सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध है तिलडीहा दुर्गा मंदिर
बांका। प्रखंड मुख्यालय से छह किलोमीटर एवं मुंगेर जिले के तारापुर अनुमंडल से दो किलोमीटर बदुआ नदी तट के पूर्वी भाग में तिलडीहा दुर्गा मंदिर हरिवंशपुर गांव में अवस्थित है।
बांका। प्रखंड मुख्यालय से छह किलोमीटर एवं मुंगेर जिले के तारापुर अनुमंडल से दो किलोमीटर बदुआ नदी तट के पूर्वी भाग में तिलडीहा दुर्गा मंदिर हरिवंशपुर गांव में अवस्थित है। शुरू में पहले यहां घनघोर जंगल हुआ करता था, लेकिन आज रमणीक बन गया है। यह शक्तिपीठ के रुप में प्रसिद्ध है।
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मंदिर का इतिहास
मंदिर की स्थापना 1603 में पश्चिम बंगाल के नदिया शांतिपुरम जिले के दालपोलसा गांव निवासी हरबल्लव दास मंदिर ने की थी। हरबल्लव दास शंख, अर्घा और खडग लेकर आए थे, जहां माता ने इस स्थान पर मंदिर निर्माण के लिए स्वप्न दिया था। तब से आज तक स्व दास के वंशज मंदिर के मेढ़पति हैं।
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मंदिर की विशेषताएं
-बंग्ला रीति रिवाज से होती है मां की पूजा
-स्थापना काल से ही मिट्टी का है गर्भगृह
- एक ही मेढ़ पर कृष्ण, काली, भगवती, महिषासुर सहित 13 प्रकार की प्रतिमाएं स्थापित होती है।
- तिलडीहा को कृष्ण काली भगवती नाम से भी जानी जाती है।
- मंत्रसिद्धि के लिए जानी जाती है, दुर्गा पूजा में औघड़ों का रहता है जमावड़ा
-पहली पूजा से नवमी तक 25 हजार से भी अधिक पड़ती है पाठा बलि
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तिलडीहा दुर्गा मंदिर में पहली पूजा से लेकर दशमी पूजा तक अलग-अलग विधि से बंग्ला रीति रिवाज के अनुसार पूजा होती है। तिलडीहा के दरबार में जो भी भक्त सच्चे मन से आते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
पंडित श्याम आचार्य, मुख्य पुजारी तिलडीहा मंदिर
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मां कि शक्ति परोक्ष नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष है। जो भी भक्त आते हैं, मन्नतें पूरी होती है। दुर्गा पूजा में प्रशासन के साथ-साथ क्षेत्रवासियों का भी सहयोग भरपूर रहता है। माता की कृपा से सुख शांति बरकरार है।
अनिरुद्ध चन्द्र दास, मेढ़पति, मंदिर