पहले मुखिया बनने के लिए जनता ही देती थी चंदा
बांका। पंचायत चुनाव का प्रखंड में नामांकन जारी है। इसको लेकर सरगर्मी तेज हो गई है। हर उम्मीदवार अलग-अलग अंदाज में नामांकन करा रहे हैं। खर्च की निर्धारित राशि का लेखा जोखा नहीं है। इस कारण कुछ के द्वारा पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है।
बांका। पंचायत चुनाव का प्रखंड में नामांकन जारी है। इसको लेकर सरगर्मी तेज हो गई है। हर उम्मीदवार अलग-अलग अंदाज में नामांकन करा रहे हैं। खर्च की निर्धारित राशि का लेखा जोखा नहीं है। इस कारण कुछ के द्वारा पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है।
1967 में पथड्डा पंचायत चुनाव में निर्विरोध मुखिया बने रविद्र प्रसाद दास से जब बातचीत की गई तो बताया कि पहले और अभी के समय में काफी बदलाव आया है।
बताया कि पहले गांव इलाकों के सजग एवं सक्रिय मतदाता किसी प्रबुद्ध, शिक्षित, सम्पन्न एवं सम्मानित व्यक्ति को मुखिया बनने के लिए आग्रह करते थे। बड़ी मुश्किल से मुखिया पद के लिए लोग तैयार होते थे। तब प्रत्याशी को प्रचार करने की जरूरत ही नहीं थी। हर गांव के समर्थक ही अपने अपने गांवों में कैम्पिग करते थे। प्रत्याशी को मतदाता ही चंदा देते थे। आज सबकुछ उलट गया है। पुराने समय में लूट मचाने के लिए कुछ था भी नहीं। आज सबकुछ है। आज मुखिया को सरकार ने ठीकेदार बना दिया है। मुखिया समेत पंचायत प्रतिनिधियों को बेदाग निकलने के लिए ईमानदार एवं त्यागी होना होगा। कठिन समय है। जनतंत्र की रीढ़ मतदाता हैं। प्रतिनिधियों का ईमानदार होना सिर्फ और सिर्फ मतदाताओं पर निर्भर है। बताया कि पथड्डा पंचायत में सबसे पहला पंचायत चुनाव 1962 में हुआ था। जिसमें स्व. कामदेव यादव मुखिया बने थे। इस के पूर्व दस वर्षो तक बेलसिरा के स्व. ज्योतिष महाराणा मनोनीत मुखिया रहे। उनके बाद वर्ष 1977 में लौढि़या के स्व. जयप्रकाश यादव 2001 तक मुखिया रहे।