कोरोना मरीजों के लिए विडाल टेस्ट बना जी का जंजाल, मौत के आगोश में समा रहे मरी•ा

- विडाल टेस्ट के आधार पर कोरोना के मरी•ाों को टायफाइड बता जान आफत में डाल रहें जि

By JagranEdited By: Publish:Wed, 12 May 2021 11:02 PM (IST) Updated:Wed, 12 May 2021 11:02 PM (IST)
कोरोना मरीजों के लिए विडाल टेस्ट बना जी का जंजाल, मौत के आगोश में समा रहे मरी•ा
कोरोना मरीजों के लिए विडाल टेस्ट बना जी का जंजाल, मौत के आगोश में समा रहे मरी•ा

- विडाल टेस्ट के आधार पर कोरोना के मरी•ाों को टायफाइड बता जान आफत में डाल रहें जिले के नामी चिकित्सक

- मधेपुरा मेडिकल कॉलेज में जिले के पांच मरी•ाों की गई जान, सभी को बताया गया था टायफाइड

- 80 प्रतिशत लंग्स खराब होने के बाद किया जा रहा रेफर, जान बचाने में असमर्थ हो रहे चिकित्सक

राकेश मिश्रा, अररिया: जिले में कोरोना मरीजों के साथ घोर लापरवाही बरतने का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है। जिससे जिले के मरी•ाों को जान के लाले पड़ रहे है। धरती के भगवान कहे जाने वाले चिकित्सक अररिया में डब्लूएचओ और राज्य सरकार के निर्देशों की जम कर धज्जियां उड़ा रहे है। अब तक पांच मरी•ाों की जान भी जा चुकी है और न जाने कितने मरी•ा कतार में है। लेकिन जिले में लापरवाही बरतने का सिलसिला लगातार जारी है। दरअसल जिले में सर्दी, खांसी और ते•ा बुखार से पीड़ित व्यक्ति जब शहर के निजी क्लीनिकों में इलाज के लिए पहुंच रहे है तो चिकित्सक द्वारा केवल ऐंटिजिन टेस्ट कराकर अपने कर्तव्यो से इतिश्री की जा रही है। चिकित्सक द्वारा न तो आरटीपीसीआर टेस्ट कराया जा रहा है और न ही अन्य। ऐसे मरीजों को निजी चिकित्सक द्वारा विडाल टेस्ट कराया जा रहा है। विडाल टेस्ट पॉ•िाटिव पाए जाने पर टायफायड का इलाज किया जा रहा है। इस बीच चार- पांच दिन निजी क्लिनिक में भर्ती रहने के बाद मरी•ाों का लंग 80 प्रतिशत तक खराब हो जाता है। खराब स्थिति देखकर निजी चिकित्सक द्वारा मरी•ाों को मधेपुरा मेडिकल कॉलेज रेफर किया जाता है। जहाँ लंग के 25 प्रतिशत में 22 प्रतिशत तक खराबी पाई जाती है और मरी•ा दम तोड़ देता है। अब तक पांच मरीजों की मौत कोरोना से लंग खराब होने की वजह से हो चुकी है। जानकारी देते हुए मधेपुरा मेडिकल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर और आईएमए के सदस्य डॉ अभय कुमार ने बुधवार को दैनिक जागरण को बताया की बतौर चिकित्सक जिले के इस व्यवस्था से में काफी दुखी हूं। निजी क्लिनिक और ग्रामीण चिकित्सक को इस आपदा काल मे अपना कार्य जिम्मेदारी से करना चाहिए। मधेपुरा मेडिकल कॉलेज में इला•ा के दौरान अररिया के पांच मरी•ा ऐसे पाए गए जिन्हें चिकित्सक द्वारा टायफाइड बताकर रेफर किया गया था। बाद में जांच में वो कोरोना संक्रमित पाए गए। ऐसे मरी•ाों का लंग 25 में 22 से 23 प्रतिशत तक खराब हो गया था। चिकित्सको की टीम द्वारा ऐसे मरी•ाों को बचाने का हरसंभव प्रयास किया गया मगर वो सफल नही हो सकें। अगर ऐसे मरी•ाों का एंटीजेन टेस्ट के बजाय आरटीपीसीआर टेस्ट कराया जाता साथ ही टायफाइड के इलाज में चार पांच दिन बर्बाद नही किया जाता तो शायद ऐसे मरी•ाों की जान बचाई जा सकती थी।

100 साल पहले ईजाद किये गए विडाल टेस्ट बना जंजाल- करीब 100 वर्ष पहले ईजाद किये गए विडाल टेस्ट जिलेवासियों को लिए जी का जंजाल बनता जा रहा है। जिले के कई नामी गिरामी और ग्रामीण चिकित्सक इस टेस्ट के आधार पर लापरवाही बरत रहे है जिससे मरी•ाों की जान जा रही है। डॉक्टर अभय बताते है कि विडाल टेस्ट को वैज्ञानिक जॉर्जेज फर्नैंड विडाल ने तकरीबन सवा सौ साल पहले ईजाद किया था। यह जांच टायफायड की पहचान के लिए कई जगहों पर अब भी इस्तेमाल की जाती है, हालांकि अच्छी लैबों में इससे बेहतर टेस्ट आ गए हैं। साल्मोनेला टायफी जीवाणु के ऊपर दो रसायन ऐंटीजन एच और ओ पाए जाते हैं। जिस रोगी के खून का नमूना लिया गया है, उससे पहले सीरम अलग कर लिया जाता है। अब अगर रोगी के खून से निकाले इस सीरम में एंटीजन एच व एंटीजन ओ के खिलाफ ऐंटीबॉडी होती हैं, तो फिर ऐंटीबॉडियों का स्तर नापा जाता है। (ऐंटीजन जीवाणुओं के हथियार हैं, मनुष्य का शरीर ऐंटीबॉडी बनाकर ऐंटीजनों से लड़ता है।) इन्हीं स्तरों के आधार पर रोगी का विडाल पॉजिटिव या नेगेटिव बताता है। डॉक्टर का कहना है कि विडाल टायफायड में बुखार के तकरीबन एक सप्ताह के बाद ही पॉजिटिव आता है। कारण कि जब तक ऐंटीबॉडी नहीं बनेंगी, विडाल पॉजिटिव आ नहीं सकता। फिर यह मलेरिया-गठिया-रोग-हेपेटाइटिस इत्यादि में भी पॉ•िाटिव आ जाया करता है। इसलिए यह टायफायड के लिए बहुत स्पेसिफिक जांच नहीं। कई बार टायफायड में यह अन्य कारणों से भी नेगेटिव आ सकता है। अगर किसी को टायफायड का टीका लगा हो, तो उसके कारण भी यह पॉजिटिव आ सकता है। इन्हीं कारणों से विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी कहना है कि टायफायड की डायग्नोसिस बनाने के लिए डॉक्टर जहां तक संभव हो, विडाल टेस्ट पर निर्भर न रहें और बेहतर जांचों का प्रयोग करें। इसके बावजूद जिले के चिकित्सक विडाल टेस्ट का प्रयोग कर रहे है। जो कि कोरोना काल मे काफी खतरनाक साबित हो रहा है।

80 प्रतिशत फेफड़ा खराब होने के बाद कर रहे है रैफर- डॉ अभय बताते है कि मधेपुरा मेडिकल कॉलेज करीब 10 कोरोना मरी•ा अब भी ऐसे गम्भीर हालत में इलाजरत है जिनको टायफाइड बताकर पहले पांच, छह दिन इला•ा किया गया फिर ऑक्सीजन की कमी और हालत खराब होने पर मधेपुरा मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। ऐसे मरी•ाों को बचाना काफी चुनोतिपूर्ण होता है। अब तक पांच मरी•ाों की जान भी जा चुकी है। दरअसल सिटी सैवरिटी स्कोर 8 प्रतिशत से कम पाए जाने पर ठीक, 15 प्रतिशत तक मध्यम, 16 से अति गम्भीर और उससे ऊपर पाए जाने पर जानलेवा होता है जब्कि अररिया से रैफर किये गए मरी•ा का सिटी सैवरिटी स्कोर 22 से 23 प्रतिशत तक होता है । ऐसे मरी•ाों की जिदगी बचा पाना लगभग नामुमकिन सा हो जाता है।

ऐंटिजिन टेस्ट के बजाय आरटीपीसीआर कराये चिकित्सक- मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ अभय ने जिले के चिकित्सकों से अपील करते हुए कहा है कि वो केवल ऐंटिजिन टेस्ट के आधार पर मरी•ाों को कोरोना नेगेटिव नही समझे बल्कि आरटीपीसीआर कराएं। जिलेवासियों से अपील करते हुए उन्होंने कहा कि बुखार, सर्दी को मरी•ा हल्के में न ले कोरोना के सभी टेस्ट कराने के बाद ही लोग टायफाइड आदि का इलाज कराये वरना लोगो को इसके गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ सकते है।

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