सावन के हर सोमवार को शिव पूजन व्रत रखने का है विशेष महत्व

मंझौल (बेगूसराय)। सालभर के सभी मास में सावन भगवान शिव का प्रिय मास है। इस साल श्रावण मास का पावन त्योहार मनाया जाता है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 24 Jul 2021 10:48 PM (IST) Updated:Sat, 24 Jul 2021 10:48 PM (IST)
सावन के हर सोमवार को शिव पूजन व्रत रखने का है विशेष महत्व
सावन के हर सोमवार को शिव पूजन व्रत रखने का है विशेष महत्व

मंझौल (बेगूसराय)। सालभर के सभी मास में सावन भगवान शिव का प्रिय मास है। इस साल श्रावण मास का प्रारंभ 25 जुलाई रविवार से होने जा रहा है। सनातन धर्म में सावन का हर दिन भगवान शिव की आराधना के लिए उत्तम और श्रेष्ठ होता है। इस माह में भक्तजन विधि-विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सावन माह में सोमवारी व्रत हो या फिर मंगला गौरी व्रत, दोनों ही शिव और शक्ति का आशीष प्राप्त करने का साधन है। इसे शिव मास के नाम से भी जाना जाता है। क्या है श्रावण सोमवारी और इसका महत्व :

आचार्य अविनाश शास्त्री कहते हैं कि पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव के माथे पर चंद्रमा विराजते हैं, इसलिए भगवान महादेव को चंद्रशेखर भी कहा जाता है। सोमवार का दिन जिसे ज्योतिष शास्त्र में चंद्रवार भी कहा गया है। वह चंद्रमा का विशेष दिन होता है। सावन महीने के हर सोमवार का महत्व शिव पूजन व्रत के लिए विशेष रूप से अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सावन के सोमवार को शिव के ऊपर किया गया अभिषेक मनुष्य को दुख दरिद्रता का नाश करने वाला, सुख समृद्धि को देने वाला, दैहिक दैविक एवं भौतिक इन तीनों तापों से मुक्ति देने वाला होता है। देवों के देव महादेव की होती है पार्थिव पूजा :

महादेव देवों के देव कहे जाते हैं। रामायण कथा में भगवान विष्णु के अवतार भगवान रामचंद्र लंका विजय के लिए निकले थे। उस समय सावन में समुद्र के तट पर शक्ति संचय तथा पुरुषार्थ की वृद्धि की कामना से मिट्टी के शिवलिग का निर्माण करके भगवान रामचंद्र ने शिव की उपासना की थी। उस समय से पवित्र मिट्टी से शिवलिग बनाकर पूजने की प्रथा है, जिसे मिथिला में परंपरागत रूप से पार्थिव शिवलिग का पूजन कहा जाता है। पार्थिव पूजा की शुरुआत इसी चातुर्मास में सर्वप्रथम भगवान राम के द्वारा समुद्र तट पर किया गया, जहां अभी द्वादश ज्योतिर्लिग में से एक रामेश्वरम ज्योतिर्लिग विराजमान है। भाव के भूखे हैं भगवान शिव :

वैसे तो यह दंतकथा प्रचलित है कि भगवान भाव के भूखे हैं। परंतु शास्त्र सम्मत यह निर्णय है कि मंत्राधीनम तू देवता अर्थात देवता मंत्र के अधीन हैं। ॐ नम: शिवाय ये पंचाक्षर मंत्र है। 'ॐ त्रयंबकम यजामहे सुगंधिम पुस्तिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात' यह चमत्कारी मृत्युंजय मंत्र है।

भगवान शिव रूद्राभिषेक पूजा का है विशेष महत्व :

आचार्य शास्त्री बताते हैं कि भगवान शिव के पर्याय नाम के रूप में रुद्र शब्द का भी वर्णन आया है, जिसका अर्थ होता है दुख का नाश करने वाला, इसीलिए रुद्र के अभिषेक को रुद्राभिषेक कहा जाता है। भगवान महादेव अग्नि तत्व के अधिष्ठाता हैं, इसलिए उनके ऊपर फूल, वस्त्र, बेलपत्र, धूप, दीप, नैवेद्य आदि विभिन्न प्रकार के पदार्थों से शुक्ल यजुर्वेद के अष्टाध्यायी से अभिषेक कल्याणकारी होता है।

सावन मास की इन तिथियों में है शिव का वास

कृष्ण पक्ष

पंचमी बुधवार 28/07

अष्टमी रविवार 01/08

एकादशी बुध 04/08

द्वादशी गुरुवार 05/08

अमावस्या रविवार 08/08 शुक्लपक्ष

द्वितीया मंगलवार 10/08

पंचमी शुक्रवार 13/08

षष्ठी शनिवार 14/08

अष्टमी सोमवार 16/08

द्वादशी गुरुवार 19/08

त्रयोदशी शुक्रवार 20/08

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