नमो देव्यै-महा देव्यै : मंजूषा कला से जोड़कर रोजगार का अवसर उपलब्ध करा रही अनुकृति

TMBU से विज्ञान में स्नातक करने के बाद वह चंडीगढ़ से बैचलर ऑफ फाइन आर्ट का कोर्स कर रही अनुकृति को मंजूषा के लिए कला-संस्कृति एवं युवा विभाग ने अनुकृति को 2015-16 में श्रेष्ठ हस्तशिल्प पुरस्कार से सम्मानित भी किया था।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Mon, 19 Oct 2020 01:44 PM (IST) Updated:Mon, 19 Oct 2020 01:44 PM (IST)
नमो देव्यै-महा देव्यै : मंजूषा कला से जोड़कर रोजगार का अवसर उपलब्ध करा रही अनुकृति
2009 में नाबार्ड के प्रशिक्षण कार्यक्रम में मंजूषा सीखने के बाद अनुकृति ने 35 युवतियों को इस कला से जोड़ा।

भागलपुर, जेएनएन। मंजूषा कला से जोड़कर रोजगार का अवसर उपलब्ध करा रही है अनुकृति। अनुकृति के घरवालों की इच्छा थी कि बेटी डॉक्टर बने। इंटर परीक्षा पास करने के बाद मेडिकल की तैयारी भी की। इसी बीच मंजूषा कला से उनका परिचय हुआ और वह इस कला की होकर रह गईं। आज वह मंजूषा कला का आगे बढ़ाने के देश के बड़े-बड़े शहरों पहुंच रही है।

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक करने के बाद वह चंडीगढ़ से बैचलर ऑफ फाइन आर्ट का कोर्स कर रही अनुकृति को मंजूषा के लिए कला-संस्कृति एवं युवा विभाग ने अनुकृति को 2015-16 में श्रेष्ठ हस्तशिल्प पुरस्कार से सम्मानित भी किया था। इन दिनों पटना सचिवालय के सभाकक्ष की दीवारों पर अनुकृति की बनाई पेंटिंग शोभा बढ़ा रही है।

कदम बढ़ाया तो बन गया रास्ता

2009 में नाबार्ड के प्रशिक्षण कार्यक्रम में मंजूषा सीखने के बाद मैंने गांव की 35 युवतियों को इस कला से जोड़ा। यह आसान नहीं था, लेकिन कदम बढ़ते गए और रास्ता भी बनता गया। शुरू में अल्पसंख्यक समाज की युवतियों और महिलाओं ने बिहुला विषहरी लोक कथा के चित्रों को बनाने से इन्कार कर दिया था, लेकिन जब उन्हें इसका व्यवसायिक महत्व बताया गया तो वे तैयार हुईं। इसी का नतीजा है कि आज बहुत से लड़कियां महिलाएं अनुकृति से जुड़ कर  कलाकार के रूप में उभरकर सामने आईं।

बाहर निकलने के लिए करना पड़ा संघर्ष

अनुकृति को जिले से बाहर निकलने के लिए खूब संघर्ष करना पड़ा। घरवाले इस बात के लिए तैयार नहीं थे। बाद में प्रशिक्षकों के समझाने पर घर के लोग मान गए। शुरुआत में जब वह प्रदर्शनी लगाने बाहर जाती थी तो गांव और आसपास के लोग टीका-टिप्पणी करते थे, लेकिन जब उपलब्धि मिलने लगी तो वही लोग प्रशंसा करने लगे।

ट्रेड फेयर में मंजूषा कला का लाइव प्रदर्शन

कहलगांव, सुलतानगंज और नवगछिया सहित कई प्रखंडों की दीवारों पर अनुकृति ने मंजूषा कला की पेंटिंग की है। 2018 में दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित ट्रेड फेयर और इस वर्ष गोवा में 28 से 30 जनवरी के बीच हुए ट्रेड फेयर में अनुकृति ने मंजूषा कला का लाइव प्रदर्शन किया। 2010 में शांति निकेतन में इंटरफेस कार्यक्रम में वह शिरकत कर चुकी हैं। पिछले साल दिसंबर में काठमांडू में आयोजित कला प्रदर्शनी में भी वह शामिल हुई थीं। मंजुषा कला के द्वारा निर्मित वस्तुएं जैसे पेंटिंग, साड़ी, दुपट्टा, रुमाल, चादर, गमछा, स्काफ़, छतरी, दीप, मास्क और जो नित्य दिन हमलोगों के उपयोग में समान आते हैं, उस पर मंजूषा पेंटिंग बनाती है। बाजार के अनुसार अनुकृति अपने प्रोडक्ट्स बनती है। शुरू में बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी थी, लेकिन अनुकृति मंजूषा के प्रति लोगों को जागरूक की और इसके महत्व को समझाया कि हमारी लोक कला को जानिए और भरपूर सहयोग दीजिए।

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