औरंगाबाद के देव में तीन स्वरूपों में विद्यमान हैं भगवान सूर्य

जिले में स्थित देव सूर्य मंदिर देश की विरासत है। यहां कार्तिक व चैत छठ में लाखों श्रद्धालु व्रत करने पहुंचते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 05:28 PM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 05:28 PM (IST)
औरंगाबाद के देव में तीन स्वरूपों में विद्यमान हैं भगवान सूर्य
औरंगाबाद के देव में तीन स्वरूपों में विद्यमान हैं भगवान सूर्य

औरंगाबाद। जिले में स्थित देव सूर्य मंदिर देश की विरासत है। यहां कार्तिक व चैत छठ में लाखों की संख्या में श्रद्धालु व्रत करने पहुंचते हैं। कोरोना संक्रमण के कारण पिछले वर्ष से यहां मेला नहीं लग रहा है। श्रद्धालुओं के मंदिर में दर्शन और पवित्र सूर्यकुंड में स्नान व अ‌र्घ्य देने पर रोक लगा दी गई है।

देव का मंदिर काफी पौराणिक व ऐतिहासिक है। काले पत्थरों को तरासकर बनाए गए इस मंदिर की शिल्पकला काफी अनूठी है। देश में भगवान सूर्य के कई प्रख्यात मंदिर हैं, परंतु देव का देवार्क श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाओं को पूरा करता है। देव सूर्य मंदिर करीब 100 फीट ऊंचा है। मान्यता है कि इस सूर्य मंदिर का निर्माण त्रेता युग में भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं किया था। जो भक्त यहां भगवान सूर्य की आराधना मन से करते हैं, उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। यहां के मंदिर में भगवान सूर्य तीन स्वरूपों में विद्यमान है। उदय काल में ब्रह्मा, मध्याह्न में विष्णु व संध्या काल में महेश के रूप में दर्शन देते हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी सच्चिदानंद पाठक मंदिर को त्रेतायुगीन बताते हैं। राजा एल ने कराया था निर्माण

मंदिर के निर्माण के बारे में मंदिर में लगे शिलालेख से पता चलता है कि त्रेतायुग में राजा एल ने इसका निर्माण कराया था। कहा जाता है कि राजा जंगल में शिकार खेलते देव पहुंचे। शिकार खेलने के दौरान राजा को प्यास लगी। देव स्थित तालाब का जल ग्रहण किया। राजा कुष्ठ रोग से ग्रसित थे। राजा के हाथ में जहां-जहां जल का स्पर्श हुआ वहां का कुष्ठ ठीक हो गया था। राजा गड्ढे में कूद गए जिस कारण उनके शरीर का कुष्ठ रोग ठीक हो गया। रात में जब राजा विश्राम कर रहे थे तभी सपना आया कि जिस गड्ढा में उन्होंने स्नान किया है उस गड्ढा में भगवान सूर्य की तीन स्वरूपी प्रतिमा दबी पड़ी है। राजा ने जब गड्ढा खोदवाया तो ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के रूप में तीन प्रतिमाएं मिलीं। प्रतिमाओं के लिए मंदिर का निर्माण कराकर स्थापित किया, जो आज सूर्य मंदिर के रूप में देश में प्रसिद्ध है।

पश्चिमाभिमुख है देव सूर्य मंदिर

देव सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिमाभिमुख है। कहा जाता है कि औरंगजेब अपनी शासनकाल में देश के मंदिरों को तोड़ते हुए देव पहुंचा था। जब सूर्य मंदिर को तोड़ने लगा, तो यहां के पुजारियों ने मना किया। तब औरंगजेब ने कहा कि अगर सूर्यमंदिर में कुछ सत्यता है तो रातभर का समय देता हूं अगर मंदिर का द्वार पूरब से पश्चिम हो जाएगा, तो हम मंदिर को छोड़ देंगे। ऐसा ही हुआ। रात में तेज गर्जना के साथ मंदिर का द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो गया। तब औरंगजेब मंदिर को नहीं तोड़ सका। देव में माता अदिति ने की थी सूर्य पूजा

कहा जाता है कि प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गए थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देव में छठी मैया की आराधना की थीं। प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र आदित्य भगवान हुए, जो असुरों पर देवताओं का विजय दिलाया।

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