बखरी में फिर लौटने लगी है देसी मछली मंडी की रौनक

बेगूसराय। बखरी में मछली मंडी की रौनक फिर से लौटने लगी है। इसकी बड़ी वजह देसी यानि स्थानीय मछलियां हैं। ये पिछले डेढ़ दशक से कम हो रही वर्षा के कारण बाजार से लुप्त हो चुकी थीं। पिछले वर्ष हुई पर्याप्त वर्षा से अब देसी मछलियां यहां के आढ़तों की शोभा बढ़ाने लगी हैं। उसे अपने पुराने रुतबे को पाने में अभी थोड़ा समय और लगेगा।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 18 Jun 2021 11:20 PM (IST) Updated:Fri, 18 Jun 2021 11:20 PM (IST)
बखरी में फिर लौटने लगी है देसी मछली मंडी की रौनक
बखरी में फिर लौटने लगी है देसी मछली मंडी की रौनक

बेगूसराय। बखरी में मछली मंडी की रौनक फिर से लौटने लगी है। इसकी बड़ी वजह देसी यानि स्थानीय मछलियां हैं। ये पिछले डेढ़ दशक से कम हो रही वर्षा के कारण बाजार से लुप्त हो चुकी थीं। पिछले वर्ष हुई पर्याप्त वर्षा से अब देसी मछलियां यहां के आढ़तों की शोभा बढ़ाने लगी हैं। उसे अपने पुराने रुतबे को पाने में अभी थोड़ा समय और लगेगा। कारण आज भी बाजार पर आंध्र प्रदेश की मछलियों का दबदबा कायम है। उसकी सर्वसुलभता और सस्ती कीमतें देसी मछलियों के व्यापार के लिए चुनौती बनी हुई है। क्षेत्र के मत्स्यपालकों तथा मछुआरों को विश्वास है कि जल्द ही आंध्र प्रदेश की मछलियों के तिलिस्म को तोड़ने में कामयाब होंगे। ताल तलैया एवं तालाबों में आज अधिक वजन वाली रोहू, कतला, मिरकी, सौरी जैसी खालिस देसी मछलियों के साथ ग्रासकट, बी ग्रेड, भिडिग आदि विदेशी मछलियों का भी बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा है।

देसी मछलियां रही हैं क्षेत्र की पहचान

यहां के आढ़तियों के मार्फत स्थानीय मछली रेल गाड़ियों एवं ट्रकों से दूसरे प्रदेशों में जाती थी। इस वजह से बखरी की मछलियों का नाम दूर-दूर तक फैला हुआ था। उस समय क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती थी। इससे मत्स्य पालन और उसका व्यापार यहां के लोगों की आजीविका का साधन था। कम वर्षा के कारण सूख गए तालाब व पोखर : प्रति वर्ष कम होती वर्षा के कारण धरातल के विभिन्न जलस्त्रोतों से पानी गायब हो गया। सूखा पड़ने के कारण क्षेत्र के कचना, दासिन, मनडुप्पा, चेनवारी, हथौड़ी, बसाही, ढेनुआ, रतनाहा, विशुनपुर, परिहारा, बहुआरा के चौर व मोइन आदि जलकरों के अलावा यहां के तालाब जल विहीन हो गए। इससे इसमें पलने वाली देसी मांगुर, कबई, इचना, पोठी, रेहु, सिगही, गैंचा, पटईहा, सौरी, कौआ, सूती, चन्ना, पटासी, गुर्रा समेत करीब दो सौ किस्म की देसी मछलियों की प्रजातियां लगभग विलुप्त हो चुकी थी। इन चौरों में मछलियों की जगह गेहूं एवं सरसों की फसल लहलहाती थी, लेकिन अब नजारा बदल चुका है। मछुआरों को उम्मीद फिर से लौटेगी पुरानी प्रतिष्ठा :

स्थानीय मछुआरे दिलीप सहनी, शंकर सहनी, कारी सहनी, संतोष सहनी, मुन्ना सहनी, फुलेन सहनी, अरुण सहनी, चंदन सहनी, उमेश सहनी समेत अढतिया रामदेव सहनी एवं रंजीत सहनी को उम्मीद है कि देसी मछलियों का बाजार फिर से रंग में आएगा और मछलियों के मामले में बखरी अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को प्राप्त करने में सफल होगा। यहां की मछलियां आसपास के जिलों सहित बंगाल, पंजाब, गुवाहाटी, चंडीगढ समेत देश के अन्य मंडियों में फिर से अपनी धाक जमाएगी। सरकार के स्तर से भी देसी मछलियों के पालन एवं उनके संवर्धन के लिए कई मत्स्य विकास योजनाएं संचालित की गई हैं। इनमें मछुआरे की बेहतरी के साथ समग्र मत्स्य विकास योजना के तहत आद्र भूमि पर तालाब निर्माण, पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार, पंपसेट निर्माण, तालाब-पोखरो में पानी भरने की व्यवस्था सहित कई योजनाएं शामिल हैं, जिन पर 50 फीसद का अनुदान भी है।

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