एक चिकित्सक के भरोसे सदर अस्पताल की ओपीडी व्यवस्था

जिले में स्वास्थ्य सेवा का हाल बेहाल है। यहां मरीजों को इलाज के नाम पर बहलाया जा रहा है। सरकार लाख दावा करे कि बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराया जा रहा है परंतु यह हवा-हवाई साबित हो रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 16 Nov 2019 09:30 PM (IST) Updated:Sun, 17 Nov 2019 06:11 AM (IST)
एक चिकित्सक के भरोसे सदर अस्पताल की ओपीडी व्यवस्था
एक चिकित्सक के भरोसे सदर अस्पताल की ओपीडी व्यवस्था

जिले में स्वास्थ्य सेवा का हाल बेहाल है। यहां मरीजों को इलाज के नाम पर बहलाया जा रहा है। सरकार लाख दावा करे कि बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराया जा रहा है परंतु यह हवा-हवाई साबित हो रहा है। जून में लू के कारण करीब एक सौ लोगों की हुई मौत ने जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी थी। स्वस्थ समाज का सपना साकार नहीं हो रहा है। करोड़ों खर्च के बाद अस्पताल संसाधनों के अभाव में जूझ रहा है। सुविधा उपलब्ध कराने को लेकर करोड़ों खर्च किया जा रहा है परंतु चिकित्सक, नर्स समेत अन्य कर्मियों की कमी के कारण मरीजों को लाभ नहीं मिल पा रहा है। अस्पताल में चिकित्सक नहीं होने के कारण इलाज संभव नहीं हो पाता है।

साफ तौर पर यह देखा जा रहा है कि सरकारी अस्पताल बगैर चिकित्सक के संचालित हो रहा है। जो चिकित्सक हैं वे समय से ड्यूटी नहीं आते हैं। जिले के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सक, नर्स एवं संसाधनों का घोर अभाव है जिस कारण यहां के निजी अस्पताल संचालक खुशहाल हो रहे हैं। जिला मुख्यालय स्थित मॉडल अस्पताल का दर्जा प्राप्त कर चुका सदर अस्पताल का हाल बेहाल है। यहां मरीजों को इलाज की जगह मरीजों को रेफर का पर्चा थमाया जाता है। अस्पताल प्रबंधन की माने तो चिकित्सकों का स्वीकृत पद 58 है पर कार्यरत मात्र 15 है। चिकित्सकों में से एक डॉ. सुनील कुमार उपाधीक्षक हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सक का स्वीकृत पद छह है पर कार्यरत मात्र एक डा. लालसा सिन्हा है। अस्पताल में जीएनएम का 100 पद स्वीकृत है जिसमें कार्यरत मात्र 17 है। एएनएम का 10 में से तीन, मू‌र्क्षक का तीन में से शून्य, हड्डी का शून्य एवं आंख का दो में से एक चिकित्सक कार्यरत हैं।

बता दें कि शनिवार को सदर अस्पताल में डा. विजेंद्र कुमार अकेले 245 मरीजों का इलाज किया। विभाग की मानें तो प्रतिदिन एक चिकित्सक को अधिक से अधिक 40 मरीजों का इलाज करना है परंतु चिकित्सकों की कमी के कारण एक चिकित्सक के द्वारा सैकड़ों मरीजों का इलाज करना पड़ रहा है। बताते चलें कि यहां न तो एक भी सर्जन चिकित्सक हैं और न ही ईएनटी विशेषज्ञ। 223 की जगह 71 चिकित्सक कार्यरत

जिला के सदर अस्पताल, अनुमंडलीय अस्पताल एवं सभी पीएचसी में चिकित्सक का स्वीकृत पद 223 है परंतु कार्यरत मात्र 71 हैं। 71 चिकित्सकों में सिविल सर्जन, उपाधीक्षक एवं अन्य स्वास्थ्य अधिकारी भी शामिल हैं। इन्हीं के भरोसे 30 लाख की आबादी है। चिकित्सकों के 152 पद रिक्त पड़ा है। विभाग की माने तो नर्स का स्वीकृत पद 559 है जबकि कार्यरत मात्र 333 है। 226 पद रिक्त पड़ा है। जिला के गिने चुने अस्पताल में ड्रेसर हैं। चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों के द्वारा मरीजों का ड्रेसिग किया जाता है। विशेषज्ञ चिकित्सकों का घोर अभाव है। जिला के देव पीएचसी के अलावा किसी भी अस्पताल में सर्जन चिकित्सक नहीं है। एक मात्र सर्जन चिकित्सक डॉ. जन्मेजय कुमार कार्यरत हैं। अस्पतालों में सर्जन चिकित्सक का 15 पद स्वीकृत हैं। वहीं स्थिति स्त्री रोग विशेषज्ञ की है। स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सक का स्वीकृत पद 16 है जिसमें कार्यरत मात्र छह है। स्थिति यह है कि जब कोई बड़ी घटना होती है तो बाहर से चिकित्सक मंगवाना पड़ता है। चिकित्सकों एवं नर्सों की घोर कमी के कारण जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। अनुमंडलीय अस्पताल दाउदनगर में 30 की जगह सात, नवीनगर रेफरल में 14 की जगह दो, हसपुरा में सात की जगह मात्र तीन, कुटुंबा में 14 की जगह तीन चिकित्सक कार्यरत हैं। कहते हैं सीएस -

चिकित्सकों की कमी है। इस कारण परेशानी हो रही है। चिकित्सक बहाली को लेकर विभाग को पूर्व में कई बार पत्र लिखा गया है। जितने चिकित्सक व संसाधन है उसमें मरीजों का बेहतर इलाज किया जा रहा है।

- डॉ. अकरम अली, सिविल सर्जन

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