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मूर्तियों में जिंदा है कानुपर शहर का इतिहास

कानुपर शहर में इस समय 150 से अधिक महापुरुषों की मूर्तियां हैं। भारत माता से लेकर क्रांतिकारियों और समाज सुधारकों की प्रतिमाएं शहर का इतिहास आज भी कायम रखे हुए हैं।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Fri, 22 Mar 2019 04:56 PM (IST)Updated: Sat, 23 Mar 2019 08:00 AM (IST)
मूर्तियों में जिंदा है कानुपर शहर का इतिहास
मूर्तियों में जिंदा है कानुपर शहर का इतिहास

महापुरुषों की मूर्तियां हमेशा से प्रेरणा स्रोत रही हैं। किसी भी शहर का इतिहास वहां स्थापित महापुरुषों की मूर्तियों से परिलक्षित होता है। प्रथम स्वाधीनता संग्राम से लेकर आजादी तक कानपुर क्रांतिकारियों का प्रमुख केंद्र रहा है। इसी वजह से यहां उनसे जुड़ी यादों का एक लंबा इतिहास है। बिठूर जहां नाना साहब पेशवा, रानी लक्ष्मीबाई और तात्याटोपे जैसे योद्धाओं की कहानियां अपने में समेटे है, वहीं शहर में चंद्रशेखर आजाद और उनके क्रांतिकारी साथियों ने आजादी की मशाल जलाई थी। इसके अलावा आजादी के बाद जिन्होंने शहर के लिए कुछ किया, उनका इतिहास भी यह मूर्तियां संजोए हुए हैं। भले ही मौजूदा पीढ़ी कई महापुरुषों को भूल गई हो, लेकिन मूर्तियां इनके द्वारा किए गए कार्यो की हमेशा याद दिलाती रहेंगी।

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सबसे पुरानी मूर्तियां

शहर में सबसे पुरानी मूर्ति कौन सी है, इसके बारे में कोई स्पष्ट इतिहास नहीं है। बताया जाता है कि बिरहाना रोड स्थित भारत माता मंदिर में स्थापित भारत माता की मूर्ति सबसे पुरानी है। यह मूर्ति आजादी से पहले की है।

आजादी के बाद लगी मूर्तियां

आजादी के बाद बीसवीं सदी के 70वें दशक में शहर में मूर्तियां लगीं। डीएवी कॉलेज में स्थापित क्रांतिकारी शालिग्राम शुक्ला की मूर्ति वर्ष 1963 में स्थापित की गई। शालिग्राम शुक्ल अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के साथी थे और डीएवी कॉलेज में पढ़ते थे। वह आजाद द्वारा स्थापित हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के कानपुर चीफ थे। एक दिसंबर 1930 को चंद्रशेखर आजाद की रक्षा करते हुए वह शहीद हो गए। बड़ा चौराहे पर कोतवाली रोड के किनारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. मुरारी लाल की प्रतिमा है। 3 अप्रैल 1966 को इस प्रतिमा का अनावरण यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभान गुप्ता ने किया था।

छाए हैं चंद्रशेखर आजाद

अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का कानपुर से गहरा नाता रहा है। उनकी एक दर्जन प्रतिमाएं शहर में स्थापित हैं। हाल ही में चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्र्वविद्यालय में आजाद की विशालकाय प्रतिमा स्थापित हुई है। विवि में उनकी दो और प्रतिमाएं हैं। इसके अलावा गोल चौराहा, नवाबगंज, डीपीएस नवाबगंज, गोविंदनगर, सिरकी मोहाल, तेजाब मिल और दादा नगर में भी चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमाएं लगी हैं। बाब साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के बाद संख्या की दृष्टि से अगर किसी महापुरुष की प्रतिमा शहर में स्थापित है तो वह चंद्रशेखर आजाद ही हैं।

नानाराव पार्क से गायब नाना साहब की मूर्ति

फूलबाग स्थित नानाराव पार्क में तमाम महापुरुषों की प्रतिमाएं हैं। आश्चर्य यह है कि जिनके नाम पर पार्क है उन्हीं (नाना साहब) की प्रतिमा नहीं है। पार्क में तात्याटोपे, अजीजन बाई, झलकारी बाई, मणींद्र नाथ बनर्जी, मंगल पांडेय, शालिग्राम शुक्ला, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, डॉ. आंबेडकर की मूर्तियां स्थापित हैं। सभी मूर्तियों की स्थापना बीते 25 सालों में हुई। प्रतिमा स्थापना में पंडित बद्री नारायण तिवारी का अहम भूमिका रही।

इन महापुरुषों की भी हैं प्रतिमाएं

फूलबाग में महात्मा गांधी की प्रमुख प्रतिमा है। इसके अलावा जवाहर लाल नेहरू की सरसैया घाट व घंटाघर, इंदिरा गांधी की नरौना चौराहा व मेस्टन रोड और राजीव गांधी की मोतीझील के अंदर प्रतिमाएं हैं। स्वामी विवेकानंद की विशालकाय प्रतिमा भी मोतीझील में स्थापित है। मोतीझील के तुलसी उपवन में तुलसीदास के अलावा डॉ. कामिल बुल्के, पंडित राम किंकर उपाध्याय की प्रतिमाएं हैं। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में गणेश शंकर विद्यार्थी, विजय नगर चौराहे पर कवि भूषण, कंपनी बाग चौराहे पर डॉ. आंबेडकर की मूर्तियां हैं।

प्रथम स्वाधीनता संग्राम की याद दिलाता बिठूर

बिठूर में प्रवेश करते ही रानी लक्ष्मीबाई की आदमकद प्रतिमा स्थित है। इस प्रतिमा की स्थापना कानपुर विकास प्राधिकरण द्वारा वर्ष 2008 में की गई थी। इसके बाद तत्कालीन सरकार के सहयोग से नानाराव पार्क का सौंदर्यीकरण किया गया। नवंबर 2009 को नानाराव पार्क में नाना साहब पेशवा, तात्याटोपे, अजीमुल्ला खां और रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमाएं स्थापित कराई गई। इन प्रतिमाओं को देखकर सहज अंदाजा लगता है कि प्रथम स्वाधीनता संग्राम में बिठूर का प्रमुख योगदान रहा है।


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