मायागंज अस्पताल में यह कैसी 'माया', न इलाज न पानी

मायागंज अस्पताल में यह कैसी माया है कि मरीजों का न ठीक से इलाज हो पा रहा और न ही पानी की ही व्यवस्था है। अस्पताल के एमसीएच वार्ड में कोरोना मरीजों का इलाज नर्स और जूनियर चिकित्सकों के भरोसे है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 19 May 2021 08:04 AM (IST) Updated:Wed, 19 May 2021 08:04 AM (IST)
मायागंज अस्पताल में यह कैसी 'माया', न इलाज न पानी
मायागंज अस्पताल में यह कैसी 'माया', न इलाज न पानी

भागलपुर। मायागंज अस्पताल में यह कैसी 'माया', है कि मरीजों का न ठीक से इलाज हो पा रहा और न ही पानी की ही व्यवस्था है। अस्पताल के एमसीएच वार्ड में कोरोना मरीजों का इलाज नर्स और जूनियर चिकित्सकों के भरोसे है। वरीय चिकित्सक तो झांकने भी नहीं आते। अव्यवस्था के बीच तड़प रहे मरीज दम तोड़ रहे हैं, लेकिन कोई देखने वाला नहीं है। वार्ड में कोरोना से जिन मरीजों की मौत हुई है उनके स्वजनों ने अस्पताल की व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है।

स्वजनों ने बताया कि अस्पताल के एमसीएच वार्ड में मरीजों के इलाज की फिक्र न तो चिकित्सकों को है और न ही प्रबंधन को। हाथ-पैर जोड़ने पर भी चिकित्सक नहीं देखने आते। दवा और इंजेक्शन यदि बाहर से मंगाया भी गया तो उसे देने वाला कोई नहीं है। स्वजन ही दवा और खाना खिलाते हैं। स्वयं अतिरिक्त ऑक्सीजन सिलेंडर की भी व्यवस्था करनी पड़ रही है। क्योंकि, कब ऑक्सीजन खत्म हो जाए कहना मुश्किल है। ऑक्सीजन मिल भी गई तो अधिकतर विभागों में फ्लो बहुत कम है। ऐसे में गंभीर मरीज, जिनका ऑक्सीजन लेवल ज्यादा गिर गया है उनके स्वजन भगवान भगवान ही करते हैं। इतना ही नहीं एमसीएच वार्ड में पानी की भी व्यवस्था नहीं है। स्वजन को बाहर से बोतलबंद पानी खरीदना पड़ रहा है।

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केस स्टडी एक

नवगछिया की सावित्री देवी की 16 मई को मौत हो गई थी। उनके पुत्र अंकित कुमार शुरू से मां की सेवा में लगे रहे। उन्होंने बताया कि एक बार भी वरीय चिकित्सक मरीज को देखने नहीं आए। सदर अस्पताल से मां को मायागंज अस्पताल रेफर किया गया था। एक बार जब मां की धड़कनें बढ़ गई तो कई बार चिकित्सकों के पास गया, लेकिन उन्होंने नर्स को सलाह देकर अपनी ड्यूटी पूरी कर ली। भोजन भी मैं ही कराता था। बेहोशी की हालत में ही मां की मौत हो गई।

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केस स्टडी दो

गोपालपुर निवासी बेकु शर्मा की 12 मई को मौत हो गई थी। वह कोरोना के साथ ही लकवा के भी मरीज थे। उनके पोता प्रिस कुमार ने बताया कि वार्ड में पानी भी नहीं मिलता था। गलब्स भी खरीद कर बाहर से लाना पड़ता था। कभी-कभी दवा भी रखी रह जाती थी। सभी कार्य वहां स्वजन ही करते थे। बिना स्वजन के मरीज को देखने वाला कोई नहीं है।

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केस स्टडी तीन

सजौर रविचक के नीरज कुमार को 26 अप्रैल को भर्ती किया गया था, 11 मई को उनकी मौत हो गई थी। उनके पुत्र लोकेश कुमार ने बताया कि वार्ड में पानी की व्यवस्था नहीं थी। बाहर से पानी की बोतल खरीदनी पड़ रही थी। बाहर से ही चिकित्सक के निर्देश पर दवा दी जाती थी। कभी-कभी दवा देने का समय भी गुजर जाता था, लेकिन कोई बताने वाला नहीं होता था। ऑक्सीजन के छोटा सिलेंडर की भी व्यवस्था करके रखा था, ताकि ऑक्सीजन की किल्लत होने पर इसका उपयोग किया जा सके। कई इंजेक्शन बाजार से खरीदा। इंजेक्शन पेट के स्किन में दिया जाता था, लेकिन कभी भी वरीय चिकित्सक नहीं आए। पिताजी की हालत खराब होने पर लगातार तीन दिनों तक आइसीयू में भर्ती करने के लिए परेशान रहा, लेकिन सफल नहीं हो पाया।

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केस स्टडी चार

कैथी निवासी निशांत कुमार की 16 मई को मौत हो गई थी। उनके भतीजे रत्नेश ने बताया कि बातें दुहराने से क्या फायदा है। यहां कोई सुनने वाला नहीं है। जब भी चाचा की तबीयत ज्यादा खराब होती तो बार-बार चिकित्सक को बुलाने जाता था, लेकिन कोई सुनता नहीं था। अस्पताल में कोई मरीजों को देखने वाला नहीं है।

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कोट : वार्ड में जूनियर चिकित्सकों की ड्यूटी बंटी हुई है। कई वरीय चिकित्सक कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं, मैं भी उनमें शामिल हूं। थोड़ा स्वस्थ हुआ तो ड्यूटी करने चला आया। वार्ड में मरीजों को कोई भी समस्या नहीं है। तीनों पालियों में चिकित्सक आते हैं। ऑक्सीजन की भी किल्लत नहीं है। जो भी समस्या हो मरीज के नाम के साथ नर्स को लिखकर दें, समस्या का समाधान होगा।

डॉ. पीबी मिश्र, नोडल पदाधिकारी, एमसीएच

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