भागलपुर में कोरोना से तीसरी लहर से लड़ने की तैयारी जोरों पर, JLNMCH में बनेगा 60 बेड का पीकू वार्ड

भागलपुर में कोरोना से तीसरी लहर से लड़ने के लिए स्वास्थ्य विभाग जोरों से तैयारी कर रहा है। जिले के सबसे बड़े अस्पताल में बच्चों के इलाज के लिए 60 बेड का पीकू वार्ड बनाने का प्रस्ताव राज्य स्वास्थ्य समिति को भेजा गया था जिसकी अनुमति मिल गई।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 11:44 AM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 11:44 AM (IST)
भागलपुर में कोरोना से तीसरी लहर से लड़ने की तैयारी जोरों पर, JLNMCH में बनेगा 60 बेड का पीकू वार्ड
बच्चों के समुचित इलाज के लिए जेएलएनएमसीएच में बनेगा पीकू वार्ड

जागरण सवांददाता, भागलपुर। भागलपुर में कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के लिए तेजी के साथ कवायद की जा रही है। जिले के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) के शिशु विभाग में 60 बेड का पीकू वार्ड बनेगा। राज्य स्वास्थ्य समिति ने इसकी अनुमति दे दी है। इस वार्ड में गंभीर रूप से बीमार बच्चों का इलाज होगा। शिशु विभाग के अध्यक्ष डॉ. आरके सिन्हा ने कहा कि अस्पताल में पीकू वार्ड निर्माण के लिए प्रस्ताव दिया गया था, जिसे राज्य स्वास्थ्य समिति ने स्वीकार कर लिया है।

डॉ. सिन्हा ने कहा कि पीकू वार्ड बनने से कोरोना की तीसरी लहर की चपेट में आने वाले संभावित बच्चों का इलाज आसानी से किया जाएगा। एमसीएच वार्ड के समीप छह हजार वर्गफीट में पीकू वार्ड का निर्माण किया जाएगा।

शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अनिल कुमार यादव ने कहा कि गंभीर बच्चों के इलाज के लिए पीकू वार्ड है। अभी प्रतिदिन चार से छह बच्चों का इलाज किया जाता है। सितंबर से ऐसे बच्चों की संख्या बढ़कर बीस के आसपास पहुंच जाती है। पिकू वार्ड बनने से बच्चों के इलाज में आसानी होगी।

इमरजेंसी शिशु विभाग में लगा ताला, इंडोर में किया जा रहा इलाज

वहीं, मायागंज अस्पताल के इमरजेंसी के शिशु विभाग में ताला लगा दिया गया है। बीमार बच्चों का इलाज इंडोर शिशु विभाग में किया जा रहा है। हालांकि, शिशु को छोड़कर अन्य विभागों की इमरजेंसी में मरीजों का इलाज किया जा रहा है।

इमरजेंसी में बच्चों के इलाज के लिए आने वाले स्वजनों को इंडोर विभाग को खोजने में परेशानी होती है।असल में इमरजेंसी में सुरक्षा गार्ड द्वारा डॉक्टरों पर बच्चे के इलाज का दबाव देने के मामले ने तूल पकड़ लिया है। जब कोरोना मरीजों की संख्या कम हुई तो इमरजेंसी को सामान्य मरीजों के लिए खोल दिया गया। उसी दौरान जब बीमार बच्चे को लेकर स्वजन इमरजेंसी पहुंचे तो डॉक्टर इलाज करना नहीं चाह रहे थे।

'इंडोर में इमरजेंसी शिशु विभाग चलाने की अनुमति मांगी गई थी। जल्द ही इमरजेंसी में शिशुओं के इलाज किया जाएगा।' -डॉ. एके दास, अधीक्षक, जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल

सुरक्षा गार्ड के दबाव देने पर इलाज किया गया। इस बीच डॉक्टर और सुरक्षा गार्ड में कहा-सुनी भी हो गई। गार्ड को अस्पताल से हटाने के लिए विभागाध्यक्ष ने अस्पताल अधीक्षक को आवेदन दिया। लेकिन अधीक्षक ने गार्ड को अपने कार्यालय में रख लिया। बताया जाता है कि इसी का खुन्नस में डॉक्टर इमरजेंसी में बच्चों का इलाज नही कर कर रहे हैं।

प्रतिदिन छह से 10 बच्चे होते हैं भर्ती

इमरजेंसी में प्रतिदिन छह से 10 बच्चों को भर्ती किया जा रहा है। जिन्हें वहां से इंडोर भेज दिया जाता है। इंडोर इमरजेंसी में 24 घंटे डॉक्टर की ड्यूटी रहती है।

'केवल मायागंज अस्पताल के इमरजेंसी में ही बच्चों का इलाज किया जाता है। अन्य मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इंडोर शिशु विभाग में इमरजेंसी की व्यवस्था है। वैसे इमरजेंसी में अभी नर्स ड्यूटी रूम नहीं है। इंडोर में सारी व्यवस्था है। इसलिए इंडोर विभाग में शिशु इमरजेंसी चलाया जा रहा है।' - डॉ. आरके सिन्हा, विभागाध्यक्ष, शिशु विभाग

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