Suicide : भागलपुर में एक महिला ने की खुदकुशी, सुसाइड नोट में लिखी भावुक कर देने वाली बात

भागलपुर के पूर्व कमिश्नर अखिलेश्वर गिरी की पुत्री अनुभूति गिरी जायसवाल ने खुदकुशी कर ली। वह बूढ़ानाथ इलाके की रहने वाली थी। उन्‍हें कैंसर था। उन्‍होंने सुसाइड नोट में पति को बेहतर इंसान बताया है। बच्‍चों की चिंता जताई। लेकिन बीमारी से हारकर मौत को गले लगा लिया ।

By Dilip Kumar shuklaEdited By: Publish:Mon, 18 Jan 2021 02:33 PM (IST) Updated:Tue, 19 Jan 2021 04:11 PM (IST)
Suicide : भागलपुर में एक महिला ने की खुदकुशी, सुसाइड नोट में लिखी भावुक कर देने वाली बात
भागलपुर में अनुभूति गिरी जायसवाल ने खुदकुशी कर ली है।

जागरण संवाददाता, भागलपुर। जोगसर थानाक्षेत्र के उमा चरण लेन खरमनचक में भागलपुर के पूर्व कमिश्नर अखिलेश्वर गिरी की पुत्री अनुभूति गिरी जायसवाल फंदे से झूलकर जान दे दी। वह दो साल से कैंसर रोग से जूझ रही थी। रविवार की रात फंदे पर झूल गई थी। सोमवार की सुबह घटना की जानकारी पर पुलिस पहुंचकर आवश्यक कार्रवाई शुरू की। जोगसर थाने की पुलिस महिला बल के साथ शव का पंचनामा कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। पुलिस कमरे से सुसाइड नोट बरामद किया है। स्वजन उक्त पत्र की लिखावट अनुभूति की ही बताई है। सुसाइड नोट में महिला ने कैंसर से जूझने, दवा और इलाज पर खर्च के अलावा अपने दो बच्चों के भविष्य की चिंता जताई। पति और ससुराल वालों के अलावा मां बाप की भी चिंता जाहिर की है। अपने खुदकुशी वाले कदम के लिए खुद को जिम्मेदार बताया है।

पति बहुत अच्छे हैं,सुंदर जिंदगी बिताने का कैंसर ने तोड़ दिया सपना

अनुभूति का सपना था पति और बच्चों संग अच्छी जिंदगी जीने का। लेकिन उसका सपना टूट गया। अनुभूति बीते दो सालों तक कैंसर से जिंदगी की जंग लड़ते-लड़ते हार गई। टूट चुकी अनुभूति गिरी जायसवाल फंदे से झूल गई। कैंसर से लड़ते-लड़ते, दवा और डॉक्टरों के बीच उलझी अनु को घर के लोगों की मनोदशा की भी अनुभूति हो चुकी थी। उसे लगने लगा था कि सब परेशान हैं। वह खुद दो सालों तक जंग लड़कर जिंदगी को पटरी पर लाने के लाख जतन किए। मां-बाप, पति और ससुराल वालों का भरपूर सहयोग मिलता रहा लेकिन कोई फायदा नहीं होता देख वह टूट गई। दवा खाते और डॉक्टरों से दिखाते वह दो सालों में काफी परेशान हुई। वह दो सालों से कैंसर से लड़ाई में काफी कुछ सहा लेकिन कोई फायदा नजर नहीं आया। बच्चों की परवरिश, अच्छे पति के साथ अच्छी जिंदगी बिताने की टीस लिए वह जिंदगी से काफी दूर चली गई।  जिंदगी की जंग जीतने के लिए कैंसर से खूब लड़ी। जाने कहां-कहां दौड़ लगाई। खुद दौड़ी, घर वालों को भी दौड़ लगानी पड़ी। कुछ पल लगा कि वह कैंसर को पराजित कर देगी। उसे मायके और ससुराल वालों ने कैंसर से जंग में हौसला भी खूब दिया। पति विदेश से लौट कर भागलपुर में दवा की दुकान में हाथ बंटाने लगे थे।

सभी चाहते थे कैंसर पर विजय प्राप्‍त करे

सबकी इच्छा थी कि अनुभूति कैंसर पर विजय प्राप्त कर ले। लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था। दवा-दारू करते-करते अनुभूति को एहसास हो चला कि वह ठीक नहीं हो सकेगी। उसने खुद की इहलीला समाप्त करने के लिए छह माह से उधेड़बुन में थी। दुनिया से कूच करने से पहले उसे बच्चों की परवरिश की भी फिक्र थी। अपने बाद दो बच्चों के परवरिश के लिए उसने अपने हिस्से की जमा पूंजी जमीन और जीवन बीमा के रुपये देने को कह गई। उसे जिंदगी जीने की काफी तमन्ना थी लेकिन कैंसर से हार कर टूट चुकी अनुभूति जिंदगी जीने की इच्छा कैंसर से हार की टीस लिए साथ चली गई। उसने सुसाइड नोट भी लिखा। रोने की एक आकृति भी खींच दी।

बेटे से की मुखाग्नि देने की बात

बेटे सात्विक को ही मुखाग्नि देने और आर्य समाज की रीति से अंतिम कर्म करने को कह गई। किसी को यह आभास नहीं था कि अनुभूति फंदे से झूल जाएगी। उमाचरण लेन, बूढ़ानाथ में लोग भी स्तब्ध हैं। अनुभूति के स्वजन पटना से चल चुके हैं। अनुभूति के दो बच्चों में बेटा नौवीं कक्षा का छात्र है। अनुभूति पिता के साथ दानापुर में ही रहती थी। पिता अखिलेश्वर गिरी पहले भागलपुर में उप समाहर्ता बाद में संयुक्त बिहार में देवघर के डीसी और बाद में भागलपुर के आयुक्त रहे थे। स्वजन के आने के बाद मामले में रिपोर्ट दर्ज की जाएगी।

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