धान का भनभनिया व धड़ंगा भगा रहा हाकिम की चिट्ठी

बांका। हम चांद में बसने और 5-जी की भले तैयारी कर रहे हों मगर हमारे किसान प्रेमचंदयुगीन खेती से आगे नहीं निकल पाए हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 31 Oct 2020 10:06 PM (IST) Updated:Sat, 31 Oct 2020 10:06 PM (IST)
धान का भनभनिया व धड़ंगा भगा रहा हाकिम की चिट्ठी
धान का भनभनिया व धड़ंगा भगा रहा हाकिम की चिट्ठी

बांका। हम चांद में बसने और 5-जी की भले तैयारी कर रहे हों, मगर हमारे किसान प्रेमचंदयुगीन खेती से आगे नहीं निकल पाए हैं। इस बार मानसून की समय पर हुई अच्छी बारिश से हर इलाके में धान की फसल लहलहा रही है। पर अब अंतिम वक्त कई इलाके में तरह-तरह की बीमारियों ने फसल पर हमला बोल दिया है।

भनभनिया, फॉल्स स्मर्ट, धड़ंगा आदि बीमारियों से फसल का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो रहा है। कुछ सतर्क किसान इससे बचने के लिए दवाई का प्रयोग करते हैं। लेकिन बड़ी संख्या में किसान खेतों की बीमारी भगाने के लिए अब भी हाकिम की चिट्ठी का सहारा लेते हैं। अभी धान खेतों की तरफ निकलने पर खेतों में डंडे के सहारे लगी ऐसी पाती खूब दिख रही है।

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आदेश दिया जाता है कि खेत खाली करे

खेतों में लगाई जा रही पाती किसी सरकारी कर्मी से लिखवा कर लगाई जाती है। अमरपुर के किसान नाटू राम, बत्तीस राम आदि ने बताया कि धान खेतों में बाली निकलने के बाद धड़ंगा और भनभनिया जैसी बीमारी खूब लगती है। परंपरा से किसान इससे बचने के लिए किसी से आदेश की चिट्ठी लिखावते हैं। इसमें लिखा जाता है कि आप सभी को आदेश दिया जाता है कि सूचना के तुरंत बाद आप खेतों को खाली कर दें। अन्यथा आपके खिलाफ सख्ती से कार्रवाई की जाएगी। किसानों ने बताया कि गांव में वार्ड, पंच, मुखिया, किसान सलाहकार, शिक्षक किसी भी सरकार से जुड़े लोगों से यह चिट्ठी लिखवाई जाती है। इसे किसी लकड़ी के डंडे के सहारे खेत में बीमारी वाले हिस्से में खड़ा कर देते हैं। किसानों का मानना है कि ऐसा करने से सामान्य तौर पर बीमारी का प्रकोप कम हो जाता है। प्रकोप नहीं कम होने पर किसान दवा का भी उपयोग करते हैं।

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उन्हें खेतों में चिट्ठी लगाने की कोई जानकारी नहीं है। कृषि विज्ञान केंद्र किसानों को लगातार जागरूक कर रहा है। हर बीमारी से पहले इलाके में जाकर कृषि विज्ञानी किसानों को संबंधित दवा की जानकारी दे रहे हैं। किसान इसका उपयोग कर फसलों की बीमारी भगा सकते हैं। चिट्ठी लगाना पुरानी परंपरा हो सकती है, लेकिन इससे बीमारी भागने की कोई गारंटी नहीं है।

मुनेश्वर प्रसाद, समन्वयक, कृषि विज्ञान केंद्र

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