खास भस्म आरती के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर
अयोध्या में होने वाले श्रीराम मंदिर के भूमिपूजन के लिए उज्जैन के भगवान महाकालेश्वर को चढ़ाई जाने वाली भस्म मंदिर की मिट्टी और शिप्रा नदी का जल भेजा गया है। जानें क्यों है यह खास।
उमड़ते-घुमड़ते बादलों के बीच दूर से चमचमाते मंदिर के शिखर इसके पृष्ठों की कहानी स्वत: कहते जाते हैं। मंदिर की महिमा की लालिमा का प्रकाश, प्रकाश पुंज बनकर भक्तों को दूर-दूर से आकíषत करता है। हर-हर महादेव की गूंज वातावरण को आस्थामयी और आनंदमयी बना देती है।
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर
महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिìलगों में से एक है। यह मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर में स्थित है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यंत पुण्यदायी महत्ता है। मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। यवनों के शासनकाल में धाíमक परंपराएं नष्ट हो चुकी थीं। तब मराठों के शासनकाल में दो महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं-पहला महाकालेश्वर मंदिर में पुनíनमाण और ज्योतिìलग की पुन: प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना, यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। आगे चलकर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया।
भस्म आरती का आकर्षण
महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन होने वाली भस्म आरती सबसे विशेष है। यह आरती अलसुबह शिव जी को जगाने के लिए की जाती है। भगवान की पूजा घाटों से लाई गई पवित्र राख से की जाती है। आरती का आयोजन करने से पहले राख को लिंगम में स्पर्श कराया जाता है। यह आरती एकमात्र इसी मंदिर में ही की जाती है। यही वजह है कि इस आरती में शामिल होने के लिए लोग ऑनलाइन टिकट बुकिंग कराते हैं और दुनिया के विभिन्न कोनों से इस आरती के लिए आते हैं।
मंदिर के विशेष दिन
वैसे तो मंदिर में प्रतिदिन ही मेला लगा रहता है मगर कुछ विशेष अवसरों पर यहां शोभा देखने योग्य होती है। इनमें महाकाल यात्रा, नित्य यात्रा, हर सोमवार और विजयदशमी को निकाली जाने वाली सवारी व शिवरात्रि प्रमुख हैं।
नजदीकी पर्यटन स्थल
महाकाल मंदिर तो अपने आप में ही पर्याप्त है मगर इसके आस-पास के कुछ इलाके भी अपनी महत्ता के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां नजदीक में महाकाल के संरक्षक काल भैरव का मंदिर मौजूद है। इसके साथ ही यहां गडकालिका मंदिर कालिदास की इष्टदेवी को समíपत है। तो वहीं हरसिद्धि मंदिर विक्रमादित्य की इष्टदेवी का मंदिर माना जाता है। इस मंदिर को ऊर्जा और शक्ति के स्त्रोत के रूप में भी जाना जाता है। इसके साथ ही यहां मौजूद मंगलनाथ मंदिर को मंगल ग्रह की जन्मभूमि कहते हैं। जिनकी कुंडली में मंगलदोष होता है वे शांतिपूजा के लिए यहीं आते हैं। यह मंदिर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पृथ्वी का केंद्र कहा गया है और कथित तौर पर कर्क रेखा यहां से गुजरती है। वास्तुकला में रुचि रखने वाले भक्तों के लिए यहां का श्रीरामजानकी मंदिर खासा आकíषत करता है। इसके साथ ही कृष्ण और बलराम का शिक्षा स्थल संदीपनि आश्रम भी यहां मौजूद है।यहां से जाते वक्त दूर से आती भक्तों की हर हर महादेव की गूंज यहां फिर लौटने को विवश कर देती है।
डॉ. उषा अरोड़ा