पवित्र रमजान के पूरे हुए तीस रोजे, ईद आज

बेगूसराय पवित्र रमजान के तीस रोजे पूरा होने के बाद शुक्रवार को जिलेभर में ईद मनाई जा र

By JagranEdited By: Publish:Thu, 13 May 2021 09:43 PM (IST) Updated:Thu, 13 May 2021 09:43 PM (IST)
पवित्र रमजान के पूरे हुए तीस रोजे, ईद आज
पवित्र रमजान के पूरे हुए तीस रोजे, ईद आज

बेगूसराय : पवित्र रमजान के तीस रोजे पूरा होने के बाद शुक्रवार को जिलेभर में ईद मनाई जा रही है। ईद का शाब्दिक अर्थ खुशी है। यह इनाम का दिन है जो तीस रोजे के समाप्त होने के बाद रोजेदारों को अल्लाह की ओर स. स. दिया जाता है। हजरत मुहम्मद साहब की हदीस है कि रमजान की आखिरी रात में सभी रोजेदारों के लिए मगफिरत कर दी जाती है। हुजूर फरमाते हैं कि रोजेदारों को इस रात में उनके श्रम की मजदूरी दी जाती है। ईद मुस्लिम आस्था का महान पर्व है। ईद सामाजिक सौहार्द, आपसी भाईचारा और मानवता का पर्व है। ईद के दिन बंदा मस्जिदों-ईदगाहों में नमाज अदा कर अपने रब का शुक्रिया अदा करता है। अपनी हैसियत के हिसाब स. फितरा और जकात निकालता है, जो गरीबों, मजबूरों, बेसहारों, यतीमों, बेवाओं और दूसरे जरूरतमंद लोगों को देय होती है। ताकि उनकी जरूरतें पूरी हों और ईद हंसी-खुशी गुजर सके। इसी लिहाज स. इसे ईद उल फितर भी कहा जाता है।

ईद के दिन गरीब और बेसहारा लोगों का रखें खास ख्याल : कारी मौलाना कमरे आलम

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संवाद सहयोगी, बखरी (बेगूसराय) : शिक्षक सह कारी मौलाना कमरे आलम ने कहा कि रोजा के साथ रमजान के दो अहम पहलू जकात और सदक ए फितर भी है। जकात इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। जकात अमीरों के धन में गरीबों का हिस्सा है। जकात सभी साहब-ए-निसाब पर फर्ज है। इसके निसाब में सोना, चांदी, रुपये, पैसा और तिजारत की वस्तुओं को शामिल किया जाता है। जकात में बंदे को अपनी आमदनी का चालीसवां हिस्सा अर्थात कुल बचत का ढाई प्रतिशत गरीबों के लिए निकालना होता है। हालांकि यह वर्ष भर में कभी भी निकाला जाता है। परंतु, इसे रमजान में निकालने का रिवाज बन गया है। जबकि सदका ए फितर के निसाब में रोजमर्रा के उपयोग में आनेवाली सभी चीजों को शामिल किया जाता है। मौलाना ने कहा कि जकात नहीं निकालने पर जकात में शामिल सारा माल हराम रहता है। जबकि सदका ए फितर नहीं निकालने से बंदे का रोजा आसमान और जमीन के बीच लटका रहता है। अर्थात बंदे को रोजा का शवाब नहीं मिलता है।

मौलाना ने ईद के दिन गरीबों, मजबूरों और जरूरतमंदों का खास ख्याल रखने की बात कही। उन्होंने कहा कि जकात और सदका ए फितर का असली मकसद ही यही है कि गरीबों की ईद भी हंसी-खुशी गुजर सके। ऐसा न हो कि पर्व के दौरान अमीर और उसके बच्चे मुर्ग मुसल्लम खाएं, अच्छे अच्छे कीमती कपड़े पहने और गरीबों के घर चूल्हा तक नहीं जले। गरीबों की मदद और उसकी सेवा ही ईद की सच्ची खुशी होगी।

नमाज में देश-दुनिया से कोरोना दूर होने की मांगें दुआ

मौलाना ने कहा कि दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना से तबाह हो रही है। बीमारी से हर तरफ मौत का मंजर नजर आ रहा है। कोविड की दूसरी लहर से हमारे देश में भी हाहाकार मचा हुआ है। इसलिए जरूरी है कि हम वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का सख्ती से पालन करें। ईद की नमाज घर पर ही अदा करें। मजमा और भीड़ भाड़ न जुटाएं। हाथ मिलाने, गले मिलने से परहेज करें। एक दूसरे को बधाई देने उसके घर आने जाने से खुद को रोकें। मौलाना ने सभी रोजेदारों से ईद की नमाज के बाद मुल्क की सलामती तथा कोरोना से मुक्ति की दुआ की अपील की है।

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