महकमे में एक दारोगा को खुद को सिंघम की तरह प्रस्तुत करना पड़ा भारी

खुद को सिंघम की तरह प्रस्तुत करना एक दारोगा को उस समय काफी भारी पड़ा जब उन्होंने 20 रुपये जुटा कर महाजन के लिए भेज दिया। अब वे परेशान हैं। कुछ को जरुरत से ज्यादा समझना इनके लिए परेशानी का कारण बन गया है।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Fri, 30 Jul 2021 09:56 AM (IST) Updated:Fri, 30 Jul 2021 09:56 AM (IST)
महकमे में एक दारोगा को खुद को सिंघम की तरह प्रस्तुत करना पड़ा भारी
छब्बे जी बनने के लिए उन्होंने 20 रुपये जुटा कर महाजन के लिए भेज दिया।

जागरण संवाददाता, भागलपुर। महकमे में खुद को सिंघम की तरह प्रस्तुत करने वाले एक दारोगा अपनी करनी पर खुद को ही कोस रहे हैं। बेचारे छब्बे जी बनने चले थे लेकिन धड़ाम से जमीन पर गिर गए। छब्बे जी बनने के लिए उन्होंने 20 रुपये जुटा कर महाजन के लिए भेज दिया। लेकिन महाजन सूद-ब्याज से तौबा कर रखा था। चंद दिनों में इस महाजनी के खेल का पता चला तो झटके में छब्बे जी को जमीन पर ला दिया। अब पता लगाया जा रहा है कि 20 रुपये किस महाजन ने डकार ली। उधर दारोगा जी की जान सांसत में है। रोज घरवाली से किचकिच। बेचारे हड्डी भी किचकिच में तुड़वा लिए। अपना दुखड़ा खुद नहीं सुना फिर से छब्बे बनने के लिए घरवाली को परेशान कर रहे हैं। वह बेचारी दौड़ लगा रही है। उनके आगे-पीछे महाजनी के खेल में शामिल ठग भी हलकान है कहीं करतूत न खुल जाए।

बंधन में बंधे बंधन

खाकी महकमे के एक अहम कार्यालय की अहम शाखा में तैनात काफी जानकार कर्मी आहत हैं। महकमे के बड़ा बाबू को किसी ने सेक रखा है कि वह कार्यालय में बैठते ही नहीं। हमेशा पान-पुडिय़ा खाने पास की दुकान पर चले जाते। जहां गप्पे हांकते। जबकि कागजात के जानकार होने के कारण काम त्वरित गति से निपटा कर कोने में मौजूद शाखा कक्ष से निकल कर दूसरे साथियों के पास गप्पे मारने चले जाते। यह भी सही कि पान-पुडिय़ा के लिए कार्यालय के पिछवाड़े वाले छोटे गेट से निकल कर अक्सर गायब भी हो जाते थे। उनकी आदत से खार खाए बड़ा बाबू ने पिछवाड़े वाली गेट पर ही ताला लगा दिया। ताला लगते ही बंधन में नहीं बंधने वाले कर्मी बंधन मुक्त होने के लिए छटपट करने लगे। उन्हें छटपटाता देख यह बताया गया कि ताला लेडी सिंघम का ही हुक्म से लगा है। बेचारे छटपटा कर कोस रहे हैं।

बिना पैसे केस नहीं

बालू माफियाओं की सक्रियता वाले एक थाने में बिना चढ़ावा के केस दर्ज नहीं होता। रुपये गबन के एक बड़े मामले में केस दर्ज कराने गए पीडि़त ने यह समझा नहीं। साक्ष्य बटोर कर सीधे चले गए थाने। थाने में अपनी गाड़ी लगाई और पूछा थानाध्यक्ष कहां मिलेंगे। जिनसे पूछा वह मुंशी था। कड़क आवाज में बोला का है, काहे खोज रहे हैं बड़ा बाबू को। जानते नहीं कि अभी बड़ा बाबू डीएसपी साहब हैं। थोड़ी देर बाद डीएसपी थानाध्यक्ष से मुलाकात हो गई। उन्होंने केस दर्ज करने को आश्वस्त दे आवेदन और दस्तावेज ले लिए। पीडि़त करीब 15 दिनों तक दौड़ लगाया। थानाध्यक्ष से भेंट नहीं हुई। एक एसआई ने पीडि़त को समझाया पांच हजार लगेगा तब केस होगा। पांच हजार देने पर भी केस दर्ज नहीं हुआ, 25 हजार की डिमांड हुई। पीडि़त आजिज हो बातचीत की रिकार्डिंग कर रखा है। केस नहीं होने पर डीजीपी से शिकायत करने का मन बनाया है।

कामचोरी देख नींव हिला दी

लेडी सिंघम इन दिनों विभाग में कामचोरी से खफा चल रही हैं। पैरवी कर पहले से कई शाखाओं और थानों में मनमाफिक जगहों पर तैनात उन लोगों की नींव हिला दी है जो बिना काम किए इधर-उधर कर दिन काट रहे थे। ऐसे लोगों को चुन-चुन कर उनकी बाकायदा सूची तैयार कराई। उन सूची में शामिल नामों के पैरवीकारों की कुंडली भी खंगाल ली फिर झटके में उन्हें इधर से उधर कर दिया। थानों और विभिन्न शाखाओं में तैनात ऐसे लोगों को पहले बदला फिर पुलिस केंद्र में भी काम नहीं करने वालों पर सख्ती बरतने के लिए एक ऐसे दारोगा को ढूंढ निकाली जो किसी की सुनते ही नहीं। सड़कों पर डंडे चलाने वाले पद पर हाल तक थे। वहां जिसे पकड़ लेते उसे बिना दंड के मुक्त नहीं करते थे। विभागीय लोगों को भी चाबुक चलाने में परहेज नहीं करते थे। अब नए जगह कामचोरी करने वालों को कस देंगे।

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