ब्रिटेन में भी फैली है भारतीय सभ्यता और संस्कृति की अनोखी खुशबू
जानकर आश्चर्य होगा लेकिन अगर आप ब्रिटेन आएंगे तो यहां रह रहे भारतवासी आज भी अपनी परंपराओं, यहां मनाएं जाने वाले त्योहारों और अपने खानपान को कायम रखे हुए हैं जो वाकई अद्भुत है।
न्यूयार्क और ब्रिटेन दोनों ही जगहें अपनी विशिष्ट ऐतिहासिकता के लिए जानी जातीं हैं। भारत और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की खुशबू इस कदर इन दोनों जगहों में रची-बसी थी कि हमें इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि हम भारत से बाहर हैं। जब मैं ब्रिटेन पहुंचा वहां रह रहे भारतवंशियों से मिला तो भारत और उसकी संस्कृति के प्रति ऐसा उत्साह और दिलचस्पी दिखाई दिया कि मुझे लगा कि पीढि़यों से यहां रह लोगों ने अपनी जड़ों को नहीं छोड़ा है। कहा भी कह गया है कि भाषा संस्कृति की वाहक होती है। भारत की भाषाओं का जादू भी आपको ब्रिटेन के कई शहरों में दिखाई देता है। ब्रिटेन की मेरी यात्रा का प्रयोजन हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार था। वहा पहुंचकर जब मैंने बर्मिंघम, एडनबर्ग, ऑक्सफोर्ड, नाटिंघम और लंदन के भारतीयों से बात की तो वे अपनी भाषा को लेकर काफी उत्साहित नजर आए। वे हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के लिए आगे बढ़कर खड़े होकने के लिए तैयार थे। ब्रिटेन में इसकी जमीन भारतीय मिशन, गैर प्रवासी भारतीयों, इस्कान, आर्ट ऑफ लिविंग, विपश्यना केंद्रों, बॉलीवुड संस्कृति और अन्य भारतीय समूहों तथा क्लबों ने भारतीय संस्कृति, त्योहारों, भारतीय खान-पान, नृत्य, योग, पुस्तकों और नाटकों आदि के जरिए तैयार की हुई है। इनके साथ जुड़कर ऐसा लग रहा था कि आप मिनी इंडिया में ही हैं। खानपान को लेकर भी हमें कोई दिक्कत नहीं हुई। ब्रिटेन में तो भारतीय करी बहुत लोकप्रिय है और हर तबके में आपको इसको खाने-वाले मिल जाएंगें।
हम तो यह देखकर हैरान रह गए कि ब्रिटेन में रहनेवाले भारतीय मूल के लोग खास अवसरों पर बिंदी, मेंहदी और शेरवानी पहनते हैं। एक विशेष आयोजन में इस तरह के पोशाक में मौजूद लोगों से बातचीत करने पर पचा चला कि वे इस तरह के पोशाक को बेहद पसंद करते हैं। यहां विश्र्वविद्यालयों की इंडियन सोसायटीज में भारतीय त्योहारों को बहुत धूमधाम से मनाया जाने लगा है। वहां मुझे पता चला कि आयरलैंड के ट्रिनिटी कॉलेज की इंडियन सोसायटी सबसे तेजी से बढ़ रही सोसायटी में से एक है। अभी कुछ साल पहले तक इस कॉलेज में दिवाली का त्योहार मनाने केवल 30 से 40 छात्र ही आते थे, लेकिन पिछली दिवाली से जुड़े एक समारोह में हॉल खचाखच भरा हुआ था और बाहर खड़े छात्र वहां घुसने की कोशिश कर रहे थे। मुझे यहां आकर यह लगा कि त्योहारों के समय भी अगर ब्रिटेन के शहरों में आते हैं, तो आप कुछ मिस नहीं करेंगे बल्कि एक नए तरीके से आपको भारतीय मूल के लोगों के साथ त्योहार मनाने में आनंद आएगा। अभी पिछले साल ही ब्रिटिश काउंसिल ने भारत-ब्रिटेन सांस्कृतिक आदान-प्रदान के 70 साल पूरे किए हैं। पिछला साल बहुत ही विलक्षण रहा जब ब्रिटिश काउंसिल ने भारत में बहुत सी सांस्कृतिक गतिविधियों और कार्यक्रमों का सफलतापूर्वक आयोजन किया। बर्मिंघम में संपद साउथ एशियन आर्ट्स ऐंड हेरिटेज द्वारा आयोजित मिलन समारोह में कला क्षेत्र के बहुत से लोगों और हमने क्षेत्र में भारतीय संस्कृति और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए कला संगठनों के साथ गैर पारंपरिक ढंग से साझेदारी करने के तरीकों पर चर्चा की।
अपनी यात्रा के दौरान हमनें हॉउस ऑफ कॉमन्स में प्रीत कौर गिल की गतिविधियों को भी देखा। उनसे मुलाक़ात के बाद भारतीय संस्कृति के प्रति एक नई उत्कंठा को महसूस किया जा सकता था। हमनें पाया कि लोग, खासकर से गैर-प्रवासी भारतीय समृद्ध भारतीय संस्कृति और भारतीयता का रुख कर रहे हैं। आप अगर इन देशों की यात्रा पर जाएं तो इन सब गतिविधियों का प्रभाव आप महसूस कर सकेंगे।हिंदी को लेकर भी खास तरह का अपनापन दिखाई दिया। जब मैं नाटिंघम में हुए वार्षिक हिंदी कवि सम्मेलन में शामिल होने के लिए पहुंचा तो वहां उपस्थिति और जोश देखकर अचंभित रह गया। इस तरह के समारोह विदेश में आपको देश की मिट्टी से जोड़े रखते हैं।
संदीप भूतोडि़या