बिहार कृषि विश्वविद्यालय: राज्य के प्रगतिशील किसान अब बनेंगे विज्ञानी

किसान बनेंगे विज्ञानी किसानों के विकसित तकनीक का शोध निदेशालय स्तर पर होगा शुद्धीकरण। उपयोगी पाए जाने पर राज्य भर में उक्त तकनीक को किया जाएगा लागू। अब तक किसान अपने विकसित तकनीक को अपने नजरिए से धरातल पर उतारा करते थे।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Tue, 27 Jul 2021 11:54 AM (IST) Updated:Tue, 27 Jul 2021 11:54 AM (IST)
बिहार कृषि विश्वविद्यालय: राज्य के प्रगतिशील किसान अब बनेंगे विज्ञानी
बीएयू अब प्रगतिशील किसानों को बनाएगा विज्ञानी।

संवाद सहयोगी, भागलपुर। राज्य के प्रगतिशील नवाचार किसानों को अब बिहार कृषि विश्वविद्यालय विज्ञानि बनाएंगे। उनके द्वारा विकसित तकनीक को अनुसंधान निदेशालय स्तर पर और परिष्कृत किया जाएगा। उपयोगी पाए जाने पर उसे राज्य भर में लागू किया जाएगा। प्रचार प्रसार भी किये जायेंगे। ताकि सूबे के किसान कम लागत पर बेहतर उत्पादन के लिए ऐसे तकनीक को अपने खेतों में उतार सके।

बीएयू अपने अनुसंधान क्षेत्र पर करेगा शुद्धीकरण

अनुसंधान निदेशक डा. फिजा अहमद ने बताया कि नवाचार किसानों के विकसित तकनीक को विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय द्वारा अपने प्रायोगिक प्रक्षेत्र पर उसका शुद्धिकरण किया जाएगा। बता दें कि अब तक किसान अपने विकसित तकनीक को अपने नजरिए से धरातल पर उतारा करते थे। जिससे उसका ना तो सही ढंग से प्रचार प्रसार हो पाता था और न तो राज्य के अन्य किसान उसका लाभ उठा पाते थे। बिहार कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान एवं प्रसार निदेशालय ने राज्य भर के ऐसे नवाचार किसानों की तकनीकी को विश्वविद्यालय स्तर पर दक्ष कृषि विज्ञानियों की मदद से उसे पुरष्कृत करने का फैसला लिया है। ताकि उक्त तकनीकी के शुद्धिकरण के बाद राज्यभर के किसान उसका लाभ उठा सकें। पुरष्कृत तकनीक को संबंधित किसानों के नाम से जारी किया जाएगा। इससे ऐसे नवाचार किसानों की राज्य स्तर पर मान मर्यादा भी बढ़ेगी और उनके खेती बारी का अनुसरण कर राज्य में कृषि को उन्नत बनाया जा सकेगा।

शोध में समय और राशि की होगी बचत

प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरके सोहाने कहते हैं कि राज्य के नवाचार किसानों द्वारा विकसित कृषि तकनीकी को अनुसंधान निदेशालय स्तर पर वैज्ञानिकों की मदद से पुरष्कृत कर उसे राज्य भर में लागू किए जाने से शोध कार्य में समय और पूंजी की बचत होगी और किसान भी उक्त तकनीकी को सहजता से अपना सकेंगे। बता दें कि कृषि की नई तकनीक विकसित करने में विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को लंबे समय तक काफी मेहनत करनी पड़ती है साथ ही इस कार्य में सरकार की मोटी रकम भी खर्च होती है। किसानों की विकसित तकनीकी को विकसित करने में विज्ञानियों को समय भी कम लगेंगे और पैसों की भी बचत होगी।

किसानों की विकसित तकनीकी को बढ़ावा देने से वे उत्साहित होंगे। अन्य किसानों को भी अनुसरण करने का अवसर मिलेगा। इससे राज्य में खेती किसानी की तस्वीर बदलेगी। - डॉ अरुण कुमार कुलपति बीएयू सबौर

chat bot
आपका साथी