स्वाद के अलावा हर्बल चिकित्सा में भी जादू बिखेरता है यह मसाला, जानें 'कबाबचीनी' की खासियत
पाश्चात्य खान-पान में कबाबचीनी ने ऐसी हुकूमत दर्ज कर रखी है कि यह अकेला लगभग सभी दूसरे स्वादिष्ट और सुगंधित मसालों के बराबर है। यह हर्बल ट्रीटमेंट में भी जादू बिखेरता है।
पुष्पेश पंत
विश्व भर में जो मसाले खानपान में जान डालते हैं उनमें ज्यादातर या तो भारत की संतानें हैं या दक्षिण पूर्व एशिया की। हालांकि एकाध मसाला ऐसा भी है जिसकी जन्मभूमि भूमध्यसागर का तटवर्ती इलाका है। इन सबमें सिर्फ एक अपवाद है और उस मसाले का नाम है कबाबचीनी। इस मसाले के अंग्रेजी नाम 'ऑल-स्पाइस' में यह अहंकार झलकता है कि कम से कम फिरंगियों की नजर में वह अकेला सभी दूसरे स्वादिष्ट, सुगंधित मसालों के बराबर है।
एक में खुशबू चार की
यह सच है कि काली मिर्च की तरह दिखलाई देने वाले कबाबचीनी मसाले की गंध दालचीनी, लवंग, इलायची और जायफल की मिली-जुली महक जैसी लगती है। स्वाद के मामले में यह इनमें किसी एक के बराबर तेज नहीं होता और हां, इसके उड़नशील तेलों का वाष्पीकरण बहुत तेजी से होता है इसलिए पहले से पिसे पाउडर का असर फीका लगता है। शायद इसी कारण यूरोप में इसकी महिमा भारत से ज्यादा है।
जमैका का लाडला
कबाबचीनी की अकस्मात खोज कोलंबस ने की थी। जब वह उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीपों के बीच कैरेबियन सागर में स्थित जमैका की धरती पर उसके जहाज ने लंगर डाला तो उसने इन बोरियों को ही काली मिर्च समझ लिया। कबाबचीनी का हठीला पेड़ जमैका के बाहर तमाम जतन से पालने-पोसने के बाद भी पनप नहीं सका। इस मसाले का सबसे बड़ा खरीददार नॉर्वे है जहां अचारी मछलियां, ठंडे सुअर या नमक से पकाए गोश्त के कतरो वाली तश्तरी स्मॉग्सबोर्ड की कल्पना ताजा पिसी या साबुत कबाबचीनी के अभाव में नहीं की जा सकती। जर्मनी के सॉसेज में भी कबाबचीनी का खुले हाथ से इस्तेमाल होता है। पश्चिम में केक-पेस्ट्री, चीज और वाइन के अलावा आफ्टर शेव लोशन, टूथपेस्ट और दवाइयों के बनाने में कबाबचीनी का व्यापक रूप से इस्तेमाल होता है।
सीक्रेट मसालों में भी मौजूदगी
हाल के सालों में हर्बल चिकित्सा और एरोमा थेरेपी का ऑप्शन लोकप्रिय हुआ है। इस मामले में कबाबचीनी को सर्वगुण संपन्न घोषित किया जा रहा है। हड्डियां मजूबत होती हैं। झुर्रियां दूर की जा सकती हैं, पाचन शक्ति बढ़ती है, रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। हैदराबाद के पुराने बावर्चियों का मानना है कि कबाबचीनी दूसरे सुवासित मसालों को निखार देती है। शाही गरम मसाले में भी इसे इस्तेमाल किया जाता है। इसे नमकीन और मीठे व्यंजनों में समान रूप से काम में लाया जा सकता है।
सवाल छिपे हैं कई
यह पहेली बची रह जाती है कि हिंदी और अनेक दूसरी भारतीय भाषाओं में यह कबाबचीनी क्यों कहलाती है? दक्षिण भारत में जहां उच्च कोटि के लौंग, इलायची, काली मिर्च पैदा होते हैं और बेहतरीन दालचीनी श्रीलंका में सुलभ है मगर इसकी मांग अधिक क्यों नहीं होती। न तो यह चीन की पैदावार है और न ही इस बात का कोई सुराग मिलता है कि इसे यहां पहुंचाने वाले चीनी समुद्री सौदागर थे। नाम के पहले हिस्से से प्रतीत होता है कि इसका चलन सामिष व्यंजनों तक ही सीमित रहा है।