फेरो फेरो की सोने डाला फेरो.., सामा के गीत से गूंज रहा गांव

बेगूसराय। भाई-बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाए जाने वाला लोक पर्व सामा-चकेबा शनिवार कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी गुरुवार से प्रारंभ हो गया। उदीयमान भगवान भास्कर को अ‌र्घ्य दे सुबह से ही सामा-चकेबा की प्रतिमा खरीदारी के लिए बहनों की भीड़ कुंभकारों के यहां उमड़ पड़ी।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 12 Nov 2021 12:21 AM (IST) Updated:Fri, 12 Nov 2021 12:21 AM (IST)
फेरो फेरो की सोने डाला फेरो.., सामा के गीत से गूंज रहा गांव
फेरो फेरो की सोने डाला फेरो.., सामा के गीत से गूंज रहा गांव

बेगूसराय। भाई-बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाए जाने वाला लोक पर्व सामा-चकेबा शनिवार कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी गुरुवार से प्रारंभ हो गया। उदीयमान भगवान भास्कर को अ‌र्घ्य दे सुबह से ही सामा-चकेबा की प्रतिमा खरीदारी के लिए बहनों की भीड़ कुंभकारों के यहां उमड़ पड़ी। बहनें अपने-अपने पसंद की प्रतिमाएं खरीदारी कर रही हैं। 150 से लेकर 1500 तक की प्रतिमा बिक रही है। यह पर्व नौ दिन का होता है।

साम-चक, साम-चक अइहअ हे..

बहनों द्वारा कार्तिक माह के सप्तमी से प्रत्येक दिन शाम में घर के बाहर किसी चौराहे पर समूह में सामा-चकेबा खेलती हैं। इस दौरान लड़कियां साम-चक, साम-चक अइहअ हे.., वृंदावन में आग लगलै, चुगला के झरका, फेरो फेरो की सोने डाला फेरो, जैसे कई लोकगीत भी गाती है। वहीं लकड़ी के बनाए चुगला को भी जलाया जाता है। पुतला जलाने के पीछे मान्यता है कि चुगला का पुतला जलाने से भाई बहन के बीच कभी कटुता नहीं आती है। कार्तिक पूर्णिमा को सामा-चकेबा की विदाई की जाती है। सामा-चकेबा को नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है। यह लोकपर्व भाई-बहन के प्रति दूसरों के विद्वेष को अपने विवेक बुद्धि से नष्ट करने का बेहतरीन उदाहरण है। बहनें इस दौरान तरह-तरह के स्वांग रच सामा-चकेबा पर बीते प्रसंगों को लोकगीतों के माध्यम से देर रात तक व्यक्त करती हैं। मंझौल और बखरी अनुमंडल के हर घर में शाम ढलते ही यह उत्सव अपने असली अलौकिक रूप में दिखता है। गांव की गलियों-चौराहों से निकल रही फेरो फेरो की सोने डाला फेरो, चुगला के मुंह झड़काबो आदि.. सामा चकेवा भाई-बहन संबंधित बहनों-महिलाओं द्वारा गाए जा रहे सुमधुर लोक संगीत शाम ढलते जो प्रारंभ होता है, वह देर रात तक गूंजता रहता है।

सरोकार से जुड़ा है सामा-चकेबा पर्व

लोक पर्व सामा-चकेबा में धार्मिकता से अधिक नाड़ी मुक्ति के संघर्ष की समग्र गाथा परिलक्षित होती है। पर्व नाड़ी मुक्ति के विमर्श से जुड़ी है। पंडित बनारसी झा नारायणपुरी बताते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण की बेटी सामा सहेलियों के साथ मुनि के आश्रम में जाने पर चुगला (चुरक) उसके खिलाफ षडयंत्र रचता है। वह भगवान श्रीकृष्ण को अपने तर्कों से बहकाने में कामयाब हो जाता है। सामा की चंचलता का अन्य कन्याओं पर गैर परंपरागत असर पड़ने का हवाला चुगला ने कृष्ण को दिया। चुगला की बातों में आकर भगवान श्रीकृष्ण ने पुत्री सामा को पक्षी बन जाने का शाप दे दिया। सामा को पक्षी के रूप में देखकर आहत पति भी तप कर पक्षी का रूप धारण कर लिये। कृष्ण के पुत्र सांमा अपनी बहन को इस से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु की तपस्या में लीन हो गया। भगवान विष्णु प्रसन्न हो जाते हैं, पर बताते हैं कि सामा को शाप मुक्त कर देने पर भी समाज उसे सहजता से स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने समाज को मनाने और चुगला का पर्दाफाश करने की सलाह सांब को दी। सांब ने घूम-घूम कर लोगों को चुगला के खिलाफ गोलबंद किया। पुतला जलाकर चुगला का विरोध किया। उन्हीं दिनों से भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक के रूप में महिलाएं-बहनें इस लोक पर्व को मनाती आ रही हैं।

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