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खट्टे का मजा हैदराबाद का 'खट्टा मुर्ग' से लेकर अवध की 'खट्टी मछली' तक

खटाई की विविधता किसी और वस्तु से कम नहीं। तो किस जगह खटाई का कौन सा रूप इस्तेमाल कर खाने का बनाया जाता है जायकेदार, जानना नहीं चाहेंगे?

By Priyanka SinghEdited By: Published: Fri, 03 Aug 2018 11:33 AM (IST)Updated: Sat, 04 Aug 2018 06:00 AM (IST)
खट्टे का मजा हैदराबाद का 'खट्टा मुर्ग' से लेकर अवध की 'खट्टी मछली' तक
खट्टे का मजा हैदराबाद का 'खट्टा मुर्ग' से लेकर अवध की 'खट्टी मछली' तक

अंगूर खट्टे हैं! कहकर अपनी राह चली जाने वाली लोमड़ी की अक्लमंदी पर हम बचपन से ही तरस खाते रहे हैं-शायद इसलिए कि हमें खुद खट्टी चीजें बहुत पसंद हैं। खासकर गरमी के मौसम में जब भूख कम लगती है तब जठराग्नि को भड़काने के लिए और कुछ नहीं तो चटनी ही काम आती है।

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पुष्पेश पंत

अपने देश में खटाई की विविधता किसी और वस्तु से कम नहीं। अमचूर तो आम है, मौसम में अमिया सोहती है। ज्यादातर लोग नींबू निचोड़कर ही संतुष्ट हो जाते हैं। पर क्या नींबू भी मात्र कागजी होते हैं? बंगालियों को गंधराज के बिना तसल्ली नहीं होती तो पहाडि़यों को जामिर नामक जंगली नींबू के बराबर कोई नींबू नजर नहीं आता। गलगल यानी बड़ा नींबू अचार में अपनी हल्की खटास के लिए पसंद किया जाता है। 

अविभाजित पंजाब हो या हिमाचल प्रदेश अथवा उत्तराखंड वाला भूभाग अनारदाना/दाड़िम की खटाई सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। अनारदाने का प्रयोग ताजा तथा सूखा दोनों तरीके से किया जाता है। नींबू या दाड़िम के रस को पकाकर चूख बनाया जाता है जिसकी चंद बूंदें ही काफी रहती हैं। दक्षिण भारत में सबसे लोकप्रिय खटाई है इमली, जिसे अरब सौदागरों ने नाम दिया था 'तम्र-ए-हिंद' यानि 'हिंदुस्तान का खजूर'। यही शब्द अंग्रेजी टैमेरिंड का मूल रूप है। हैदराबाद में चुगर की पत्ती तो आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना में जोंगुरा खटास की स्थानीय प्रतिष्ठा है।

तटवर्ती भारत में विशेषकर गुजरात, महाराष्ट्र, गोआ, कोंकण में कोकम का इस्तेमाल रंग, जायके के साथ-साथ अलग तरह की खटास के स्वाद का पुट भी देता है। गोआ में संभवत: पुर्तगालियों के असर से सिरका भी खटास के लिए काम लाया जाता है। अभी कच्चे-पके टमाटरों का जिक्र बाकी है। और दही की खटास का भी जो कढ़ी से लेकर जाने कितने शोरबों को जायकेदार बनाती है। कुछ ऐसे फल और बेरियां हैं जो बेहद खट्टे होते हैं परंतु आज लगभग लुप्तप्राय हैं- मसलन कमरख और लसौडा या करौंदा।

भारत के अलग अलग सूबों में अपने खट्टे व्यंजन हैं- हैदराबाद का 'खट्टा-मुर्ग' तो अवध की 'खट्टी मछली' जिससे टक्कर लेती है असम की 'टेंगा मास'। राजस्थान में कढ़ी जैसा 'खाटा' मशहूर है तो कश्मीर की वादी में पंडितों के शाकाहारी वाजवान में 'सूक वांगुन' खट्टे बैंगनों का मजा लिया जाता है। 

वैज्ञानिकों के अनुसार खट्टेपन के लिए किसी भी वस्तु में अम्ल का अंश होना चाहिए। नींबू में साइट्रिक एसिड होता है तो सिरके में एसिटिक एसिड। उनके अनुसार ये अम्ल मांस के रेशों को गलाने के काम आते हैं और बिना अधिक पकाए उसे स्वादिष्ट तथा पचने लायक बनाते हैं। यह अम्ल कुदरती संरक्षक भी हैं। फलों-सब्जियों का आनंद अचार के जरिए कभी भी लिया जा सकता है तो खटास के गुण गाएं और जब कोई दांत खट्टे करने की बात करे तो घबराएं नहीं! चीनी खानपान में 'हॉट एंड सॉर सूप' हो या 'स्वीट एंड सॉर व्यंजन', खटास ही इन्हें विशिष्ट बनाती है। ऐसा नहीं कि पश्चिम में खट्टे की कदर नहीं होती। सॉर क्रीम का जरा-सा पुट सामन जैसी मछलियों के रसास्वाद के लिए अनिवार्य समझा जाता है और कावियार जैसे बेहद महंगे मछली के अंडों को कागजी नींबू की एक पतली फांक के साथ पेश किया जाता है। 


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