29 साल बाद भी दूर नहीं हुआ बांका का पिछड़ापन
बांका। पिछड़ा जिले में शुमार बांका है। स्थापना के 29 साल बाद भी जिला का पिछड़ापन दूर नहीं हो सका है।
बांका। पिछड़ा जिले में शुमार बांका है। स्थापना के 29 साल बाद भी जिला का पिछड़ापन दूर नहीं हो सका है। सरकारी प्रयास भी नाकाम रहे। 21 लाख से अधिक आबादी वाले जिले में उद्योग धंधे से लेकर रोजगारपरक योजनाएं नहीं चलने से पिछड़ा है। वैसे, भारत सरकार के नीति आयोग ने जिला को आकांक्षी योजना में वर्ष 2018 में शामिल कर विकसित जिला बनाने की योजना तैयार की है।
इस योजना के तहत जिले में शिक्षा, स्वास्थ्य व पोषण, आधारभूत संरचना, कौशल विकास, आर्थिक मजबूती के लिए पांच करोड़ की राशि भी आवंटित की है। इसमें 190 योजनाएं ली गई है। जिसमें 177 योजनाएं पूर्ण हुई है। शेष अधूरी है। इसके बाद से राशि भी नहीं मिली है।
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पिछड़ेपन के कारण
कृषि प्रधान जिला में 42 हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन बंजर है। चांदन, ओढ़नी, चीर, सुखनिया, बदुआ सहित अन्य नदियों के बाद भी खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाने से किसान वर्षा पर आश्रित रहते हैं। मानक के विपरित बालू खनन के कारण सिचाई संरचना ध्वस्त होते चली गई। शिक्षा के स्तर में भी सुधार नहीं होने से साक्षरता दर 58.17 प्रतिशत से आगे नहीं बढ़ सकी। उद्योग धंधे स्थापित नहीं होने से पलायन यहां की बड़ी समस्या है। लगभग दो लाख से अधिक लोग दूसरे प्रदेशों में काम करते हैं।
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नहीं लगे उद्योग धंधे
चार हजार मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए अल्ट्रा मेगा पावर प्लांट स्थापना के लिए 2040 एकड़ जमीन अधिग्रहण का प्रस्ताव भी दिया। पर राशि नहीं मिलने से अधिग्रहण का प्रस्ताव अधर में लटका हुआ है।
इसके अलावा वर्ष 2006-7 में 16 हजार करोड़ से बौंसी प्रखंड में अभिजीत पावर प्लांट की स्थापना के लिए 700 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था। इससे 45 सौ मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य था। पर पानी विवाद व कोल लिकेंज घोटाले के कारण प्लांट उजड़ गया। 1980 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर सिंह ने समुखिया में सिरामिक फैक्ट्री की स्थापना की थी। यहां चीनी मिट्टी आधारित सामान का निर्माण शुरू हुआ था, लेकिन सरकारी उपेक्षा के कारण सिरामिक फैक्ट्री खंडहर में तब्दील हो गई है। अमरपुर का क्षेत्र दशकों से गन्ना उत्पादन के लिए जाना जाता है। यहां के गुड़ की मांग कोलकता सहित अन्य महानगरों में होती थी। लेकिन, आज यहां के किसान इससे मुंह मोड़ रहे हैं।
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पोषण और शिक्षा पर भी विशेष ध्यान
आकांक्षी योजना के तहत दो साल पहले जिला प्रशासन को पांच करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। इन रुपये को प्रशासन ने जिले के 18 आंगनबाड़ी केंद्रों के जीर्णोद्धार पर खर्च कर दिए। इन केंद्रों को मॉडल आंगनबाड़ी केंद्रों के रुप में विकसित किया गया है। यहां पर बच्चों के लिए तमाम तरह के संसाधन उपलब्ध हैं। साथ ही उनके मनोरंजन के सभी संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं। इसके साथ ही उन्नयन बांका के तहत पांच दर्जन से अधिक स्मार्ट क्लास शुरु हुए थे।
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क्या है आकांक्षी योजना
भारत सरकार का नीति आयोग ने पिछड़ा जिला में शामिल बांका का चयन किया है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य बांका का विकास विकसित जिले की तर्ज पर करना है। इसके लिए विभागों के बीच समन्वय स्थापित कर योजनाएं चलाती जाती है। इसके लिए टीम का गठन किया गया है। टीम यहां के विकास का मॉडल तैयार कर योजनाओं के क्रियान्वयन में जिला प्रशासन का सहयोग करती है।
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बांका के बारे में
क्षेत्रफल : 3,020 वर्ग किमी
प्रखंड : 11
गांवों की संख्या : 2000
आबादी : 2,034,763
घनत्व : 670/वर्ग किमी
साक्षरता : 58.17 प्रतिशत
लिंगानुपात : 907
अनुमंडल: 01
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कोट
आकांक्षी योजना के तहत पांच करोड़ की राशि आवंटित हुई है। इसमें 190 योजनाएं ली गई है। 177 पूर्ण हो चुकी है। शेष 13 लंबित है। शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य सहित अन्य क्षेत्र में कार्य किए जा रहे हैं। राशि आवंटित होते ही विकास परक योजनाओं की प्लानिग की जाएगी।
ओमप्रकाश सिंह, नोडल पदाधिकारी, आकांक्षी योजना
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बोले अर्थशास्त्री
फोटो 23 बीएएन 3
औद्योगिक पिछ़ड़ापन के कारण जिले का विकास नहीं हुआ है। कृषि क्षेत्र में संसाधन की कमी रही है। लघु व कुटीर उद्योग के लिए प्रोत्साहन नहीं मिल सका है। बैंकों की रवैया भी ठीक नहीं रही है। उत्पादों का बाजार का अभाव रहा है। इस कारण समुचित विकास नहीं हो सका है। सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरुरत है। किसानों के उत्पाद को सही मूल्य दिलाने से भी विकास हो सकता है।
राकेश रंजन, अध्यापक अर्थशास्त्र, आरएमके विद्यालय