BAU नियुक्ति घोटाला : अपनों पे करम, गैरों पे सितम..., सहायक प्रध्यापकों की बहाली में मेवालाल ने जान बूझकर किया पक्षपात

BAU नियुक्ति घोटाला बिहार कृषि विश्‍वविद्यालय के तत्‍कालीन कुलपति डॉ मेवालाल चौधरी ने चहेतों को अधिक अंक देकर उत्तीर्ण कर दिया। उनपर योग्यता वाले दरकिनार करने का आरोप है। अभी वे तारापुर के जदयू विधाायक हैं। वे दूसरी बार चुनाव जीते।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Thu, 26 Nov 2020 09:43 AM (IST) Updated:Thu, 26 Nov 2020 09:43 AM (IST)
BAU नियुक्ति घोटाला : अपनों पे करम, गैरों पे सितम...,  सहायक प्रध्यापकों की बहाली में मेवालाल ने जान बूझकर किया पक्षपात
तारापुर के विधायक डॉ मेवा लाल चौधरी, जिनपर बीएमयू में नियुक्ति घोटाले का आरोप है।

भागलपुर, जेएनएन। BAU नियुक्ति घोटाला : बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर में कुलपति रहते मेवालाल चौधरी ने सहायक प्रध्यापकों की बहाली में अपनों पे करम और गैरों पे सितम ढाने का काम किया। योग्य अभ्यर्थियों को दरकिनार कर अपने चहेतों पर खूब मेहरबानी की। पद का दुरुपयोग करते हुए पैरवी पुत्रों को प्रस्तुति और साक्षात्कार में सौ फीसद अंक देकर पास कराने में जरा भी हिचक नहीं दिखाई। अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति सैयद महफूज आलम ने अपनी जांच रिपोर्ट में सबकुछ साफ कर दिया।

अपने चहेतों को 10 प्लस 10 यानी 100 फीसद अंक दिया। जबकि योग्य अभ्यर्थियों को 10 प्लस 10 में महज 0.1 प्लस 0.1 यानी एक फीसद अंक दिया। अपनी जांच रिपोर्ट में अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति ने लिखा है कि यदि इन अभ्यर्थियों को प्रस्तुति और साक्षात्कार में औसत अंक भी दिए जाते तो फेल किए गए अधिकांश अभ्यर्थी सफल हो जाते। ऐसा प्रतीत होता है कि जान बूझकर उत्कृष्ट शैक्षणिक योग्यता वाले अभ्यर्थियों को असफल कराने के उद्देश्य से यथासंभव न्यूनतम अंक दिए गए हैं। असफल 1311 अभ्यर्थियों में से 965 यानी लगभग 74 फीसद अभ्यर्थियों को 20 में से मात्र पांच या उससे भी कम अंक दिए गए हैं।

दो आरोपित जेल भी गए पर तफ्तीश में ओझल रहे चौधरी  

नियुक्ति घोटाले में अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति की जांच रिपोर्ट बाद कुलाधिपति के निर्देश पर सबौर थाने में केस दर्ज हो गया। जांच भी तेज हुई लेकिन तफ्तीश में मेवालाल चौधरी पर मेहरबानी जारी रही। नामजद आरोपित होते हुए मेवालाल जांच में ओझल रहे। अलबत्ता तेजी दिखाते हुए तत्कालीन नियुक्ति पदाधिकारी राजभवन वर्मा और अमित कुमार को केस का अप्राथमिकी आरोपित बना डाला। यही नहीं उन्हें 20 मई 2017 को गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया गया। जबकि अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति की रिपोर्ट बाद दर्ज कराए केस में मेवालाल चौधरी तत्कालीन कुलपति नामजद आरोपित थे। तेज जांच की आंच में भी वह ओझल रहे। उनपर ऐसी मेहरबानी अभी तक बनी हुई है। 10 अगस्त 2017 को भागलपुर के पुलिस उपाधीक्षक मुख्यालय-1 रमेश कुमार ने राजभवन वर्मा और अमित कुमार के अलावा नामजद आरोपित मेवा लाल चौधरी पर भी कांड को सत्य माना। लेकिन सारी कार्रवाई कागजों पर ही तैरती रही। मेवालाल पर आरोप पत्र दाखिल करने के लिए स्वीकृत्यादेश तक नहीं लिया गया।

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