सिकटी में लाखों रुपये की बोई गई खरीफ फसल चढ़ी बाढ़ की भेंट

-अभी भी कई घरों में लगा हुआ है बाढ़ का पानी संसू सिकटी (अररिया) सिकटी प्रखंड का पू

By JagranEdited By: Publish:Sun, 01 Aug 2021 10:01 PM (IST) Updated:Sun, 01 Aug 2021 10:01 PM (IST)
सिकटी में लाखों रुपये की बोई गई खरीफ फसल चढ़ी बाढ़ की भेंट
सिकटी में लाखों रुपये की बोई गई खरीफ फसल चढ़ी बाढ़ की भेंट

-अभी भी कई घरों में लगा हुआ है बाढ़ का पानी

संसू, सिकटी (अररिया): सिकटी प्रखंड का पूर्वी क्षेत्र लगातार छह बार बाढ़ का दंश झेल चुका है। अभी भी कई घरों में बाढ़ का पानी जमा है। प्रखंड के पररिया, दहगामा तथा खोरागाछ पंचायत के ग्रामीण नूना नदी की विभीषिका से तंग हो चुके हैं। खेतों में लगी फसल बाढ़ की भेंट चढ़ गई। दर्जनों परिवार का आशियाना उजड़ गया। न राहत सुविधा मिली और न हीं फसल क्षति मुआवजा का आश्वासन हीं। बाढ़ की विभीषिका झेल रहे लोगो की संपत्ति के साथ-साथ बाढ़ प्रभावित लोगों के खेतों में लगी खरीफ की फसल तो बर्बाद हुई ही, रबी के भी काफी नुकसान की संभावना अभी से दिखाई दे रही है। बाढ़ में सब कुछ बर्बाद हो गया। वहीं लाखों रुपये की लागत से बोई गई खरीफ की फसल भी बाढ़ के पानी में समाकर बर्बाद हो चुकी है। इस कारण अब प्रखंड के बाढ़ प्रभावित इलाके के किसानों की कमर ही टूट गई है। लाचार किसान अपनी किस्मत पर अब आंसू बहाने को विवश हैं। बाढ़ की तेज धारा में धान, मक्का, मूंग, सब्जी आदि की फसल की व्यापक पैमाने पर क्षति हुई है। वहीं कृषि विभाग द्वारा बाढ़ से नष्ट फसलों का आकलन कार्य भी शुरू नहीं किया गया है। बाढ़ से नष्ट हुई फसलों की पूर्णत: जानकारी अभी प्रखंड कृषि कार्यालय को भी नहीं है। प्रखंड कृषि पदाधिकारी आरके सिंह ने बताया गया कि इस वर्ष खरीफ फसलों की रोपनी के लिए सिकटी में 8251 हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। जिसमें 8215 हेक्टेयर में धान की रोपनी का कार्य पूरा कर लिया गया है। तीन पंचायतों के कम ही रकवा मे फसल बर्बाद की सूचना है। यहां के अधिकांश किसान अंतिम जुलाई और अगस्त के शुरू माह में हीं धान की रोपनी करते हैं। मक्के के फसल के लिए 2431 हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित था, जो पूरा कर लिया गया। मूंग 1409 हेक्टेयर में खेती की जाती है। वह भी पूरा कर लिया गया। जबकि मक्का किसानों को कितनी क्षति उठानी पड़ी है यह बात किसी से छिपी नहीं है। उन्होंने बताया कि कम हीं भूभाग पर सब्जी कि खेती की जाती है। क्षति का कोई आंकलन विभाग के पास नहीं है। जबकि पररिया, खोरागाछ व दहगामा के किसानों का कहना है कि नूना नदी के उफनाने से धान की सारी फसल बाढ़ की भेंट चढ़ गई। अन्य भू-भाग में मूंग और सब्जी फसलें लगाई गई थी। एक अनुमान के अनुसार प्रखंड के सिर्फ पररिया, दहगामा व खोरागाछ की बात करें तो करीब 155 से 160 हेक्टेयर मे लगी धान की फसल को क्षति हुई है। फसल क्षति मुआवजा हेतु किसान विभाग की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं।

---रबी फसल पर भी पड़ेगा बाढ़ का असर

प्रखंड के कई ऐसे पंचायत हैं जहां सर्वाधिक लो-लैंड है। वैसे पंचायतों में बाढ़ के पानी का दशहरा के बाद तक भी सूखने की उम्मीद काफी कम दिखाई दे रही है। खेतों में बाढ़ का पानी जमा रहने के कारण साहू टोला पररिया, सिघिया, कंचना, बांसबारी, अंसारी टोला, राजवंशी टोला, सालगोढी, कठवा, मुशहरी टोला, करगनीया, कुतुब टोला, कालू चौक पररिया, बलिगढ, जलखरीद, बगुलाडांगी, छपनीया सहित दहगामा के दर्जनों गांव के अलावा पंचायतों के छह दर्जन से अधिक गांवों में गेहूं और दलहन की फसल की बुआई पर ग्रहण लग सकता है।

अंचलाधिकारी वीरेन्द्र सिंह की माने तो धीरे-धीरे बाढ़ का पानी निकल रहा है। निचले इलाकों मे अभी भी पानी जमा है। नदियों के जलस्तर मे उतार-चढ़ाव जारी है। अभी भी संभावित बाढ़ की खतरों से इंकार नहीं किया जा सकता है।

----क्या कहते हैं किसान---पूर्वी क्षेत्र के किसानों मे शोभित ना चौधरी,जगदीश चौधरी, हरिलाल यादव, अब्दुल खबीर, मो लतीफ, मो नसीर, कैलाश यादव, कामेश्वर यादव, मो अफसर, सज्जाद, कलीम, मो नैयर, भूषण सिंह आदि ने बताया कि खोरागाछ, पररिया और दहगामा पंचायत मे करीब 155 से 160 एकड़ मे लगी खरीफ फसल को नुकसान पहुंचा है। मजबूरी में कुछ किसान कर्ज लेकर भी अगस्त माह मे दुबारा रोपनी को तैयार हैं। दुर्लभ खेती पाट जो अभी कटाई का मौसम है उनका अधिकतम हिस्सा पानी मे डूबा रहने के कारण उनमें जड़े आ गई है। जबकि तीन पंचायत को मिलाकर करीब 25 से 30 एकड़ मे पाट की खेती की जाती है। निचली भूमि पर छोटे सीमांत किसान जो अपनी रोजी-रोटी का मुख्य साधन सब्जी खेती को मानते हैं। भीषण बारिश और बाढ़ ने लगभग 5 से 7 एकड़ मे लगी सब्जी की खेती को नष्ट कर डाला। वहीं खेतों मे लगी मूंग की फसल खेतों मे हीं समा गई। ऐसी स्थिति में किसानों की खरीफ फसलें तो मारी ही गई अब रबी की फसल की भी उम्मीद कर पाना बेमानी साबित होगी। किसानों ने बताया कि 15 अक्टूबर के पहले गेहूं की फसल की बुआई के लिए खेतों को तैयार कर लेने का प्रावधान है। लेकिन बाढ़ के पानी की वजह से वे लाचार महसूस कर रहे हैं। जहां एक फसल बाढ़ की भेंट चढ़ गई तो दूसरी फसल की उम्मीद तक किसान पहले से ही छोड़ चुके हैं।

-मुआवजा पर टिकी किसानों की नजर--फसल बर्बाद होने की चोट को दिल मे दबाए क्षेत्र के किसान तृष्णा भरी नजरो से सरकार की तरफ देख रहे हैं। ताकि खेती का भार कम हो सके और कर्ज के बोझ से छुटकारा मिल जाए। यदि विभाग की ओर से स्थलीय निरीक्षण कर मुआवजा दी जाए तो शायद इसका लाभ सही लोगों तक पहुंच सकेगा।

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