मुर्गियों में फैल रही चेचक की बीमारी

बांका। जिला में इस समय पशुओं एवं मुर्गी में फैल रहे चेचक बीमारी से पशुपालकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 10 May 2021 09:33 PM (IST) Updated:Mon, 10 May 2021 09:33 PM (IST)
मुर्गियों में फैल रही चेचक की बीमारी
मुर्गियों में फैल रही चेचक की बीमारी

बांका। जिला में इस समय पशुओं एवं मुर्गी में फैल रहे चेचक बीमारी से पशुपालकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वर्तमान में धोरैया प्रखंड के देवड़ाड गांव तक चेचक बीमारी पहुंची है।

इस संबंध में किसान पंकज भारती ने बताया कि हमारे पास करीब सात से आठ सौ मुर्गी है। इसमें तेजी से चेचक फैल रहा है। इससे काफी परेशानी हो रही है। केविके के पशु विज्ञानी डॉ. धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि चेचक बीमारी के फैलने का समय अप्रैल से जून महा में 70 से 90 फीसद तक होती है। यह विषाणु जनित रोग है। चेचक का निशान सभी जगह खुली चमड़ी पर होता है। यह किसी भी उम्र की सभी नश्ल की भेड़, बकरी, गाय एवं मुर्गी में होती है। यह बीमारी मुख्य रूप से संक्रमित पशु के संपर्क में आने से होती है। काटने वाले कीड़े से भी संक्रमण फैलाती है। यह विषाणु गर्भवती पशु से उनके बच्चे में जाती है। यह विषाणु छह माह तक गोशाला में रहकर बीमारी फैलाती है।

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बीमारी के लक्षण

संक्रमण होने से चार से 21 दिन में बीमारी के लक्षण प्रकट होते हैं। पहले बुखार आती है। फिर चमड़ी में घाव दो से पांच दिनों में दिखने लगती है। घाव मुख्य रूप से मुंह के चारों तरफ सिर पर पूंछ के नीचे भाग एवं पैरों के बीच में होती है। पैपुल्स विकसित होने के बाद नाक एवं आख में सूजन हो जाती है। नाक एवं आंख में गाढ़ा पानी आने लगती है। इसमें पशु कमजोर हो जाती है। खड़ा भी नहीं रह सकती। पशु को निमोनिया हो जाती है। जिससे स्वाश लेने में दिक्कत होती है, और पशु मर जाती है।

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बचाव एवं उपचार

डॉ. धर्मेंद्र ने बताया कि इस बीमारी का कोई निश्चित उपचार नहीं है। वेरिओलिनम दौ सौ पांच ड्रॉप प्रतिदिन देने से बचाव भी होती है। एवं बीमारी को ठीक भी करती है। एंटीबायोटिक की सुई लगवाएं एवं घाव पर एंटीसेप्टिक लोशन लगाएं। घाव को लाल पोटाश के घोल से साफ करें। फिर उसपर बोरोग़्िलसरिन पेस्ट लगाएं। इसके बचाव के लिए बीमारी फैली जगह से पशु लाएं तो कम से कम 21 दिन तक अपने फार्म से अलग रखें। खाने पीने वाले वस्तु को जो बीमार पशु के संपर्क में आ चुके है। उसे रासायन से विषाणु रहित किए बिना उपयोग नहीं करें। मरे हुए पशु को मिट्टी में गाड़ दे या जला दें। प्रतिवर्ष टीकाकरण करवाएं। बचाव ही इस बीमारी से बचा जा सकता है।

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