जल संरक्षण का मेढ़ा मॉडल अब दूसरे जिलों में भी होगा लागू

बांका। जल संरक्षण के मेढ़ा मॉडल को अब अन्य जिलों में लागू करने की तैयारी की जाएगी। इसके लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर रांची कृषि विश्वविद्यालय रांची व राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा के प्रसार शिक्षा निदेशक ने अपनी सहमति दे दी।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 12 Aug 2020 11:54 PM (IST) Updated:Wed, 12 Aug 2020 11:54 PM (IST)
जल संरक्षण का मेढ़ा मॉडल अब दूसरे जिलों में भी होगा लागू
जल संरक्षण का मेढ़ा मॉडल अब दूसरे जिलों में भी होगा लागू

बांका। जल संरक्षण के मेढ़ा मॉडल को अब अन्य जिलों में लागू करने की तैयारी की जाएगी। इसके लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर, रांची कृषि विश्वविद्यालय रांची व राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा के प्रसार शिक्षा निदेशक ने अपनी सहमति दे दी। बुधवार को इसको लेकर बिहार-झारखंड के सभी केविके की ऑनलाइन समीक्षा की गई। जिसमें बांका के कटोरिया के मेढ़ा गांव में लागू जल संरक्षण के मॉडल की सराहना की गई। यहां पर जल संरक्षण का यह मॉडल निकरा प्रोजक्ट के माध्यम से संचालित किया जा रहा है।

दरअसल, मेढ़ा गांव में आज से दो साल पहले तक पानी की उपलब्धता काफी कम थी। पहाड़ी इलाका होने के कारण यहां के लोगों को पानी के लिए काफी परेशानी उठाना पड़ता था। इस कारण यहां के लोग मवेशी आदि का पालन नहीं करते थे। कृषि विज्ञान केंद्र बांका के विज्ञानियों को जब इसकी जानकारी मिली तो उनलोगों ने गांव का दौरान किया और वहां पर वर्षा जल संरक्षण के लिए काम शुरू किया। इसके बाद वहां की पूरी तस्वीर ही बदल गई। आज वहां न केवल लोग मवेशी का पालन कर रहे हैं, बल्कि वहां पर दो व्यवसायिक डेयरी का भी सफलतापूर्वक संचालन किया जा रहा है। इससे हर दिन बड़ी मात्रा में दूग्ध उत्पदान हो रहा है।

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क्या है मेढ़ा मॉडल

मेढ़ा गांव में वर्षा जल के संरक्षण के लिए जमीन पर टंकी का निर्माण किया गया है। वर्षा होने पर छत आदि का पानी इस टंकी में जमा हो जाता है। इसके बाद इस पानी का उपयोग वहां के लोग डेयरी के संचालन में करते हैं। डेयरी के वेस्ट पानी का उपयोग फिर हरा चारा के उत्पादन में करते हैं। साथ ही डेयरी के वेस्ट पानी का उपयोग किचन गार्डन के लिए भी करते हैं। इस तरह वर्षा जल के एक-एक बूंद पानी का उपयोग यहां के किसान कर रहे हैं। जल संरक्षण के इस मॉडल की लागत भी काफी कम है। इसे कोई भी आसानी से अपना सकता है। इस मॉडल के लिए तत्कालीन जिलाधिकारी ने वहां की महिला किसान वंदना कुमारी को पुरस्कृत किया था।

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किचन गार्डन की योजना भी कारगर

पशुपालक अब पशुपालन के साथ-साथ बचे हुए थोड़े से भाग में सब्जी का उत्पादन भी कर सकते हैं। इसके लिए केविके की ओर से किचन गार्डन के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रह है। फिलहाल यह एक दो जगह चल रहा है। समीक्षा बैठक के दौरान बीएयू के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. आरके सोहने ने बांका केविके की इस पहल का भी सराहना किया। उन्होंने कहा कि इससे पशुपालन अपने जरूरत की सब्जियों का आसानी से उत्पादन कर सकेंगे। उन्हें किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। समीक्षा बैठक के दौरान डॉ. मुनेश्वर प्रसाद, डॉ. धर्मेंद्र कुमार, डॉ. रघुवर साहू, राजू कुमार, राजीव रंजन, देवेन्द्र प्रसाद सहित अन्य विज्ञानी उपस्थित थे।

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