आजादी के पूर्व लखीसराय आए थे महात्‍मा गांधी , पत्‍नी कस्‍तूरबा भी थी साथ

आजादी के पूर्व देश भ्रमण को निकले साबरमती के महान संत लखीसराय भी आए थे।उनके साथ उनकी धर्मपत्‍नी कस्‍तूरबा गांधी भी थी। शहर में अवस्थित चितरंजन आश्रम का बापू ने ही उद्घाटन था । आज भी उनकी स्‍मृति लोगों के जेहन में है।

By Amrendra kumar TiwariEdited By: Publish:Sat, 30 Jan 2021 03:04 PM (IST) Updated:Sat, 30 Jan 2021 03:04 PM (IST)
आजादी के पूर्व लखीसराय आए थे महात्‍मा गांधी , पत्‍नी कस्‍तूरबा भी थी साथ
चितरंजन आश्रम में ही संचालित होता था जिला का कांग्रेस कार्यालय

जागरण संवाददाता, लखीसराय । साबरमती के संथ महात्मा गांधी का आज शहादत दिवस है। देश ही नहीं पूरे विश्व में उनकी कीर्ति को लोग याद करते है। स्‍वतंत्रता के पूर्व पूरे देश घुमने निकले बापू  का आगमन लखीसराय में भी हुआ था। पर आज तक उन महान संत की याद व उनकी प्रतिमा स्थापित करने के लिए जिला प्रशासन कुछ धूर  जमीन नहीं खोज पाया,  लेकिन उनके स्‍मृति में कई  धरोहर यहां मौजूद हैं,  जिन्हें देखकर बापू की जीवंत तस्वीर सामने आ  जाते हैं।

मुंगेर जिला में हुआ था प्रथम राजनीतिक सम्‍मेलन

स्व‍वतंत्रा के पूर्व  1921 में मुंगेर जिले का प्रथम राजनीतिक सम्मेलन लखीसराय में ही हुआ था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में आयोजित सम्मेलन में बापू भी हिस्सा लेने पहुंचे थे। उनके आगमन का नाम सुन बड़ी संख्या में देश प्रेमी यहां जमा हुए थे। लोगों का उत्साह एवं देशप्रेम देखकर साबरमती के संत ने यहां  दोबारा आने की इच्छा जताई थी। वर्ष 1927 में कोलकाता में आयोजित सम्मेलन से लौटने के क्रम में गांधी जी लखीसराय पहुंचे। इस बार उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी भी साथ थीं। आजादी के आंदोलन को गति देने के लिए पुरानी बाजार में कांग्रेस मुख्यालय का उद्घाटन करने पहुंचे। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी चितरंजन दास के नाम पर उसका नाम चितरंजन आश्रम रखा।

चितरंजन आश्रम स्‍वतंत्रता आंदोलन का है गवाह

यहां चबूतरे पर बैठकर उन्होंने हजारों देश प्रेमियों  को संबोधित किया था। बाद में मुख्य सड़क को जोड़ने वाली लिंक सड़क का नामकरण भी चितरंजन रोड कर दिया । लखीसराय में यह आश्रम अब भी स्वतंत्रता आंदोलन का गवाह बनकर खड़ा है। यहां अभी जिला कांग्रेस का कार्यालय संचालित है और शेष भाग पर किराए में केएसएस कॉलेज लखीसराय का संचालन हो रहा है। वर्ष 1934 में तत्कालीन जिला मुख्यालय मुंगेर में भीषण भूकंप हुआ था। सबकुछ तबाह हो गया था। वे डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ पीड़ितों की मदद के लिए मुंगेर पहुंचे थे।

युवा छात्रों को दिया था करो या मरो का नारा

मुंगेर से लौटने के क्रम में बड़हिया के स्वतंत्रता सेनानी विश्वनाथ प्रसाद के अनुरोध पर डॉ. राजेंद्र बाबू के साथ गांधी जी बड़हिया गए। वहां स्थित जगदंबा मील के परिसर में एक विशाल महिला सभा को संबोधित किया था। इसके बाद से तो  बड़हिया स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र बन गया। अंतिम बार बापू 1939-40 में थोड़ी देर के लिए किऊल स्टेशन पर रुके थे।  उस समय किऊल रेलवे स्टेशन पर शहर के केआरके हाई स्कूल के छात्र श्याम सुंदर सिंह के नेतृत्व में छात्रों ने तिरंगा लेकर बापू का स्वागत माला पहनाकर किया था। इस बार बापू ने युवा छात्रों से करो या मरो का नारा देकर क्रांति का बिगुल फूंकने का आह्वान किया था। 

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