आचार्य नंदलाल बसु: भारतीय संविधान की मूल प्रति को सजाया, अपनी ही जन्मस्थली पर भुला दिए गए

तीन दिसंबर 1982 को आचार्य नंदलाल बसु का जन्म हुआ था। इन्होंने भारतीय संविधान की मूल प्रति को सजाने व संवारने का काम किया। उन्‍हें कई सम्मान मिले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नंदलाल बसु की कई बार चर्चा कर चुके हैं।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Mon, 29 Nov 2021 10:43 PM (IST) Updated:Mon, 29 Nov 2021 10:43 PM (IST)
आचार्य नंदलाल बसु: भारतीय संविधान की मूल प्रति को सजाया, अपनी ही जन्मस्थली पर भुला दिए गए
मुंगेर के खडग़पुर में स्थापित आचार्य नंदलाल बसु की प्रतिमा।

राम प्रवेश स‍िंह, हवेली खडग़पुर (मुंगेर)। हवेली खडग़पुर की धरा कला की रही है। इस धरा पर तीन दिसंबर 1982 को कूची के पुरोधा आचार्य नंदलाल बसु का जन्म हुआ। इन्होंने अपनी तस्वीर से भारतीय संविधान की मूल प्रति को सजाने व संवारने का काम किया। इनकी 22 चित्र का इस्तेमाल भारतीय संविधान में किया गया है, लेकिन इन्हें इनके की जन्मस्थली पर भुला दिया गया। 2015 के विधानसभा चुनाव के के दौरान मुंगेर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने संबोधन की शुरुआत नंदलाल बसु को याद करते हुए की थी।

अंगिका भाषा में उन्होंने जब मन से कहा नंदलाल बसु की धरती को प्रणाम करै छी, तो तालियों से हवाई अड्डा मैदान गूंज उठा। तत्पश्चात लोगों में उम्मीद जगी की मुंगेर का मान बढ़ाने वाले नंदलाल बसु की स्मृति को जिंदा रखने के लिए जरूर कदम उठाए जाएंगे। सेवानिवृत प्राचार्य रामचरित्र प्रसाद सिंह ने कहा कि नंदलाल बसु की प्रतिभा के कायल बापू भी थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने नंदलाल बसु के बारे में कहा था कि बसु ने मेरी कल्पना को साकार कर दिया है। नई दिल्ली स्थित नेशनल गैलरी आफ माडर्न आर्ट में इनकी 7000 कृतियां संग्रहित है। कला के क्षेत्र में उनके योगदान की वजह से उन्हें वर्ष 1954 पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल स्थित विश्व प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान शांति निकेतन में आचार्य नंदलाल बसु के नाम पर कला दीर्घा भी बना हुआ है।

नंदलाल बसु को मिला सम्मान 

1950 : डिलीट बनारस हिंदू विश्वविद्यालय 1952 : देशिकोत्तम विश्वभारती विश्वविद्यालय 1953 : दादा भाई नरोजी स्मृति सम्मान 1954 : भारत सरकार की ओर से पद्म विभूषण 1956 : रविंद्र शताब्दी पदक 1957 : डि लिट कोलकाता विश्वविद्यालय की ओर से 1958 : रजत जयंती पदक ललित कला अकादमी की ओर से 1963 : डि लिट रविंद्र भारतीय विश्वविद्यालय की ओर से 1965 : टैगोर जन्मशताब्दी पदक 1957 : डी लिट कोलकाता विश्वविद्यालय की ओर से 1958 : रजत जयंती पदक ललित कला अकादमी की ओर से 1963 : डी लिट रविंद्र भारती विश्वविद्यालय की ओर से 1965 : टैगोर जन्म शताब्दी पदक

मुंगेर विश्वविद्यालय में भी कला संकाय में उनके नाम पर एक अध्ययन पीठ की स्थापना की जा सकती है। उनके नाम पर खडग़पुर में भी कला महाविद्यालय खोला जाना चाहिए। नंदलाल बसु मुंगेर के धरती है पुत्र रहे हैं, उनकी यादों को संजोए रखने में बढ़ती जा रही लापरवाही स्थानीय जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारियों और बुद्धिजीवियों की अक्षमता का द्योतक है। तीन दिसंबर 2003 को भागलपुर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डा. रामाश्रय यादव ने नंदलाल बसु शोध संस्थान और सभागार का शिलान्यास किया था, लेकिन अभी तक शोध संस्थान और सभागार का निर्माण नहीं किया जा सका। विधान पार्षद संजीव कुमार ङ्क्षसह ने विधान परिषद में आचार्य नंदलाल बसु की उपेक्षा का मामला उठाया। अनुमंडल पदाधिकारी के यहां से भी प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन नंदलाल बसु की स्मृति को जिंदा रखने की कवायद कागजी प्रक्रिया में उलझ कर रह गई।

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