शाहकुंड में प्रवचन के दौरान बोले पंडित श्री घनश्याम शास्त्री, जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब भगवान किसी न किसी रूप में लेते हैं जन्म
भागलपुर के शाहकुंड में चल रहे भगवतकथा के दौरान पंडित श्री घनश्याम शास्त्री ने कहा कि जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब भगवान किसी न किसी रूप में लेते हैं जन्म। मनुष्य को हमेशा दूसरों का सहयोग करना चाहिए किसी की बुनाई नहीं करनी चाहिए।
संवाद सूत्र, शाहकुंड। भूलनी में चल रहे श्रीमद भगवत कथा के मौके पर ग्वालियर से पधारे पंडित श्री घनश्याम शास्त्री महाराज ने पूतना वध की कथा में सुनाई।
उन्होंने कहा कि कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अपनी खास दासी जो एक मायवी राक्षसी थी को नंदगांव भेजा। पूतना ने श्रीकृष्ण को स्तनपान के जरिए विष देकर मारने की साजिश रची। जैसे ही पूतना ने कृष्ण को स्तनपान कराया, उसी दौरान श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। बाद में पूतना को मोक्ष प्राप्त हुआ।
पूतना की मौत खबर सुनकर कंस के होश उड़ गए। वह क्रोध से भर गया। तब उसने श्रीकृष्ण को मारने के लिए तृणावर्त नामक राक्षस को भेजा। तृणावर्त बवंडर का रूप धारण करने की शक्ति रखता था। उसने कृष्ण को अपने साथ उड़ा लिया। कृष्ण ने तृणावर्त का गला दबाकर वध कर दिया। कंस ने इसके बाद वत्सासुर नाम के राक्षस को भेजा। वत्सासुर एक बछड़े का रूप धारण कर श्रीकृष्ण की गायों के झुंड में मिल गया। कान्हा उस समय गायों का चरा रहे थे। बालकृष्ण ने उस बछड़े के रूप में दैत्य को पहचान लिया और अवसर पाकर उसका भी वध कर दिया। श्रीकृष्ण को मारने के लिए कंस ने बकासुर भेजा।
वह बगुले का रूप धारण करने की शक्ति रखता था। गोकुल पहुंचकर उसने श्रीकृष्ण को मारने की साजिश रची। वह बगुला बनकर आया। तब बगुले ने कृष्ण को निगल लिया और कुछ ही देर बाद कान्हा ने उस बगुले को चीरकर उसका वध कर दिया। इसके बाद कंस ने अघासुर को गोकुल भेजा। अघासुर ने कृष्ण को मारने के लिए विशाल अजगर का रूप धारण किया और अपना मुंह खोलकर रास्ते में ऐसे बैठ गया। गुफा समझ कर उसी समय श्रीकृष्ण और उनके मित्र खेलते हुए उसके पेट में चले गए। अघासुर ने अपना मुंह बंद कर लिया। तब कृष्ण ने अपना शरीर तेजी से बढ़ाना शुरू कर दिया। कान्हा के विशाल शरीर के कारण अघासुर सांस नहीं ले पाया और उसकी मौत हो गई।