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विश्व का सबसे बड़ा क्लासरूम 'स्मिथसोनियन'

साल 1850 में एक अंग्रेज के तोहफे की मदद से दुनिया का सबसे बड़ा म्यूजियम कांप्लेक्स स्मिथसोनियन तैयार हुआ, जो कि अमेरिका की राजधानी का चमता हुआ आभूषण बन गया। चलते हैं आज इसके सफर पर

By Priyanka SinghEdited By: Published: Tue, 05 Feb 2019 05:05 PM (IST)Updated: Tue, 05 Feb 2019 05:05 PM (IST)
विश्व का सबसे बड़ा क्लासरूम 'स्मिथसोनियन'
विश्व का सबसे बड़ा क्लासरूम 'स्मिथसोनियन'

जब मैंने 'स्मिथसोनियन' से अपने होटल वापस जाने का रुख किया, तो मैंने खुद से कहा कि मैं यहां दोबारा जरूर आऊंगी। मैं वॉशिंगटन डीसी के मुख्य मागरें पर छह घंटे पैदल घूमी, जहां मैंने इसके 11 म्यूजियम के चक्कर लगाए, लेकिन मैं और भी देखना चाहती थी।

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19 म्यूजियम, जो स्मिथसोनियन समूह के अंदर आते हैं, उनमें से ग्यारह नेशनल मॉल एरिया के आस-पास हैं। ये अमेरिका के सबसे ज्यादा घूमे जाने वाले आकर्षण व्हाइट हाउस के आस-पास हैं। 2017 में जब वहां घूमने वालों की गिनती हुई थी, तो दुनियाभर के तकरीबन 30 मिलियन (3 करोड़) लोग पेड़ों से घिरे इन रास्तों पर गुजर चुके थे, जहां मैं म्यूजियम चुनने के लिए घूम रही थी। नवंबर के महीने में यहां घूमने आने वालों की संख्या कम होती है, इसलिए भीड़ भी कम होती है, फिर भी मुझे सैलानियों के समूहों की भीड़ की वजह से नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम की यात्रा को हाथ से जाने देना पड़ा। स्पेस म्यूजियम के बाहर मैंने सैलानियों का एक और समूह देखा, जाहिर है वे भारतीय थे। वे लोग अंदर जाने के लिए काफी संख्या में जुट रहे थे। सभी म्यूजियम की एंट्री पूरी तरह से मुफ्त है। उस जगह मौजूद हर बिल्डिंग में कई म्यूजियम विशिष्ट, वास्तुकला की बारीकियों के लिहाज से प्रत्येक अलग थे, लेकिन जिस एक बिल्डिंग ने मेरा ध्यान खींचा वह एक लाल रंग की बिल्डिंग थी। वह देखने में ऐसी लग रही थी कि मानो उसे ऑक्सफोर्ड या कैंब्रिज की दुनिया से लाकर ही यहां रखा गया है। मुझे पता चला कि इस बिल्डिंग को 'द कासल' के नाम से जाना जाता है। वाकई में इस बिल्डिंग की मीनारें और दुर्ग इसे एक महल का आकार देती हैं, लेकिन वास्तव में, कवच वाले किसी शूरवीर की कहानी की बजाय यह स्मिथसोनियन की कहानी के बारे में बताता है और इसकी खोज के बारे में जानने की शुरुआत के लिए यह बेहद उचित जगह है।

म्यूजियम की असल कहानी

1855 में बने इस आलीशान महल के अंदर ऊंची-ऊंची छत वाले कमरे हैं। जहां से सैलानी इस म्यूजियम के बनने के पीछे की वास्तविक और अनोखी कहानियों के बारे में जान सकते हैं। कहानी शुरू होती है वर्ष 1765 में, जब इंग्लैंड के नॉर्थंबरलैंड के पहले ड्यूक ह्यू स्मिथसन का नाजायज बेटा पैदा हुआ था। वह पेरिस के एक गुप्त घर में पैदा हुआ था, जिसे हम जेम्स स्मिथसन के नाम से जानते हैं, इंग्लैंड जा बसा और उसने ऑक्सफोर्ड में खुद को प्रशिक्षित किया। वहां उसे प्रकृति विज्ञान में गहरी रुचि विकसित हुई। वैज्ञानिक के रूप में अपना नाम बनाने की इच्छा के साथ, उसने खनिज लवण और अयस्क के नमूने इकट्ठे करने शुरू किए और अपने प्रयोग के परिणाम को प्रकाशित कराया। इस प्रकार उसने अपने लिए प्रशंसा कमाई और रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन की सदस्यता भी हासिल की। अपनी वसियत में जेम्स स्मिथसन ने अपनी इकट्ठी की गई पूरी जायदाद अपने भतीजे हेनरी जेम्स हंगरफोर्ड के नाम कर दी और साथ में यह भी जोड़ा कि यदि उसका भतीजा बिना किसी वारिस के मर जाता है, तो सारा पैसा अमेरिका को वॉशिंगटन में ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए बनाए गए 'स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूट' में दे दिया जाना चाहिए। जब हेनरी वास्तव में बिना किसी वारिस के ही मर गया तो वसीयत में बताए गए अमेरिका के इंस्टीट्यूट को लेकर चर्चा होने लगी।

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं, अमेरिकी सरकार में कई ऐसे थे जो इस मुफ्त के उपहार में मीनमेख निकालने वालों में से थे। अंतत: 1838 में, 104,960 सोने के सिक्के, जिनकी कीमत कुल 500000 डॉलर थी, की कुल विरासत ग्यारह मजबूत बक्सों में बंद करके छह सप्ताह की अटलांटिक महासागर यात्रा से उस पार जहाज के जरिए भेज दी गई। समुद्र के रास्ते इतने खतरनाक थे कि जहाज टूट गया और सारा पैसा हमेशा-हमेशा के लिए खो गया।

लाल ईंटों का महल जैसा

1847 में, एक 28 साल के आर्किटेक्ट जेम्स रेनविक को म्यूजियम बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी। इसे ऑक्सफोर्ड की तरह दिखने वाले लाल ईंटों के महल की तरह बनाने को कहा गया ताकि यह सिद्ध हो सके कि अभी भी अमेरिका के लोग संस्कृति से पूरी तरह विमुख नहीं हुए थे। इस बिल्डिंग में एक आर्ट गैलरी, एक पुस्तकालय, एक रसायन प्रयोगशाला, लेक्चर हॉल और ऑफिस हैं। लेकिन इन सालों में, एक शिक्षण के रूप में शुरू किए गए इस शैक्षिक संस्थान में वृद्धि हुई। इसमें अधिकारियों ने कलाकृतियों को जोड़ा। इस प्रकार सैलानियों से अर्जित राजस्व में वृद्धि हुई। जल्द ही इतना पैसा इकट्ठा हो गया कि उससे दूसरी बिल्डिंग बनाई जा सके, जिसे आर्ट्स गैलरी का नाम दिया गया। आज यह दुनिया के सबसे बड़े म्यूजियम परिसरों में गिना जाता है, जिसका उद्देश्य आगंतुक को अमेरिकी कला, अफ्रीकी कला, विज्ञान, वायु और अंतरिक्ष, प्रकृति इतिहास, डाक इतिहास, ललित कला और मूर्तिकला, 3डी इमेजिंग, रोबोटिक्स और अन्य विषयों के बारे में बताना और ज्ञानवर्धन करना है।

14 करोड़ सामान

कई इमारतों में हुए संग्रह में कुल 138 मिलियन सामान हैं और कई अन्य सामान दुनिया के तमाम हिस्सों से जुटाए जा रहे हैं। द कासल में आगंतुक तमाम म्यूजियम की प्रकृति और बनावट के बारे में समझ सकते हैं और अपना चुनाव कर सकते हैं।

आर्थर सैकलर गैलरी, एशियन आर्ट

इस गैलरी में एक सरप्राइज है। भारतीय मूर्तिकार सुबोध गुप्ता ने यहां कुछ बनाकर रखा हुआ है, जिसका नाम है टर्मिनल, यह तांबा और स्टील के बर्तन और धागों से बना परिदृश्य है। ज्यामितीय और वास्तुशिल्प दोनों के हिसाब से, यह मुझे धागे के जाल के अंदर और बाहर जाने देता है। इसने मुझे गर्व से भर दिया कि प्रदर्शनी में इसकी जगह कितनी गरिमापूर्ण है। मैंने यहां कांस्य और पत्थर की सुंदर मूर्तिकलाएं भी देखीं, जिन पर स्पष्ट रूप से लेबल दिखाई देता है, बुद्ध कक्ष में प्रवेश करें, जहां धूप की सुगंध है और लद्दाख के मठों में लगातार जप किया जाता है और छठी शताब्दी में उकेरे गए किजिल, चीन के भित्तिचित्र हैं जो अजंता की शैली और रंग से संबंधित हैं। यमन लॉस्ट सिटी नामक एक प्रदर्शनी बेहद मार्मिक थी। इसमें दिखाया गया है कि कभी यमन कैसा था। भूरे रंग वालीं जंग लगीं रंग-बिरंगी इमारतें, जिन पर नाटकीय सुंदरता पैदा करतीं कई आकारों वालीं सफेद रेखाओं को बनाया गया था। और जब उन्हें नष्ट कर दिया गया, तो इन्हें खत्म हो चुके, सांस लेने के लिए संघर्ष करते, एक-दूसरे पर झुके हुए कबूतर के घोंसले से बदल दिया गया।

हिर्सशोर्न म्यूजियम

इस गोल बिल्डिंग के आसपास का मिजाज यहां का मुख्य आकर्षण था। यह प्रदर्शनी, एशियाई कला के विपरीत, कलाकृति बनाने में मानव हृदय की धड़कन का उपयोग करती है। मैक्सिको में जन्मे कलाकार राफेल लोजानो ने सेंसर के माध्यम से बताया कि कैसे मैंने कमरे में एक श्रृंखला की चीजों को छुआ। मेरे दिल की धड़कनों ने बल्ब जलाए या पानी की तरंगों को उत्पन्न किया और मेरी धड़कनें ऐक्रेलिक पैनलों को पता लगीं। जैसे ही मेरे पीछे का व्यक्ति मेरी जगह लेता है, मेरी रचना दूसरों से जुडऩे के लिए आगे बढ़ती, जो मुझसे आगे निकल गए हैं और इस प्रकार हर कमरा उज्जवल, स्पंदनशील बैकग्राउंड का एक कभी-कभी बदलने वाला कैनवास बनाता रहा।

म्यूजियम ऑफ अफ्रीकन आर्ट

यहां रोजाना इस्तेमाल में आने वाली खास चीजें थीं, जिनमें सजी हुई लौकी और एंब्रॉयड्री किए हुए कपड़ों की पट्टियां थीं, जिनमें दवाइयां थीं। लेकिन मेरी नजर पड़ी एक मूर्तिकला पर जिसे घाना के एल अनासुती ने बनाया था। उन्होंने 1944 में इसे बनाया था जिसमें उन्होंने पर्यावरण के लिए अपनी चिंता का एक भावनात्मक प्रदर्शन किया था। यह, जहां वे रहते थे, वहां फेंकी गई बोतलों के ढक्कन की मदद से पूरी तरह से मोड़ी जा सकने वाली मूर्ति थी। यह मुझे अपने घर ले आया कि हम कितना कुछ लापरवाही में यूं ही बर्बाद कर देते हैं!

मैंने यहां कई तरह के संग्रहालयों में से कुछ के माध्यम से चलने का सिर्फ एक नमूना पेश किया। जिन्हें कितनी अच्छी तरह से बनाए रखा गया है। यह दिमाग को खोल सकता है और कल्पना को उस जगह तक पहुंचने के लिए बता सकता है जहां यह पहले कभी नहीं पहुंचा था। कोई भी संग्रहालय ऐसा कर सकता है, लेकिन स्मिथसोनियन ने वास्तव में इसे आश्चर्यजनक रूप से अच्छी तरह से किया है।

सत्या सरन


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