डेढ़ सौ वर्षों से बेला में लग रहा लक्ष्मी नारायण मेला

बांका। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शुमार बेला गांव करीब डेढ़ सौ वर्षों से लक्ष्मी नारायण मेला के लिए प्रसिद्ध है। शरद पूर्णिमा के दिन प्रतिवर्ष मेले की शुरुआत होती है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 31 Oct 2020 10:04 PM (IST) Updated:Sat, 31 Oct 2020 10:04 PM (IST)
डेढ़ सौ वर्षों से बेला में लग रहा लक्ष्मी नारायण मेला
डेढ़ सौ वर्षों से बेला में लग रहा लक्ष्मी नारायण मेला

बांका। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शुमार बेला गांव करीब डेढ़ सौ वर्षों से लक्ष्मी नारायण मेला के लिए प्रसिद्ध है। शरद पूर्णिमा के दिन प्रतिवर्ष मेले की शुरुआत होती है। जो तीन दिनों तक निरंतर चलता रहता है। मेले में थाना क्षेत्र के अलावा सुईया, झाझा थाना क्षेत्र के बोड़वा, कर्मा आदि जगहों से दुकानदार व श्रद्धालु पहुंचते हैं।

मेले का आयोजन रात के समय होता है। जो अल सुबह तक चलते रहता है। मेले में बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय की भागीदारी होती है। जिसमें विवाह के लिए वर एवं कन्या का भी चयन होता है। इस बार कोरोना संकट को लेकर मेला लगने पर संशय बरकरार है। हालांकि पूजा समिति द्वारा प्रतिमा स्थापित किया जा रहा है। बेला गांव एक दशक पूर्व जंगल एवं पहाड़ों के बीच दुर्गम जगहों पर स्थित था। जहां तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग तक नहीं थी। लोग कोसों जंगली पहाड़ी रास्ता सफर तय कर मेले में पहुंचते थे। दुर्गम इलाका होने कारण ही नक्सली संगठन का उक्त गांव जन्मस्थली बन गया था। लेकिन लक्ष्मी नारायण मेला में नक्सलियों ने कभी खलल नहीं डाला। सड़क निर्माण बाद गांव उक्त गांव अस्तित्व में आया। और पुलिसिया कार्रवाई कारण नक्सलियों को उक्त इलाके से तौबा करना पड़ा। लक्ष्मी नारायण मंदिर स्थापनाकाल से ही मिट्टी की है। जहां हर किसी श्रद्धालुओं की मन्नतें पूरी होती है। पुजारी बाजो तुरी ने बताया डेढ़ सौ वर्षों के इतिहास में पहली बार कोरोना संकट को लेकर मेला लगने पर संशय बरकरार है। यहां मेला लगता है। जिसमें 25 किलोमीटर इलाके से श्रद्धालु पहुंचते हैं।

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