कैथी लिपि को सहेज रहे मुकेश, पिता से मिली विरासत

बांका। जिला में अधिकतर भूमि विवाद की जड़ उसका कागजात बना है। इसमें सबसे बड़ी बाधा कैथी लिपी बनकर सामने आ रही है। समाहरणालय नकलखाना में काफी पुराने दस्तावेज पड़े हैं लेकिन कैथी जानकार नहीं होने के कारण सभी कागजात धूल फांक रहे हैं। लिपि का जानकार नहीं होना सबसे बड़ी परेशानी बनकर सामने आ रही है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 18 Oct 2021 09:31 PM (IST) Updated:Mon, 18 Oct 2021 09:31 PM (IST)
कैथी लिपि को सहेज रहे मुकेश, पिता से मिली विरासत
कैथी लिपि को सहेज रहे मुकेश, पिता से मिली विरासत

बांका। जिला में अधिकतर भूमि विवाद की जड़ उसका कागजात बना है। इसमें सबसे बड़ी बाधा कैथी लिपी बनकर सामने आ रही है। समाहरणालय नकलखाना में काफी पुराने दस्तावेज पड़े हैं, लेकिन कैथी जानकार नहीं होने के कारण सभी कागजात धूल फांक रहे हैं। लिपि का जानकार नहीं होना सबसे बड़ी परेशानी बनकर सामने आ रही है।

विरासत में मिली लिपि को पुरानी ठाकुरबाड़ी निवासी मुकेश सिंहा आगे बढ़ा रहे हैं। अपने पिता अरूण कुमार सिंहा से उन्होंने इसे विरासत में सीखा है। मुकेश के पिता जिला में एक मात्र कैथी लिपि के जानकार बचे हैं। समाहरणालय में किसी भी दस्तावेज को पढ़ने की जरूरत होती है, तो प्रशासन उन्हें बुलाता है।

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1905 से दस्तावेज समाहरणालय में जमा

समाहरणालय के नकलखाना में 1905 से ही दस्तावेज जमा है। सभी कैथी लिपि में ही है। यहां पर अब कोई विकल्प नहीं होने के कारण सभी दस्तावेज की फोटो काफी उपलब्ध कराया जाता है। जब इसको पढ़ने की बारी आती है, तो परेशानी बढ़ जाती है। ऐसे में प्रशासन के पास सिर्फ मुकेश सिंहा और उनके पिता अरूण कुमार सिंहा रह जाते हैं। जिन्हें बुलाकर पढ़ने का काम सौंपा जाता है।

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केवल रजौन का ही दस्तावेज हिदी में उपलब्ध

नकलखाना में जिला के सभी अंचल का दस्तावेज कैथी लिपि में ही है। नए सर्वे के बाद रजौन के सभी दस्तावेज को हिदी का रूप दिया गया है। रजौन के जमीन के सारे दस्तावेज हिदी में हो जाने के कारण परेशानी कम हो रही है। जिला प्रशासन जल्द ही अन्य प्रखंडों के दस्तावेज को हिदी का रूप देने की जुगत में है।

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पिता की फटकार पर सीखी कैथी

अरूण कुमार सिंहा अपने बाद यह काम बेटे मुकेश को सौंपना चाह रहे थे। कुछ समय तक मुकेश को कैथी में कोई रुचि नहीं थी, लेकिन पिता की फटकार ने उन्हें कैथी लिपि की ओर रूझान बढ़ा दिया। तीन साल की कड़ी मशक्कत के बाद मुकेश ने लिपि में दक्षता हासिल कर ली। अब पिता के सारे काम मुकेश ही निपटा रहे हैं। मुकेश अब कैथी के सभी दस्तावेज को कंप्यूटर पर अपडेट कर रहे हैं। मुकेश प्रशासन से कुछ सहायता की राह देख रहे हैं।

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