनी कुमार चौबे
भागलपुर से गहरा लगाव रखने वाले बक्सर के सांसद केंद्रीय राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे का कद एक बार फिर बिहार में बढ़ गया है। भाजपा की चुनाव कमेटी में बिहार में उन्हें जगह दी गई है। बिहार भाजपा में अश्विनी कुमार चौबे की मजबूत वापसी के क्या मायने हैं।
भागलपुर [शंकर दयाल मिश्रा]। शुक्रवार सुबह सूचना आई। बाबा (केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे) को बिहार भाजपा की चुनाव कमेटी में पार्टी नेतृत्व ने स्थान दिया है। उन्हें पार्टी ने प्रदेश कोर कमेटी का सदस्य भी बनाए रखा है। पार्टी की ओर से जारी सूची में और भी नेताओं के नाम हैं लेकिन चौबे को प्रदेश चुनाव कमेटी में लाए जाने के मायने निकाले जा रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि किसी को बैलेंस करने के लिए पार्टी ने उन्हें वापस भेजा है।
यह चौबे की बिहार भाजपा की राजनीति में यह मजबूत वापसी मानी जा रही है। 2014 में बक्सर का सांसद बनने से पहले वे बिहार भाजपा की राजनीति में ही सक्रिय रहे थे। 2014 से पहले वे भागलपुर की चुनावी राजनीति में करीब दो दशक अजेय रहे थे। 2014 में केंद्रीय राजनीति में जाने के बाद बिहार की राजनीति में उनकी दखल धीरे-धीरे कमजोर हुई। इतनी कमजोर कि 2020 के विधानसभा चुनाव में वे भागलपुर से अपने बेटे अर्जित चौबे को पार्टी का टिकट तक नहीं दिला सके। कहा गया कि प्रदेश स्तर से ही अर्जित का नाम कटा। तब पार्टी ने तब ग्रास रूट लेबल से जुड़े अपने जिलाध्यक्ष रोहित पांडेय को उम्मीदवार बना दिया। जबकि, 2015 के चुनाव में पार्टी की वंशवाद विरोधी नीति के बावजूद अपने बेटे को भागलपुर विधानसभा सीट से पार्टी का उम्मीदवार बना ही दिया था। ऐसे में चौबे की चुनाव कमेटी में वापसी से भागलपुर में भाजपा हलचल मच गई है। इस घोषणा के अगले दिन यानी शनिवार को चौबे सशरीर भागलपुर में होंगे भी। ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि बक्सर की राजनीति में अब चौबे की दखल कैसी रहेगी? इस संदर्भ उनका उम्र पता किया जाने लगा है कि कहीं 2024 में वे चुनाव लड़ने के लिए पार्टी की ओर से तय उम्र सीमा पार तो नहीं कर रहे...।
प्रत्यक्ष नजरिए से देखें तो चौबे का गृहजिला भागलपुर है और बक्सर जाने से पहले वे लगातार चार बार भागलपुर के विधायक रहे। यानी बिहार की राजनीति में रहते हुए भागलपुर उनका गृह और कर्मक्षेत्र दोनों रहा। 2014 के बाद उनका कर्मक्षेत्र और राजनीतिक दायरा बदला। चौबे अभी दूसरी बार बक्सर के सांसद हैं। इस आधार पर कह सकते हैं कि वहां उनकी जमीन मजबूत है। हालांकि उनके विरोधी यह कह देते हैं कि विधानसभा चुनाव में उनका प्रत्याशी बक्सर सीट बचा तक नहीं पाया था। भागलपुर की बात करें तो तथ्य यह कि चौबे के जाने के बाद हुए उपचुनाव और दो नियमित चुनावों में पार्टी के उम्मीदवार हारते रहे। पार्टी ने हर चुनाव में चेहरा बदला पर वे इस परंपरागत और स्योर सीट को बचा नहीं पाए। ऐसे में उनकी वापसी को आगामी विधानसभा चुनाव में भागलपुर में उनकी दखल से जोड़कर देखा जा रहा है। लेकिन यहां तथ्य यह भी है कि आगामी विधानसभा चुनाव अभी चार वर्ष दूर है। ऐसे में चुनाव कमेटी में उनकी वापसी को पार्टी के जानकार संगठन से जोड़ते हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक चूंकि चुनाव दूर है सो अभी दो संभावनाएं नजर आ रही है। पार्टी का हर जिले में चुनावी कार्यकाल लगभग पूरा होने को है। जिलास्तर पर संगठनात्मक चुनाव होना है। ऐसे में चौबे कम से कम अपने गृह क्षेत्र और कर्म क्षेत्र के संगठन को अपने हिसाब से सेट कर सकेंगे। हालांकि यह बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य होगा क्योंकि भागलपुर में संगठन कई खेमे दशकों से है। गृहक्षेत्र होने के कारण घर की मुर्गी दाल बराबर वाली कहावत भी लागू हो सकती है। ऐसे भी बहुतेरे हैं उनके विरोधी हो चुके हैं जिनकी आजीविका चौबे के नाम-प्रभाव-पैरवी से ही शुरू हुई थी। चुनाव तक चौबे इन्हें साध लेंगे। हालांकि यदि बक्सर से उम्र फैक्टर लागू हुआ तो भी द्वंद्व होगा लेकिन 2024 भी अभी दूर है। ऐसे में दूसरी संभावना यह कि पार्टी ने उन्हें किसी को बैलेंस करने के लिए वापस बिहार के संगठन में सक्रिय किया हो। किसे यह तो वक्त के साथ दिखने लगेगा।
कुल मिलाकर, इंटरनेट मीडिया पर चौबे समर्थकों में अचानक नई उर्जा का संचार दिखने लगा है। चर्चा यह भी कि चौबे और उनके बायलोजिकल परिवार के लिए यहां फिर से आवास खोजा जा रहा है। दूसरी ओर कोर कमेटी में बिहार सरकार के उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन को भी शामिल किया गया है। उनके समर्थक भी इंटरनेट मीडिया पर बधाइयों का तांता लगाए हैं।
शाहनवाज भागलपुर के पूर्व सांसद रह चुके हैं। उन्होंने अपनी कर्मभूमि भी भागलपुर को ही बना रखा है। विधान पार्षद के तौर पर उन्होंने भागलपुर को गोद ले लिया है।