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उदयपुर का सास-बहू मंदिर, नाम ही नहीं यहां की कहानी भी है बिल्कुल अलग

राजस्थान के उदयपुर में स्थित है सास-बहू मंदिर। जो कभी सहस्त्रबाहू मंदिर के नाम से जाना जाता था। भगवान विष्णु की हजारों भुजाओं वाली मूर्ति है यहां स्थापित।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Thu, 14 Mar 2019 01:51 PM (IST)Updated: Thu, 14 Mar 2019 01:51 PM (IST)
उदयपुर का सास-बहू मंदिर, नाम ही नहीं यहां की कहानी भी है बिल्कुल अलग
उदयपुर का सास-बहू मंदिर, नाम ही नहीं यहां की कहानी भी है बिल्कुल अलग

भारत एक ऐसा देश जहां हर धर्म-संप्रदाय के लोग रहते हैं और इसी वजह से यहां पूजा स्थलों की भरमार है। नदी, समुद्र, पहाड़, आग, पानी, पशु-पक्षी हर एक के लिए यहां मंदिर बनाए गए हैं। इन्हीं विचित्र मंदिरों में शामिल है सास-बहू मंदिर, सुनने में जितना अनोखा उतनी ही अनोखी है यहां की बनावट भी। तो आइए जानते हैं मंदिर से जु़ड़ी रोचक बातों के बारे में।

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कहां है स्थित

राजस्थान के उदयपुर से 23 किमी दूर नागदा गांव में स्थित है यह मंदिर। जो भगवान विष्णु को समर्पित है।

राजा ने अपनी पत्नी और बहू के लिए बनवाया था ये मंदिर

इतिहास बताते हैं कि ऐसा कोई भी मंदिर नहीं जो सा और बहू के लिए बनाया गया था। लेकिन उस समय यहां कच्छवाहा वंश के राजा महिपाल का शासन था। उनकी पत्नी भगवान विष्णु की भक्त थी। तो उनके पूजा-अर्चना के लिए महिपाल ने भगवान विष्णु का मंदिर बनवाया जिसका नाम सहस्‍त्रबाहू रखा। कुछ सालों बाद रानी के पुत्र का विवाह हुआ और उनकी बहू भगवान शिव को पूजती थीं। तो राजा ने अपनी बहू के लिए उसी मंदिर के पास भगवान शिव का मंदिर बनवाया। जिसके बाद दोनों मंदिरों को सहस्‍त्रबाहू कहा जाने लगा।

सहस्‍त्रबाहू से बना सास-बहू

क्योंकि मंदिर में सबसे पहले भगवान विष्णु की स्थापना हुई थी इसलिए इसका नाम सहस्‍त्रबाहू पड़ा। जिसका मतलब होता है 'हजार भुजाओं वाले'। बाद में सही तरीके से न बोल पाने की वजह से प्राचीन सहस्‍त्रबाहू मंदिर सास-बहू मंदिर हो गया।

तकरीबन 1100 साल पुराना है यह मंदिर

इस मंदिर का निर्माण 1100 साल पहले कच्‍छपघात राजवंश के राजा महिपाल और रत्‍नपाल ने बनवाया था। बड़ा मंदिर मां के लिए और छोटा मंदिर अपनी रानी के लिए बनवाया था। तब से ही ये मंदिर सास-बहू के नाम से मशहूर हो गया था। इस मंदिर में भगवान विष्‍णु की 32 मीटर ऊंची और 22 मीटर चौड़ी सौ भुजाओं वाली मूर्ति लगी हुई है, जिसकी वजह से इस मंदिर को सहस्‍त्रबाहू मंदिर भी कहा जाता है।

रामायण की घटनाओं से सजा है मंदिर

बहू की मंदिर की छत को अष्‍टकोणीय आठ नक्‍काशीदार महिलाओं से सजाया गया है। ये मंदिर सास के मंदिर से थोड़ा छोटा है। मंदिर की दिवारों को रामायण की अनेक घटनाओं से सजाया गया है। मंदिर के एक मंच पर भगवान ब्रह्मा, शिव और और विष्‍णु की छवियां खूदी हुई हैं और दूसरे मंच पर भगवान राम, बलराम और परशुराम के चित्र खुदे हुए हैं।

मुगलों ने रेत से बंद कराया था मंदिर

मुगलों ने इस मंदिर को चूने और रेत से बंद करवा दिया था। जब दुर्ग पर मुगलों ने कब्‍जा किया था, तो उन्‍होंने दोनों सास-बहू मंदिर में लगी प्रतिमाओं को खंडित कर दिया था और उसी समय मंदिर को चूने और रेत से भरवाकर बंद करवा दिया था। तब से ही ये मंदिर एक रेत के टापू जैसे लगने लगा था। लेकिन 19वीं सदी में जब ब्रिटीश ने दुर्गे पर कब्‍जा किया तो उन्‍होंने इस मंदिर को दोबारा आम लोगों के लिए खुलवाया।  


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