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भव्य और सुंदर हम्पी आकर होगा आपको किसी दूसरे देश में आने का एहसास

हम्पी आकर आपको बिल्कुल ऐसा आभास होगा जैसे आप किसी दूसरे देश आ गए हो। मंदिरों, महलों वाली ये जगह घूमने के साथ ही बहुत कुछ जानने का भी मौका देती है।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Fri, 28 Sep 2018 04:03 PM (IST)Updated: Sun, 30 Sep 2018 06:00 AM (IST)
भव्य और सुंदर हम्पी आकर होगा आपको किसी दूसरे देश में आने का एहसास
भव्य और सुंदर हम्पी आकर होगा आपको किसी दूसरे देश में आने का एहसास

डॉ.सच्चिदानंद जोशी

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हम्पी कर्नाटक के बेल्लारी जिले के होसपेठ तालुका में बसा एक प्राचीन नगर है। हम्पी जाने के बाद हम हमारे पुरातन वैभव की बानगी न सिर्फ देख सकते हैं, बल्कि उसे हर चप्पे पर महसूस कर सकते हैं।

हम्पी का इतिहास

अल्लाउद्दीन खिलजी के यादवगिरी राज्य में आने के बाद (1296 ई.) पूरे दक्षिण भारत में आततायियों का साम्राज्य छा गया था। उसके आक्त्रमण से सभ्यता और संस्कृति पर खतरे मंडराने लगे थे। इसी पृष्ठभूमि में उदय हुआ विजय नगर साम्राज्य का, जिसने खिलजी सहित तमाम आक्रमणकारियों को धता बताते हुए एक वैभवशाली राज्य की स्थापना की। विजय नगर साम्राज्य पर तीन वंशों का शासन रहा-संगम वंश, सालुवा वंश और तुलु वंश। हरिहर (1336-56 ई.) से लेकर सदाशिव (1542-70 ई.) तक 21 शासकों ने इस पर राज्य किया, लेकिन जिस राजा के नाम से यह सर्वाधिक जाना गया वह राजा था कृष्णदेव राय (1509-29 ई.)। बचपन में कृष्ण देव राय और तेनाली राम की कथाएं बहुत सुनी होंगी। हम्पी का विजय नगर राज्य वहीं है, जहां इन सारी कथाओं ने जन्म लिया।

हम्पी शहर का नजारा

हम्पी शहर में प्रवेश करते हैं, तो आपको एहसास नहीं होता कि क्या देखने जा रहे हैं। बेल्लारी से लगभग 40 किलोमीटर दूर और होसपेठ से 12 किलोमीटर दूर यह शहर तुंगभद्रा नदी के किनारे बसा है। विजय नगर साम्राज्य के वैभव को देखते हुए आप इसे उस काल का महानगर भी कह सकते हैं। महानगर इसलिए कि यह नगर जिन विभिन्न खंडों में बंटा है, वे सभी खंड अपने आप में एक संपूर्ण नगर है। जब हम उनमें घूमते हैं, तो लगता है कि किसी बड़े महानगर के उपनगरों में घूम रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे आप मुंबई घूमते हुए बांद्रा, विले पार्ले, अंधेरी इत्यादि उपनगरों में घूमते हैं।

मंदिरों में बंटा हम्पी

मूलत: हम्पी का दक्षिणी हिस्सा तीन मुख्य मंदिरों में बंटा माना जा सकता है। विरुपाक्ष मंदिर, अच्युतराया मंदिर और विट्ठल मंदिर। विरुपाक्ष मंदिर अभी भी एक जीवंत देवस्थान है, जहां नियम से पूजा-अर्चना होती है। 165 फीट लंबे और 150 फीट चौड़े शिखर वाला यह मंदिर दूर से ही दिखाई देता है। बाकी सब मंदिर अपने मूल प्रस्तर रूप में हैं, जबकि इसके शिखर को पीले रंग से रंगा गया है। मंदिर के गर्भ गृह तक आपको प्रवेश मिल सकता है, बशर्ते आप 25 रुपये की रसीद अलग से कटवाएं। शिवजी का मंदिर है। विरुपाक्ष मंदिर से कुछ दूरी पर एकशिला नंदी की विशाल प्रतिमा है। उस विशालकाय नंदी और मंदिर के बीच लगभग डेढ़ सौ मीटर की दूरी है। ऐसे में हम मंदिर की भव्यता का अंदाजा स्वयं लगा सकते हैं। इस डेढ़ सौ मीटर के मार्ग पर दोनों तरफ दुकानें और सभामंडप जैसे बने हैं। चूंकि यह मंदिर बसाहट के बहुत निकट है, इसलिए ज्यादातर ये खंडित अवस्था में है।

अच्युतराया मंदिर वाला हिस्सा भी श्रेष्ठतमत शिल्प कृतियों से भरा पड़ा है। मंडपों और दालानों के बीच खड़े होकर जब दूर बने अच्युतराया मंदिर को निहारते हैं, तो आपको एहसास होता है कि सचमुच एक बहुत बड़े वैभवशाली बाजार में खड़े हैं, जहां दोनों ओर श्रेष्ठतम कलाशिल्प से सजी दुकानें हैं, सभामंडप है। जगह-जगह पर बने मंदिरों में जो शिल्प उकेरा गया है वह अद्भुत है। हमारे शिल्पकारों के इस कौशल की मिसाल शायद ही कहीं और देखने को मिले। अच्युतराया मंदिर जाने के लिए आपको मातंग पहाड़ी वाले मार्ग से होकर जाना पड़ता है। वहीं पर प्राचीन कोदंडराम का भी मंदिर है। इस मंदिर की प्रतिमा अनोखी है। हमारे पौराणिक संदभरें के अनुसर यह क्षेत्र पम्पा सरोवर कहलाता था और यह बालि की राजधानी थी। ग्यारहवीं शताब्दी और सातवीं शताब्दी के शिलालेखों में इसका उल्लेख पम्पा क्षेत्र के रूप में मिलता है।अच्युतराया मंदिर से पैदल ही जाने पर आधा पौन किमी. चलने पर आप विट्ठल मंदिर पहुंच जाते हैं। विट्ठल मंदिर वही प्रसिद्ध स्थान है, जहां पर हमें प्रस्तर रथ दिखाई देता है। यही रथ हम्पी का पहचान चिन्ह बन गया है। यह मार्ग भी खासा मनोरम है, क्योंकि एक ओर तुंगभद्रा नदी का मनोरम दृश्य दिखाई देता है और दूसरी ओर कई सारे सुंदर मंदिर और कलाकृतियां बनी दिखती हैं। विट्ठल मंदिर का वह रथ आपको आह्वान देता-सा नजर आता है। मानो चुनौती हो कि ''है और कोई जो हमारी इस अद्वितीय शिल्पकला का मुकाबला कर सके''। संपूर्ण मंदिर ही एक से एक नायाब शिल्पों से भरा हुआ है।

सुंदर जलाशय

विजय नगर साम्राज्य की एक विशेषता और है कि प्रत्येक उपनगर जहां एक मंदिर हैं, बाजार हैं, लेकिन उसके साथ एक सुंदर जलाशय भी है, जिसे पुष्करणी कहा जाता है। आज सारे जलाशय सूखे पड़े हैं। समय की परतों के साथ उन पर धूल-मिट्टी और वनस्पति जम गई है, लेकिन कभी ये पानी से भरे हुए खूबसूरत लगते थे। यह बात अच्छी है कि इन मंदिरों तक अपने वाहन से नहीं जा सकते। वाहन पार्किंग पर छोड़कर बैट्री रिक्शा से जाना पड़ता है। इसे ज्यादातर महिलाएं ही चलाती हैं। कृष्णदेव राय के समय की महिलाओं के सशक्तीकरण की कहानियां बहुत प्रचलित हैं। पैदल चलते हुए जहां भी निगाह जाती कुछ न कुछ अनूठा और नायाब नजर आ ही जाता। एक पहाड़ पर तो कहा जाता है कि कई हजार शिवलिंग बने हुए हैं। इसका नाम भी कोटिलिंगा है।

हेमकूट पर्वत पर विराजते हैं गणेश भगवान

यहां प्रवेश करते ही आपको गणेश जी की विशाल प्रतिमा दिखाई देगी। यह बारह फीट ऊंची प्रतिमा है। विशेषता यह कि यह ज्यादा क्षत-विक्षत नहीं है, लेकिन जो खास बात इस प्रतिमा के बारे में है, वह यह कि जब इसे पीछे जाकर देखते हैं, तो पाते हैं कि एक स्त्री की आकृति भी है प्रतिमा में। कहा जाता है कि गणेश जी माता पार्वती की गोद में बैठे हैं। इस पर्वत से आपको चारों ओर बहुत सुंदर दृश्य दिखते हैं। 16 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले विजय नगर साम्राज्य का विहंगम दृश्य आपको यहां से दिखता है। वैसे, सबसे विहंगम दृश्य तो अच्युतराया मंदिर के पीछे पहाड़ पर बने वॉच टावर से दिखता है, जो उसी काल का बना है। नगर का एक हिस्सा कमलापुर भी है। इसी मार्ग पर एक विशाल प्रतिमा आपका ध्यान खींच लेती है और वह है उग्र नरसिंह की प्रतिमा। इसे लक्ष्मी नरसिंह की प्रतिमा भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें लक्ष्मी नरसिंह के गले में हाथ डाले बैठी हैं ऐसी कल्पना की गई है। लक्ष्मी की प्रतिमा तो नहीं दिखती, हां नरसिंह के गले में जाता उनका हाथ अवश्य दिखाई देता है। सिर्फ कल्पना मात्र से रोमांच हो उठता है कि अपने सम्पूर्ण स्वरूप में यह प्रतिमा कितनी भव्य दिखाई देती होगी। 22 फीट ऊंची इस प्रतिमा के निकट ही बड़वालिंग नामक शिवलिंग है, जो काले प्रस्तर का बना 12 फीट ऊंचा शिवलिंग है। जो हमेशा पानी में डूबा रहता है।

पातालेश्र्वर मंदिर

पातालेश्वर मंदिर के नजदीक एक जगह है जहां राजा एवं रानी का महल और अन्य इमारतों के अवशेष हैं। मंदिर से अंदर जाते ही आपको रानी के महल का चबूतरा दिखाई देता है। चबूतरे को देखकर उस पर खड़े महल की भव्यता का अंदाजा लगाया जा सकता हैं। सामने बहुत ही सुंदर ढंग से बना कमल महल है। इसमें आपको भारतीय स्थापत्य और मुगल स्थापत्य, दोनों का मिश्रण नजर आएगा। यह चूने-मिट्टी से बना है। इसलिए इसके अंदर शीतलता का आभास होता है। ऐसा लगता है कि इसके चारों ओर पानी रहा होगा। कमल महल के आगे ही हाथियों के विश्राम की जगह है। उसमें 11 हाथियों के लिए स्थान है। इसकी भव्यता देखो तो यह किसी महल-सा दिखाई देता है। जब हाथियों के विश्राम के लिए इतना भव्य स्थान है, तो राजा का महल कैसा होगा, इसकी अंदाजा लगाया जा सकता है। रानी का स्नानघर भी है। नजदीक ही अंगरक्षकों के रहने का स्थान भी है। ये सभी स्थान स्थापत्य और भव्यता के हिसाब से विस्मय पैदा करने वाले हैं। हमारे आजकल के महानगरों को देखें तो सचमुच आज से 600 वर्ष पूर्व बना यह महानगर कोई दूसरा देश ही लगता है।

 

कैसे पहुंचे

रेल से जाना हो, तो बेल्लारी और सड़क से यात्रा करनी हो, तो होसपेठ सुविधाजनक है। बेंगलुरु से होसपेठ छह से आठ घंटे में सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। 


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