कोरोना ने पकड़ी रफ्तार तो बदल गया लोगों का व्यवहार और विचार

बेगूसराय कोरोना महामारी की आक्रामक और जानलेवा दूसरी लहर ने लोगों को परेशान कर र

By JagranEdited By: Publish:Fri, 30 Apr 2021 09:34 PM (IST) Updated:Fri, 30 Apr 2021 09:34 PM (IST)
कोरोना ने पकड़ी रफ्तार तो बदल गया लोगों का व्यवहार और विचार
कोरोना ने पकड़ी रफ्तार तो बदल गया लोगों का व्यवहार और विचार

बेगूसराय : कोरोना महामारी की आक्रामक और जानलेवा दूसरी लहर ने लोगों को परेशान कर रखा है। कोरोना संक्रमण के इस भयावह खतरे ने लोगों के व्यवहार और विचार को एकदम बदल कर रख दिया है। यह बदलाव अब सरेआम दिखना भी प्रारंभ हो गया है। गमछे या मास्क से नाक, मुंह, ढके अधिकतर लोग सड़कों पर नजर आने लगे हैं। देर रात तक गुलजार रहनेवाली सड़कें शाम छह बजे के बाद सुनी हो जाती हैं। बाजार में लेनदेन में लोग नेट बैंकिग का प्रयोग और रुपये से परहेज हो रहा है। यहां तक कि आस्था में सतर्कता के साथ बदलाव दिख रहा है। मंदिर और मस्जिदों में श्रद्धालुओं की भीड़ नहीं रहती है। क्योंकि संक्रमण का दौर खत्म होने के बाद भी जनजीवन को पटरी पर लौटने में वक्त लगेगा। इसलिए कार्य संस्कृति भी बदलेगी।

लोगों का बदल रहा व्यवहार-विचार

कोरोना के तीव्र प्रकोप से लोगों का व्यवहार-विचार बदल गया है। एक-दूसरे से हंसकर, गले मिलकर बतियाने वाले लोग शारीरिक दूरी का पालन करने लगे हैं। कोरोना से बचाव के लिए यह आवश्यक भी है। अतिथि और शुभचितक की आवाजाही बंद है। लोग मेहमानबाजी से कतराने लगे हैं।

परदेश से हो रहा मोह भंग

कोरोना संक्रमण को लेकर दिल्ली मुंबई आदि महानगरों में लगे लॉकडाउन में कामकाज बंद हो गया। इसके बाद अन्य राज्यों से काफी संख्या में लोग घरों को लौट रहे हैं। पंकज कुमार, संजय दास, मोहम्मद अफरोज बताते हैं कि कोई बस से तो कोई ट्रक पर सवार होकर घर पहुंच रहा है। इससे लोगों का परदेश से मोह भंग हो रहा है। वे अपने गांव में ही रोजगार की तलाश में जुटे हैं।

समाजशास्त्री प्रो. अरविद दास बताते हैं कि कोरोना का यह संक्रमण काल सामाजिक बदलाव का कारण बनेगा। संक्रमण से पहले जिस दुनिया में लोग जीते थे, अब वहां लौटने में वक्त लगेगा। लोगों के व्यवहार और विचार में कई परिवर्तन होंगे और कार्य संस्कृति बदल जाएगी। लोगों का यह बदलता विचार व्यवहार कोरोना वायरस की रोकथाम में कारगर उपाय साबित हो रहा है। आगे भी इस व्यवहार विचार को बरकरार रख हम किसी भी संक्रामक महामारी को फैलने से रोक सकते हैं। कहा भी गया है जब लोग तकलीफ दुख में पड़ते हैं, तभी असली बात सोचते हैं।

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