Move to Jagran APP

इतिहास-कला प्रेमी हैं या घुमक्कड़ी मिजाज वाले, मध्य प्रदेश का यह शहर करता है हर किसी का स्वागत

मध्यप्रदेश का एक चमकता हुआ रत्न है महेश्वर। खरगौन जिले में स्थित यह शहर नैसर्गिक सुंदरता से सजे नर्मदा घाट किला और महेश्वर साड़ियों के लिए है मशहूर।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Thu, 06 Feb 2020 09:25 AM (IST)Updated: Thu, 06 Feb 2020 11:46 AM (IST)
इतिहास-कला प्रेमी हैं या घुमक्कड़ी मिजाज वाले, मध्य प्रदेश का यह शहर करता है हर किसी का स्वागत
इतिहास-कला प्रेमी हैं या घुमक्कड़ी मिजाज वाले, मध्य प्रदेश का यह शहर करता है हर किसी का स्वागत

जैसे-जैसे आप महेश्वर शहर के करीब आते जाएंगे, आप महसूस करेंगे कि विराट प्राचीनता व सांस्कृतिक गौरव को साथ लिए बहुत धीमे चलता है यह शहर। आज भले ही आधुनिक सुख-सुविधाओं ने छू लिया हो, लेकिन इसकी आत्मा अपनी गौरवपूर्ण प्राचीनता में सांस लेती है। 

loksabha election banner

वैभव का प्रतीक महेश्वर किला

मध्य प्रदेश में स्थापत्य कला की एक से बढ़कर एख बानगियां मिलती हैं। यहां इस कला के बेजोड़ नमूने उपस्थित हैं। इन्हीं में से एक महेश्वर का किला भी है। इसका द्वार दक्षिण मुखी है, जो नर्मदा नदी की ओर खुलता है। इसका मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर खुलता है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, इसे परमार राजाओं ने बनवाया था तो कुछ मानते हैं कि इसे चौथी और पांचवीं सदी में सुबांधु नामक शासक ने बनवाया। कुछ शोधकर्ता यह भी मानते हैं कि यह किला मौर्य काल का है। बहरहाल, लिखित इतिहास की मानें तो होल्कर शासक मल्हार रॉव ने इस किले पर साल 1733 में कब्जा किया और इसका पुनरुद्धार कराया। जब उनकी बहू अहिल्याबाई होल्कर ने साल 1967 में यहां की गद्दी संभाली तो इसे वह स्वरूप दिया, जिसे आज हम देख सकते हैं। किले की सीढ़ियां आपको देखने में सामान्य लग सकती हैं, पर इनमें कुछ सीढ़ियों पर नदी के बाढ़ की तारीख और वर्ष भी अंकित है। इससे पता चलता है कि कभी नर्मदा का जल स्तर सौ फीट तक चढ़ जाता था, जिसमें इस विशाल किले की सीढ़ियां डूब जाती थीं। देवी अहिल्याबाई शिवभक्त थीं। इसका प्रमाण मंदिरों के अलावा यहां घाटों पर भी देख सकते हैं, जहां बड़ी खूबसूरती से शिवलिंग बनाएं और सजाए गए हैं।

रानी का रजवाड़ा

महेश्वर किले में प्रवेश करने के बाद देवी अहिल्या बाई की विशाल भव्य मूर्ति आपका स्वागत करती नजर आती है। रजवाड़े के सुंदर-शांत परिसर में साधारण सी साड़ी और हाथ में शिवलिंग लिए यह सौम्य मूर्ति आपको देर तक रोके रखती है। आगे बढ़ने पर आप सामने देख सकते हैं मिट्टी, लकड़ी, चूने और ईंट से निर्मित एक विशाल भवन यानि रानी का रजवाड़ा, जो साधारण लगते हुए भी बेहद कलात्मक है। वहां बाहर ही आपकी नजर पालकी पर पड़ती है। रजवाड़े के अंदर अहिल्याबाई की राजगद्दी भी है। यह भवन दो मंजिला है। उपरी मंजिल का इस्तेमाल रहने के लिए किया जाता था और भूतल का उपयोग प्रशासनिक कार्यों के लिए किया जाता था। भूतल पर आज भी तलवार, भाले, पगड़ी, पालकी आदि को देखा जा सकता है। पर आज ऊपरी मंजिल को हेरिटेज होटल में बदल दिया गया है। एक तरह से पूरा रजवाड़ा आज भी अतीत का जीवंत गवाह है, जब रानी ने महेश्वर में शासन किया था।

कैसे पहुंचें

निकटतम हवाई अड्डा देवी अहिल्या बाई होल्कर एयरपोर्ट, इंदौर करीब 91 किलोमीटर दूर है। यहां आने के लिए बड़वाह (39 किमी) निकटमत रेलवे स्टेशन है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.