Bihar Assembly Elections 2020 : ना नदियों की ली सुध, ना सिंचाई का जाना हाल
Bihar Assembly Elections 2020 बांका जिले में चुनावी मुद्दे नहीं बन सके किसानों के मुद्दे। अवैज्ञानिक तरीके से बालू के खनन ने नदियों का पारिस्थितिकी तंत्र बदला। अवैज्ञानिक तरीके से किया गया खनन नदियों के उपादेयता को बिगाड़ दिया है।
बांका [दिनकर]। Bihar Assembly Elections 2020 : झारखंड की पहाडिय़ों का ढलान बांका जिले की ओर है। बरसात के दिनों में पानी यहां रुकता नहीं, अलबत्ता यहां की उपजाऊ मिट्टी को वह खरोंचकर बौराई पहाड़ी नदियों के जरिए गंगा नदी के गर्भ तक पहुंचा देता है। पानी उतरने के बाद इन नदियों में बालू बच जाता है।
यह सफेदपोश और सरकारी तंत्र के लिए सोना से कम नहीं है। किसानों के लिए यह अभिशाप है। अवैज्ञानिक तरीके से किया गया खनन नदियों के उपादेयता को बिगाड़ दिया है। खेतों तक सिंचाई का पानी पहुंच नहीं पा रहा है। किसान यह उम्मीद लगा बैठे थे कि इस विधानसभा चुनाव में यह चुनावी मुद्दा बनेगा और इसके निराकरण की बात होगी। अफसोस यह है कि किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। अमरपुर के डुमरामा निवासी फैयाज कहते हैं-खेती अब फायदे का धंधा नही रहा। हमने इसे छोड़ कर हैंडलूम का काम शुरू किया।
लॉकडाउन में यह काम भी बंद हो गया। अमरपुर से जब आप बांका की ओर बढ़ेंगे तो सैजपुर के पास दम तोड़ती ओढऩी नदी मिलेगी। यहां बालू का खनन हो रहा है। देखकर ही लगता है कि वह सिंचाई में सक्षम नही है। धौरेया के बेलड़ीहा निवासी विनोद पाठक बताते हैं कि रजौन और धोरैया कतरनी उत्पादक प्रखंड है। सिंचाई की सुविधा नहीं रहने से कतरनी की खेती सिमट रही है। बांका में चांदन, ओढऩी, बदुआ, बिलासी, मदिगरी, बेलहराना, हिरंबी व दर्भाषण डैम है। गाद भर जाने से यह अपने सिंचाई के उद्देश्य को पूरा नहीं कर पा रहा है। इन्हें उद्धारक का इंतजार है। चुनावी शोर के बीच अच्छी खबर यह है कि इस साल जमकर बारिश हुई है और धान का कटोरा कहा जाने वाला यह क्षेत्र लबालब भरा हुआ है।