विश्व पर्यावरण दिवस: बीएस 6 और कोविड 19 से बदलेगी वाहनों की दुनिया

पर्यावरण की रक्षा करनी है तो वाहनों के प्रदूषण को कम करना बेहद जरूरी है।

By Ankit DubeyEdited By: Publish:Fri, 05 Jun 2020 07:00 AM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 09:15 AM (IST)
विश्व पर्यावरण दिवस: बीएस 6 और कोविड 19 से बदलेगी वाहनों की दुनिया
विश्व पर्यावरण दिवस: बीएस 6 और कोविड 19 से बदलेगी वाहनों की दुनिया

नई दिल्ली, विनीत शरण। पर्यावरण की रक्षा करनी है तो वाहनों के प्रदूषण को कम करना बेहद जरूरी है। बीएस-6 लागू होने और इलेक्ट्रिक व्हीकल को बढ़ावा देने की नीति से इस दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया जा चुका है। पर कोविड 19 के चलते भी ऑटो इंडस्ट्री और वाहनों पर असर पड़ना तय है। ऐसे में क्या होने वाला है, जानते हैं ऑटो एक्सपर्ट से और साथ ही जानेंगे कि कैसे बीएस 6 प्रदूषण रोकेगा।

ऑटो एक्सपर्ट टूटू धवन का कहना है कि बीएस-6 लागू हो चुका है। बीएस चार मानक वाला ईंधन भी मिल रहा है। इससे प्रदूषण न के बराबर होगा। पर कोविड के चलते अर्थव्यवस्था बुरी हालत में है। अभी नए वाहन कम बिकने की उम्मीद है। अभी सड़कों पर ज्यादातर वाहन बीएस-4 श्रेणी के होंगे। इसलिए बीएस-6 वाहनों का असर 5 साल बाद ही दिखेगा। टूटू धवन ने उम्मीद व्यक्त की है कि एक साल में ऑटो इंडस्ट्री पटरी पर लौट आएगी।

कोविड का असर

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि वायरस संक्रमण के चलते आने वाले दिनों में लोग अपने वाहनों खासकर कार खरीदने पर जोर दे सकते हैं क्योंकि निजी वाहन में संक्रमण की आशंका कम है। जाहिर तौर पर इससे सड़क पर वाहन की संख्या और प्रदूषण दोनों बढ़ सकते हैं। टूटू धवन के मुताबिक कोविड से आने वाले दिनों में सड़क पर वाहनों की संख्या बढ़ेगा या घटेगी, इस बात का आंकलन करने में कम से कम अभी छह महीने इंतजार करना होगा।

इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर संभलकर नीति बनानी होगी

विशेषज्ञों का मानना है कि इलेक्ट्रिक वाहनों से प्रदूषण कम होता है, लेकिन उन्हें चलाने के लिए बिजली की जरूरत होती है। चूंकि ज्यादातर बिजली उत्पादन कोल आधारित है, इसलिए इससे प्रदूषण बढ़ेगा। वहीं इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी भी खराब होने के बाद प्रदूषण का कारण बनती है।

क्या है बीएस

बीएस यानी भारत स्टेज को भारत में वर्ष 2000 में लागू किया गया था। इससे पहले तक देश में कार्बन उत्सर्जन को लेकर कोई मानक नहीं था। बीएस को यूरोपियन कार्बन उत्सर्जन मानक यूरो की तर्ज पर भारत में लागू किया गया था। इसके बाद 2003 में आया बीएस2 और फिर 2005 में बीएस3। इसके बाद 2010 में बीएस 4 आया। अब एक अप्रैल 2020 से बीएस6 लागू हो चुका है। ईंधन की गुणवत्ता में भी सुधार किया जा रहा है। कई शहरों में बीएस चार मानक वाला ईंधन भी मिल रहा है। जबकि देश के बाकी हिस्से में बीएस-3 ईंधन की आपूर्ति की जा रही हैं।

भारत ने एक स्टेज को जंप किया

भारत सरकार ने एक स्टेज छोड़कर बीएस4 के बाद सीधे बीएस6 लागू किया है। ऐसा करने के पीछे गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण के स्तर में कमी लाने को वजह बताया गया है। पहले बीएस 6 को 2022 से शुरू करने की घोषणा की गई थी, लेकिन हवा की गुणवत्ता अत्यधिक खराब होने के कारण सरकार ने इस श्रेणी के मानकों पर आधारित वाहनों को 2020 से ही प्रयोग में लाने का फैसला किया है।

सल्फर के उत्सर्जन में कमी लाना है मकसद

बीएस के स्टेज में बढ़ोतरी का मकसद उत्सर्जन के मानकों को बेहतर बनाना होता है। इससे पेट्रोल और डीजल गाड़ियों से निकलने वाले धुएं के साथ सल्फर की मात्रा कम होती है। जैसे बीएस3 पेट्रोल गाड़ियां 150 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम सल्फर उत्सर्जित कर सकती थी। जो बीएस6 में 10 मिलीग्राम प्रति किग्रा हो गया है। इसी तरह डीजल गाड़ियां बीएस3 में 350 मिलीग्राम प्रति किग्रा सल्फर उत्सर्जित कर सकती थीं, जिसकी मात्रा घटकर 10 मिलीग्राम प्रति किग्रा हो गई है।

बीएस-6 इन गैसों को भी रोकेगा

कार्बन डाईऑक्साइड, कर्बन मोनो ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसें इंटरनल कंबशन इंजन से पैदा होती हैं। वहीं डीज़ल और डायरेक्ट इंजेक्शन पेट्रोल इंजन से पर्टिकुलेट मैटर (पीएम) पैदा होते हैं।

इन तकनीक का कमाल

बीएस-6 की तकनीक और फिल्टर प्रदूषण को बेहद कम कर देंगे। वही इस तकनीक में प्रदूषण को कम करने के लिए ईंधन के जलने वाले चैंबर को और परिष्कृत किया जाता है जिससे बाईप्रोडक्ट कम निकलें। पर्टिकुलेट मैचर और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे प्रदूषण को रोकने के लिए अतिरिक्त तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।

- बीएस-6 में नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन पेट्रोल इंजन में 25 प्रतिशत कम होगा

- डीज़ल इंजन में 68 प्रतिशत कम होगा यह उत्सर्जन

- 82 प्रतिशत कम होगा डीजल इंजन में पर्टिकुलेट मैटर का स्तर भी

वाहन प्रदूषण कितना घातक

शहरों में 40 फीसदी प्रदूषण का कारण वाहनों के चलते होता है। वहीं एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक अगर डीजल वाहन के प्रदूषण को कम कर दिया जाए तो प्रदूषण से होने वाली दो तिहाई मौतों को रोका जा सकता है। भारत में प्रदूषण से हर साल 3.85 लाख लोगों की मौत होती है।

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