महिला आरक्षित सीट वाले पंचायतों में वोट को लेकर असमंजस में मतदाता

संसू सिकटी (अररिया) पंचायती राज व्यवस्था में आधी आबादी को राज्य सरकार ने भले ही पचास प

By JagranEdited By: Publish:Fri, 24 Sep 2021 12:28 AM (IST) Updated:Fri, 24 Sep 2021 12:28 AM (IST)
महिला आरक्षित सीट वाले पंचायतों में वोट को लेकर असमंजस में मतदाता
महिला आरक्षित सीट वाले पंचायतों में वोट को लेकर असमंजस में मतदाता

संसू सिकटी, (अररिया): पंचायती राज व्यवस्था में आधी आबादी को राज्य सरकार ने भले ही पचास प्रतिशत का अधिकार दिया हो, परंतु पंचायती राज व्यवस्था में पद पर काबिज रही कई महिलाएं इस बात से अभी भी संतुष्ट नहीं दिखती हैं। उन्हें आज भी लग रहा है कि घर की महिलाओं को उनके स्वजन आज भी पद के लिए योग्य नहीं समझते हैं। मिले अधिकार में उनके रिश्तेदार,पति, बेटा, ससुर, पिता या अन्य खुद दखल देकर उनके अधिकार का हनन करते हैं। सीमावर्ती प्रखंड क्षेत्र की कई महिलाएं आज भी अपने अधिकार के लिए पद पर काबिज रहकर घर की दहलीज से बाहर निकलकर स्वजनों को घर चलाने में सहयोग करना चाहती है, लेकिन उन्हें उचित सहयोग नही मिल पा रहा है। नतीजा, चुनाव जीतने के बावजूद महिला प्रतिनिधि घर के अंदर चौका-चूल्हा तक हीं सिमट कर रह जाती है।

-महिला अधिकार का नहीं दिख रहा फायदा: बरदाहा गांधी चौक की शबाना खातून कहती है कि राज्य में आधी आबादी को अधिकार तो दिए गए। उसके आधार पर पंचायत से सैकड़ों महिलाएं प्रतिनिधि निर्वाचित होकर प्रमाण पत्र भी प्राप्त करती है। कितु जनता के बीच उनकी कोई पहचान नहीं बन पाती, क्योंकि उनके रिश्तेदार खुद को प्रतिनिधि होने का दावा कर सभी कार्य वे खुद करते हैं। खोरागाछ की रिकी भारती बताती हैं कि महिला प्रतिनिधि को स्वजन स्टांप की तरह उपयोग करते हैं। वैसी महिला प्रतिनिधि को पांच वर्ष तक जनता का प्रतिनिधित्व करने के बाद भी उन्हें अपने अधिकार की कोई जानकारी नहीं हो पाती है, इसलिए आधी आबादी को अधिकार देने के साथ सरकार को उसे मार्गदर्शक की भूमिका में आगे लाने के बारे में विचार करना होगा। कुआड़ी की गुड़िया केशरी का कहना है कि

अधिकार पत्नी को मिला तो उसे ही निभाना चाहिए। जब हम वोट देकर मुखिया, सरपंच, समिति, जिला पार्षद, वार्ड व पंच सदस्य चुनकर जीत दिलाती है तो आधी आबादी को ही उसे जनता का कार्य पांच वर्षों तक करने देना चाहिए। उनके पति या भाई-भतीजे को बीच में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। इसीलिए वोटर को सोच कर हीं अपने मतों का प्रयोग करना चाहिए।

-योजना होकर गुजरेगी चुनावी नैया---खासकर पीएम आवास योजना, सात निश्चय के तहत नली गली, हर घर नल जल योजना, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, राशन कार्ड का लाभ अब तक जिसे प्राप्त नहीं हुआ है, विपक्षी वैसे मतदाताओं को भुनाने में लगे हैं। भावी उम्मीदवार इसे मुद्दा बनाकर तूल देने में लगे हुए हैं। जिन्होंने पंचायत में अच्छा काम किया है उनको जनता दोबारा मौका दे सकती है जो सिर्फ काम कम और बातें अधिक तथा अपनी झोली भरते रहे उन्हें तो फिर सत्ता से बेदखल करने को मतदाता बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

-मांगलिक कार्यक्रम में दिख रही मौजूदगी: इधर, जो उम्मीदवार चुनाव लड़ने वाले हैं, वे सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाने में जुटे हुए हैं। अपने को समाजसेवी बताकर हितैषी बताने का स्वांग रच रहे हैं। चाहे वह कोई मांगलिक कार्यक्रम हो अथवा अन्य आयोजन, उसमें भागीदारी से चूक नहीं रहे हैं। फिलहाल भैया, चाचा, दादा, बाउजी आदि का भाव प्रकट कर भावी प्रत्याशी मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में लगे हुए हैं। लेकिन वोटर ऐसे दो धारी तलवार वाले भावी प्रत्याशियों से सावधान भी दिख रहे हैं और मन हीं मन मुस्कुरा रहे हैं।

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