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दुनिया के बेहतरीन 52 पर्यटन स्थलों में दूसरे नंबर पर है कर्नाटक का हम्पी

हम्पी, अकेला भारतीय पर्यटन स्थल है, जिसे इस साल दुनिया के बेहतरीन 52 पर्यटन स्थलों में दूसरे नंबर पर शामिल किया है। चलते हैं हम्पी के रोचक सफर पर...

By Priyanka SinghEdited By: Published: Fri, 25 Jan 2019 03:25 PM (IST)Updated: Mon, 28 Jan 2019 08:26 AM (IST)
दुनिया के बेहतरीन 52 पर्यटन स्थलों में दूसरे नंबर पर है कर्नाटक का हम्पी
दुनिया के बेहतरीन 52 पर्यटन स्थलों में दूसरे नंबर पर है कर्नाटक का हम्पी

कल्पना कीजिए कि आप एक ऐसे संग्रहालय में सुबह-सुबह प्रवेश करें, जो चारों ओर से न सिर्फ खुला हो, बल्कि सोलहवीं शताब्दी का एक प्रसिद्ध शहर हो! ज्यों-ज्यों दिन खुले तो पतली और काली चमकदार सड़क के दोनों ओर लगे छोटे-छोटे साइन-बोर्ड आपको उन नामों की नगरी में ले जाएं, जो भारतीय इतिहास के स्तंभ माने जाते हैं! जहां बढ़ता हुआ हर अगला कदम आपको यहां की सभ्यता-परंपरा से खुद-ब-खुद वाकिफ करा दे। यह कल्पना हकीकत में तब्दील हो सकती है, यदि आप हम्पी घूमने आएं। दरअसल, हम्पी आपको उस समृद्धतम काल में ले जाता है, जो इतिहास की पुस्तकों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो चुका है। यह वही शहर है, जहां कभी राजा कृष्णदेव राय और उनके अति-बुद्धिमान सलाहकार तेनालीराम रहते थे।

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कलात्मक भव्यता के दर्शन

हम्पी का इतिहास सम्राट अशोक के समय से मिलता है। मध्यकाल तक यह कई राजवंशों की राजधानी रही, लेकिन हम्पी की वास्तविक प्रसिद्धि और समृद्धि विजयनगर साम्राज्य से जुड़ी है, जिसने तुलुववंशीय राजा कृष्णदेव राय के काल में अतुलनीय ऊंचाई हासिल की। इतिहास में विजयनगर साम्राज्य अपने व्यापार और उच्चस्तरीय प्रशासन के लिए जाना जाता है, जब भवन निर्माण, मूर्तिकला और संगीत के क्षेत्र में काफी तरक्की हुई थी। इसकी बानगी आप यहां पसरी तरह-तरह की संरचनाओं में देख सकते हैं। स्तंभों पर बने ऊंचे-ऊंचे घोड़े इस बात के प्रमाण हैं। हालांकि तब की कुछ संरचानाएं अब खंडहर में तब्दील हो गई हैं, लेकिन साबुत बचे हुए भवनों, मंदिरों, सरायों और बाजारों से इस साम्राज्य की भव्यता और उनके कारीगरों के कौशल का पता चलता है। यहां पत्थर पर उकेरी गई महीन कलाकृतियों से सुसज्जित सैकडों भवन हैं। इनमें मंदिर, लंबे-लंबे गलियारे, मूर्तियां, बाजार आदि सब इतने आकर्षक हैं कि उनकी निर्मिति को घंटों निहारा जा सकता है।

खंभों से निकलती हैं स्वर लहरियां!

बिट्ठल मंदिर में ही रथ के पीछे उस परिसर की एक महत्वपूर्ण संरचना है महामंडपम! इसका प्रयोग राजसी नृत्य और संगीत के कार्यक्रमों के लिए किया जाता था। शिल्प की इतनी महीन कारीगरी यहां देखने को मिलती हैं कि एक-एक मूर्ति को देखने में ही काफी समय लग जाए। मंडप की खास बात है पत्थरों को तराशकर बनाए गए खंभे। इस हिस्से में वे खंभे भी हैं, जिन पर चोट करने से कर्नाटक संगीत की बारहों स्वर लहरियां निकलती हैं। भवन निर्माण कला का ऐसा बेजोड़ नमूना संभवत: कहीं और नहीं होगा। वैसे इन खंभों की यह विशेषता उनके अस्तित्व के लिए खतरा भी बन गई है। हम्पी आने वाले लोग पत्थर के खंभों पर चोट करने लगे, जिससे वे खंभे क्षतिग्रस्त होने लगे हैं। मजबूरन सरकार को महामंडपम में लोगों के प्रवेश को रोकना पड़ा। अब उस मंडप को एक निश्चित दूरी से ही देखा जा सकता है।

 

धरोहर को संजोए है वर्तमान

हम्पी के मंदिरों के मामले में एक बात बहुत रोचक लगती है। आसपास बसे लोग उन मंदिरों में अब भी पूजा-अर्चना करने आते हैं। मंदिरों की पूजा पद्धति भी ठीक वैसी ही है, जैसे सैकड़ों साल पहले थी। मंदिर में रथ और हथियों का वही महत्व, घरों के बाहर उसी तरह की अल्पनाएं उस राजसी वैभव के साथ स्थानीय लोक में प्रचलित विधि-विधानों के अद्भुत मेल को दर्शाती हैं। वास्तव में हम्पी का वर्तमान अपनी परंपरा और इतिहास के आकर्षण के साथ खड़ा है। प्राचीन नगर की भव्यता के दायरे के बाहर का वर्तमान उस धरोहर को संजोये रखने और उसे आकर्षक बनाए रखने के लिए बना हुआ है।

लुभावनी प्राकृतिक छटा

यहां संरचनाओं-पत्थरों के बाहर जो प्राकृतिक छटा छाई रहती है, वह अद्भुत है। उसे सुबह से लेकर शाम तक और दिन से लेकर रात तक कभी भी महसूस किया जा सकता है। यहां सूर्योदय इतना मोहक होता है कि मन कई सुबहों तक वहां बैठे रहने से भी न थके। हम्पी में कहीं से भी सूर्योदय को देखना रोचक ही रहता है, लेकिन अंजनाद्रि पर्वत से सूर्य को दूर क्षितिज से प्रकट होते देखना रोमांच से भरा होता है। उस ऊंचे स्थान तक पहुंचने के लिए सात सौ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, लेकिन उनकी बनावट ऐसी है कि जरा भी थकान महसूस नहीं होती।

अंजनाद्रि पर्वत से दिखता है विस्तार

मान्यताओं के अनुसार, अंजनाद्रि पर्वत हनुमान जी का जन्मस्थान माना जाता है। उस ऊंचाई से आप हम्पी का विस्तार देख सकते हैं। सुबह की स्निग्ध शांति में दूर-दूर तक फैली ग्रेनाइट की चट्टानों पर पड़ती सूरज की पहली किरण उन्हें सुनहरी शिलाओं में बादल देती है। पास में बहती तुंगभद्रा नदी, जो ऊंचाई से एक फीते के समान दिखती है, उसके पानी पर पडऩे वाली सुबह की किरणें पिघले सोने का रूप ले लेती हैं। वहां से सूर्य का नजारा जीवन में उसकी आवश्यक उपस्थिति को बार-बार रेखांकित करता है। आप सोचने लगेंगे कि सूरज हमारे वर्तमान का हिस्सा है, लेकिन वह तो उस समय भी यूं ही निकलता होगा। वह यह भी तो देखता होगा कि कैसे सुबह से कारीगर पत्थर के उन बड़े-बड़े टुकड़ों को जोड़कर किसी भव्य महल या छोटे से घर की शक्ल दे रहे होंगे। उन घरों और महलों के लोगों, वहां की स्ति्रयों और बच्चों ने भी यही सूर्य देखा होगा।मतांगा पर्वत पर सनसेट प्वॉइटं

यहां मतंगा पर्वत पर बेहद खूबसूरत सनसेट प्वाइंट है। यहां सूर्यास्त देखने वालों की भीड़ जुटी होती है। यहां से, सूरज शाम होते-होते आकाश में बंधी शहद की पोटली की तरह लगने लगता है। शहद की पोटली से चूता रस समूचे क्षितिज को रसीले एहसास में डुबोते हुए पसरता जाता है। सुबह से इतिहास के परिसर में टहलता पर्यटक दिन के इस तरह के अंत को देखकर पूर्णता के एहसास से भर जाता है।

तुंगभद्रा में घड़ियाल

तुंगभद्रा नदी की एक और विशेषता है वहां के उथले हिस्से में पाए जाने वाले घड़ियाल। नदी के छिछले भाग में कभी-कभी उन घडिय़ालों को देखा जा सकता है। घड़ियालों को देखने के लिए काफी धैर्य की आवश्यकता है। उसी हिस्से में प्रवासी और स्थानीय जलीय पक्षियों की भरमार रहती है।

साइकिल से शहर का दीदार

विस्तृत रूप से फैले इस ऐतिहासिक नगर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर चलकर जाना, इस भवन से उस भवन तक की पैदल यात्रा करना टेढ़ी खीर है। लेकिन साइकिल की सरल चाल में अपनी परंपरा से साक्षात्कार करने का आनंद अनूठा है। सौ रूपये प्रतिदिन के हिसाब से पर्यटक साइकिलें ले सकते हैं, जो होटलों के आसपास आसानी से उपलब्ध रहती हैं।

गोल-गोल घूमती नावें

हम्पी में आप हरागोलु तेप्पा यानी गोल आकृति की नावें देख सकते हैं। इन नावों का यह स्वरूप बड़ा ही रोचक होता है। इस तरह के नावों की एक विशेषता इनकी गोल-गोल घूमने की अदा है। थोड़ा पीछे जाएं तो अभिषेक बच्चन की एक फिल्म आई थी 'रावण'। उस फिल्म में अभिषेक बच्चन और ऐश्र्वर्या राय पर नदी के बीचोबीच इसी गोल नाव पर एक दृश्य फिल्माया गया था। तुंगभद्रा नदी में सुबह से शाम तक पर्यटकों को इस नाव की सवारी उपलब्ध करवाई जाती है। देश के अधिकांश हिस्सों में नावों का जो आकार होता है, उससे अलग ये टोकरीनुमा नावें एक नजर में ही अपनी ओर खींच लेती हैं। स्थानीय नाविक इसमें अधिकतम 6 से 8 लोगों को बिठाते हैं। अकेले भी इन नावों में नदी के सौंदर्य को निहारा जा सकता है। खास बात यह है कि इन हरागोलुओं का चलन हम्पी में विजयनगर साम्राज्य के दिनों से होता चला आ रहा है। शासन की पद्धति भले ही बदल गई, लोग बदल गए और निश्चित रूप से नावें भी बदलीं लेकिन जो नहीं बदला, वह है उन नावों का स्वरूप।

कैसे जाएं?

यहां हवाई मार्ग से, कार/बस और रेल से आप जा सकते हैं। नजदीकी एयरपोर्ट हुबली (कर्नाटक) है, जो हम्पी से 166 किलोमीटर दूर है। दूसरा एयरपोर्ट बेलगाम है, जो हम्पी से 270 किलोमीटर दूर है। एयरपोर्ट से यहां टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। यहां का सबसे करीबी रेलवे स्टेशन हॉस्पेट है, जो हम्पी से मात्र 13 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां बेंगलुरु, हैदराबाद और गोवा से नियमित ट्रेनें हैं। हम्पी जाना चाहते हैं तो आपको पहले कर्नाटक पहुंचना होगा। कर्नाटक के हर प्रमुख शहर से स्टेट रोड कॉर्पोरेशन की बसें हम्पी जाती हैं। हुबली शहर से हम्पी करीब 165 किलोमीटर दूर है। आप चाहें तो खुद ड्राइव करके भी जा सकते हैं।

कब आएं

सर्दी का मौसम यहां जाने के लिए सबसे मुफीद माना जाता है।


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