शक्तिपीठ के रूप में विख्यात नवीनगर का गजना धाम मंदिर

नवीनगर का गजनाधाम बिहार-झारखंड के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। नवरात्र में यहां भीड़ लगती है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 13 Apr 2021 04:07 PM (IST) Updated:Tue, 13 Apr 2021 04:07 PM (IST)
शक्तिपीठ के रूप में विख्यात नवीनगर का गजना धाम मंदिर
शक्तिपीठ के रूप में विख्यात नवीनगर का गजना धाम मंदिर

नवीनगर। नवीनगर का गजनाधाम बिहार-झारखंड के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। भक्तों की हर मनोकामना मां पूरा करती हैं। टंडवा थाना के कररबार नदी के तट पर स्थित गजानन माता मंदिर लाखों श्रद्धालुओं के श्रद्धा का प्रतीक है। यह स्थल शक्ति पीठ के रुप में विख्यात है। मंदिर में किसी मानवी काया की मूर्ति नहीं है। बस निराकार की पूजा होती है। आधुनिक काल में इस मंदिर का उद्धार वर्ष 1965 में जगन्नाथ सिंह उर्फ त्यागी जी ने किया था। आज यह धाम उपेक्षा का शिकार है। अगर विकास हो तो यह धाम बिहार और झारखंड के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बन सकता है।

प्राचीन इतिहास: कहा जाता है कि प्राचीन काल में यह क्षेत्र आदि मानवों का निवास स्थान था। पोलडीह गांव में कई पुराने अवशेष आज भी उपलब्ध है। प्राचीनकालीन की देवी-देवताओं की कई प्रतिमाएं है। यहां खरवारों की कुलदेवी चेड़ीमाई की पूजा होती है। कहा जाता है कि चेरों के आगमन के पूर्व लगभग 800 साल पहले जपला खरवार राजाओं की राजधानी थी। आशुतोष भट्टाचार्य ने अपनी कृति ''बंगाला, लोक साहित्य और संस्कृति'' में सूर्य का पर्व गाजन की चर्चा की है। गाजन प्राचीन काल से चला आ रहा एक पर्व है। जो बंगाल में लोकप्रिय शैव संप्रदाय से जुड़ा है। गाजन पर्व बंगाल में चैत्र महीने में मनाया जाता है। यह वैशाख माह में भी मनाया जाता है। इतिहास बताता है कि बारहवीं शताब्दी के मध्य तक यह क्षेत्र बंगाल के शासक रामपाल सेन के अधीनस्थ था। इसी के बाद इस क्षेत्र का शासन गढ़वाल राजा के हाथ में चला गया। महंत अवध बिहारी दास कहते हैं कि गजना माता को वन देवी भी कहा जाता है। सत्यनारायण सिंह उर्फ साधु जी ने बताया कि 55 साल पहले यहां खपड़ा का मंदिर था जहां मिट्टी के हाथी घोड़े चढ़ाए जाते थे। पहले यहां बकरे की बलि दी जाती थी। बाद में स्थानीय ग्रामीणों के कहने पर पंडित मुखदेव दास ने बलि प्रथा को बंद कराया। प्रतिदिन होता है गजनामाता का श्रृंगार

मंदिर के महंथ अवध बिहारी दास ने बताया कि यहां प्रतिदिन सुबह को मां को जगाया जाता है। जगाने के बाद स्नान करा मां का श्रृंगार किया जाता है। कहा कि यहां जो लोग भी दर्शन करने आते हैं उनकी मनोकामनाएं मां पूरी करती हैं। महंत ने बताया कि चैत माह में यहां मां का विशेष पूजन किया जाता है। नौ दिनों तक रामलीला होता है। रामनवमी एवं दशहरा पूजा में मां की दर्शन को ले श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। 250 ग्राम घी में डेढ़ केजी आटा का प्रसाद

महंत ने बताया कि इस मंदिर में प्रतिदिन 250 ग्राम घी में डेढ़ केजी आंटा का पूड़ी बनाकर मां का प्रसाद चढ़ाया जाता है। लोग इस बात को अटपटा जरूर समझते हैं कि 250 ग्राम घी में कैसे डेढ़ केजी आंटा का प्रसाद बनेगा। परंतु यह सत्य है। मां का प्रसाद मिट्टी की कड़ाही में बनती है। मां को पुड़ी एवं गुड़ के प्रसाद को भोग लगाया जाता है। गजनाधाम को मिले पर्यटन स्थल का दर्जा

नवीनगर के ऐतिहासिक, पौराणिक एवं धार्मिक स्थल गजनाधाम को अब तक पर्यटन स्थल में शामिल नहीं किया गया है। चैत में होने वाले गजना महोत्सव को राजकीय महोत्सव का दर्जा नहीं मिला है। पर्यटन स्थल एवं राजकीय महोत्सव के दर्जा को लेकर कई बार समिति के सदस्य एवं ग्रामीण अधिकारियों से मिले। गजना महोत्सव आयोजन समिति के सचिव सिद्धेश्वर विद्यार्थी की माने तो यहां पर्यटन स्थल के दर्जा को लेकर केंद्रीय टीम निरीक्षण कर चली गई है। टीम के द्वारा केंद्र सरकार को रिपोर्ट सौंप दिया गया है। मिथलेश चंद्रवंशी, अरुण कुमार, टूना सिंह, भृगुनाथ सिंह, रामप्रवेश सिंह, सत्यनारायण सिंह एवं कामदेव राजवंशी ने कहा कि गजनाधाम को पर्यटन स्थल का दर्जा मिले।

ऐसे पहुंच सकते हैं गजना धाम

गजना धाम पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं। एक बिहार के औरंगाबाद से बस के माध्यम से अंबा होते हुए पहुंच सकते हैं। दूसरा माध्यम झारखंड राज्य से भी आने का है।

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फोटो : 13 एयूआर 14

- मंदिर में पूरी होती है श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं

- प्रतिदिन दर्शन करने यहां पहुंचते हैं श्रद्धालु

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