बौका मजरख में तीसरी पीढ़ी भी कर रही बरगद वृक्ष की सेवा

अररिया। सामान्य वृक्षों की तुलना में बरगद पांच गुना अधिक आक्सीजन देता है। मानव जीवन में बरगद का अपना अलग महत्व है। बुद्धिजीवियों की माने तो सीमावर्ती क्षेत्र में बरगद की पूजा कई पीढि़यों से चलती आ रही है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 10 Jun 2021 12:17 AM (IST) Updated:Thu, 10 Jun 2021 12:17 AM (IST)
बौका मजरख में तीसरी पीढ़ी भी कर रही बरगद वृक्ष की सेवा
बौका मजरख में तीसरी पीढ़ी भी कर रही बरगद वृक्ष की सेवा

बौका मजरख में तीसरी पीढ़ी भी कर रही बरगद वृक्ष की सेवा

अररिया। सामान्य वृक्षों की तुलना में बरगद पांच गुना अधिक आक्सीजन देता है। मानव जीवन में बरगद का अपना अलग महत्व है। बुद्धिजीवियों की माने तो सीमावर्ती क्षेत्र में बरगद की पूजा कई पीढि़यों से चलती आ रही है। लोग इसे लगाते तो हैं पर कुछ भी हो जाए काटते नहीं। भारत -नेपाल सीमा पर बसा मजरख पंचायत का एक छोटा सा गांव बौका मजरख जहां चंद मकान ही थे। ऐसे समय में लगाए गए बरगद के पौधे आज विशाल रूप ले चुके हैं। लगाने वाले परिवार की तीसरी पीढ़ी आज भी इस बरगद पेड़ की सेवा कर रही है। शुरू से हीं यहां के ग्रामीण बरगद की महानता को समझ रहे हैं और यही कारण है कि इसकी सुरक्षा हर हाल में करते हैं। वट वृक्ष से ऐसा नाता लोगों का जुड़ा है कि वार्ड नंबर तीन में स्थित बरगद ़का पेड़ पूरे इलाके की पहचान बन गई है। वहीं बूढ़ा बरगद ़का वृक्ष भी तीन पीढ़ी से लगातार हो रही सेवा की गवाही दे रहा है। स्थानीय ग्रामीणों में जितेंद्र महतो, शूक्कन पासवान, ब्रह्मदेव पासवान, शंभू पासवान आदि लोगों ने बताया कि आस-पास के कई गांव की महिलाएं वट सावित्री की पूजा इसी वटवृक्ष में करती हैं। ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण स्थानीय मुखिया के द्वारा छोटे आयोजन भी किए जाते हैं। धीरे-धीरे लोग आते रहें,बसे और यहीं का होकर रह गए। इस गांव के निवासी लक्ष्मी पासवान ने अपने गांव के बीच एक बरगद ़का पौधा लगाया था जो अब 100 वर्ष से अधिक का हो चुका है। समय-समय पर इसकी छंटाई होती रही पर इसकी पहचान अब भी बनी हुई है। यहां महिलाएं पीढि़यों से पूजा करती आ रही हैं। सबको पता है कि धार्मिक मान्यता के साथ आक्सीजन देने वाला यह एकमात्र ऐसा पौधा है जिसके कारण आसपास का वातावरण पूरी तरह शुद्ध रहता है। लक्ष्मी पासवान परिवार के जिस शख्स ने इस वट वृक्ष को लगाया था उनके पोते हेमानंद पासवान स्वयं 50 वर्ष के हो चुके हैं। इस वट वृक्ष छांव में इनकी चौथी पीढ़ी है। वटवृक्ष की पूजा अर्चना के साथ शुद्ध आक्सीजन ले रही है। वटवृक्ष के आसपास पक्के के मकान बन गए। इसके सामने मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना से सड़क ़का निर्माण किया गया। पर यह वटवृक्ष आज भी सुरक्षित है। यहां के ग्रामीण दैनिक जागरण द्वारा चलाए जा रहें अभियान'' ़का प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि इस अभियान से वटवृक्ष की खोज हो रही है। अब ज्यादा संख्या में धरती पर वटवृक्ष लगेंगे। ग्रामीणों सहित यहां की महिलाओं ने भी संकल्प लिया है कि वट सावित्री पूजा के दिन बकरा नदी के किनारे बरगद का पौधा लगाएंगी ताकि उनकी पीढि़या भी शुद्ध आक्सीजन ले सकें और मान्यतानुसार पूजा कर सकें।

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