बस चार मसालों से मिलकर बने विदेशी हर्ब मिश्रण की सीजनिंग किसी भी रेसिपी का स्वाद कर देती है दोगुना
इतालवी भोजन पिज्जा की खासियत है उसके साथ मिलने वाली हर्ब की पुडि़या। चार मसालों से मिलकर बने इस विदेशी हर्ब मिश्रण की सीजनिंग दोगुना कर देती है स्वाद.
पुष्पेश पंत
भारत में हम मसालों को पीस कर या कूट-कुचलकर इस्तेमाल करने के आदी हैं जबकि पश्चिम देशों में स्वाद या सुवास के लिए जिन पदार्थो को प्रयोग होता है वे ज्यादातर व्यंजनों के ऊपर छिड़के जाते हैं। मुख्यत: नमक और काली मिर्च को ही सीजनिंग के काम में लाया जाता रहा। कुछ ही सदी पहले तक यूरोप में दक्षिण पूर्व एशिया या भारत के मसाले आम आदमी की पहुंच से बाहर थे। काली मिर्च के ताजा मोटे-कुटे कुछ ही दाने उन्हें मंत्रग्मुग्ध करने के लिए काफी थे। हां, भूध्यसागरीय क्षेत्र और इनके संपर्क में ईसा के जन्म से पहले की सदियों से रहे इतालवियों के खान-पान में उन जड़ी-बूटियों (ताजा या सूखी वनस्पतियों) को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था, जिन्हें अंग्रेजी में हर्ब कहते हैं।
युद्ध में मिला दुर्लभ स्वाद कुछ ही साल पहले ही शहरी हिंदुस्तानियों का परिचय पिज्जा के साथ छोटी पुडि़या में दी जाने वाली इतालवी सीजनिंग से हुआ। इसमें ओरेगानो-मार्जोराम, रोजमेरी, थाइम का मिश्रण होता है। विदेशी नाम हमें यह भान कराते हैं कि ये कोई दुर्लभ चीजें हैं जो हमारे आम मसालों जैसे धनिया, जीरा आदि से बेहतर हैं। सच्चाई यह है कि ये सब हमारे भंडार में उपलब्ध रहे हैं। ओरेगानो पुदीना प्रजाति के परिवार की सदस्य है, जो दक्षिणी इटली तथा तुर्की में बेहद लोकप्रिय है। इसे शाकाहारी व्यंजनों, सलाद, सूप, तले-भुने मांस में उपयोग किया जाता है तो वहीं मार्जोराम इसकी करीबी रिश्तेदार है। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक अमेरिकियों को भी इस मसाले की कोई जानकारी नहीं थी। इस मोर्चे पर तैनात अमेरिकी सिपाहियों की जुबान पर इसका जायका ऐसा चढ़ा कि वे इस स्वाद को अपने साथ ले गए। दो विश्व युद्धों के अंतराल के वर्षो में बड़े पैमाने पर इटली से अमेरिका में आव्रजन हुआ। न्यू यॉर्क जैसे शहरों में पिज्जा बेचने वाली दुकानें पहले से थीं। उन्होंने इस संयोग का लाभ उठाया और इतालवी सीजनिंग वाली जड़ी-बूटियां अन्य अमेरिकी व्यंजनों की भी जान बन गई।
सीक्रेट रेसिपी का हिस्सा
रोजमेरी का भारतीय नाम गुलमेंहदी है। रोजमर्रा में भले ही इसको काम में न लाया जाता रहा हो मगर अवध और हैदराबाद के शाही बावर्ची अपने व्यंजनों को नायाब बनाने के लिए इसका इस्तेमाल करते रहे हैं। हांलाकि यह उनके पाक रहस्यों में से एक है। आधुनिक विज्ञान की मानें तो रोजमेरी में कीटाणुनाशक क्षमता होती है पर यदि इसकी मात्रा अधिक हो जाए तो नुकसानदेह प्रभाव भी हो सकते हैं। इस बूटी की जुगलबंदी अधिकतर मुर्गी और मांस के व्यंजनों के साथ साधी जाती है।
स्वाद भी सुवास भी
थाइम वन स्वाद, गंध और प्रभाव में अजवाइन जैसी ही होती है। प्राचीन काल में मिस्त्रवासी अपने देवराज फरोआओं की मृत्यु के बाद उनके निर्जीव शरीर के संरक्षण के लिए तैयार किए जाने वाले लेप में इसे शामिल करते थे। रोमन बादशाह और कुलीन दरबारी शयनागारों और भोजन कक्ष में लोबान की तरह इसे जलाना पसंद करते थे। कुछ सदी पहले तक यूरोप के ग्रामीण प्रदेश में बुरे स्वप्नों को दूर रखने और गहरी नींद के लिए लोग इसकी पोटली सिरहाने तकिए के नीचे दबाकर रखते थे। पश्चिमी खान -पान में मदिरा को सुवासित बनाने के लिए भी इसका प्रयोग होता रहा है।
मसालों से संपन्न रहे हम
अब सवाल यह है कि जब ये सारी जड़ी-बूटियां हमें भी सुलभ थीं, तो हमारे खाने में इनका ज्यादा इस्तेमाल क्यों नहीं हुआ? दरअसल, हमारे पास तरह-तरह के मसाले पहले से ही थे जिनका इस्तेमाल बदलते ऋतुचक्र के साथ आयुर्वेद की जानकारी का लाभ उठाते हुए होता था। हमारी पाकशैली की विधि ऐसी थी कि ऐसी नाजुक जड़ी-बूटियों की मौजूदगी उसमें महसूस नहीं की जा सकती थी। मसाले बरतने के तरीके भी उनके स्वाद-प्रभाव को बदल देते हैं। तड़का, बघार, छौंक आदि में तले मसालों में ताजा या सुखाई गई जड़ी-बूटियों की कल्पना कठिन है। इसका यह मतलब नहीं कि हम इनको अपना नहीं सकते। आंख मूंदकर हर व्यंजन के ऊपर तंदूरी या चाट मसाला छिड़ककर चीज का स्वाद एक सा बना देने से कहीं बेहतर हैं अतिरिक्त अलंकरण के लिए इन हर्ब का उपयोग।.. और फिर हरा धनिया, पुदीना भी तो बूटियां ही हैं!
(लेखक प्रख्यात खान-पान विशेषज्ञ हैं)
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