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170 सालों से वीरान पड़ा है राजस्थान का शापित गांव कुलधरा, अब बन गया ऐतिहासिक पर्यटन स्थल

कुलधरा गांव घूमने आने वालों के मुताबिक उन्हें यहां हर पल ऐसा अनुभव होता है कि कोई आसपास चल रहा है.

By Pratima JaiswalEdited By: Published: Fri, 20 Apr 2018 04:51 PM (IST)Updated: Fri, 20 Apr 2018 04:52 PM (IST)
170 सालों से वीरान पड़ा है राजस्थान का शापित गांव कुलधरा, अब बन गया ऐतिहासिक पर्यटन स्थल
170 सालों से वीरान पड़ा है राजस्थान का शापित गांव कुलधरा, अब बन गया ऐतिहासिक पर्यटन स्थल

भारत की ऐसी कई ऐतिहासिक जगह हैं, जहां से कोई न कोई कहानी जुड़ी हुई है. इन कहानियों की क्या सच्चाई है. इस बारे में तो कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन इन कहानियों की सच्चाई जानने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं. ऐतिहासिक जगहों और ऑफ बीट जगहों पर घूमने-फिरने के लोग ऐसी जगहों को खूब पसंद करते हैं. आज हम आपको राजस्थान के ऐसे गांव के बारे में बताएंगे, जो 170 सालों से खाली पड़ा है.

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एक रात में खाली हो गया था गांव 

कुलधरा गांव के हजारों लोग एक ही रात मे इस गांव को खाली कर के चले गए थे. और जाते समय ये श्राप दे गए थे कि यहां फिर कभी कोई नहीं बस पायेगा. तब से गांव वीरान पड़ा हैं. कहा जाता है कि यह गांव रूहानी ताकतों के कब्जे में हैं, कभी एक हंसता खेलता यह गांव आज एक खंडहर में तब्दील हो चुका है.

इस गांव को माना जाता है शापित 

दुनियाभर में ऐसे कई स्थान है जिन्हें शापित माना जाता है. किसी श्राप के चलते अब यह या तो भुतहा है या फिर उजाड़ पड़े हैं. आइए जानते हैं कि भारत में कहां-कहां स्थित है ऐसे शापित स्थान जहां आज भी श्राप का असर कायम है. हालांकि, शापित होने का मतलब यह नहीं की यह स्थान बुरे हैं. यहां आज भी हजारों की तादाद में लोग जाते हैं.

ऐसे अनुभव होते हैं महसूस 

कुलधरा गांव घूमने आने वालों के मुताबिक उन्हें यहां हर पल ऐसा अनुभव होता है कि कोई आसपास चल रहा है. बाजार की चहल-पहल की आवाजें आती हैं, महिलाओं के बात करने, उनकी चूड़ियों और पायलों की आवाज हमेशा ही वहां के माहौल को भयावह बनाती है. प्रशासन ने इस गांव की सरहद पर एक फाटक बनवा दिया है जिसके पार दिन में तो सैलानी घूमने आते रहते हैं लेकिन रात में इस फाटक को पार करने की कोई हिम्मत नहीं करता हैं.

पालीवाल समुदाय के इस इलाके में चौरासी गांव थे

कुलधरा, जैसलमेर से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है. पालीवाल समुदाय के इस इलाके में चौरासी गांव थे और कुलधरा उनमें से एक था. पालीवाल समाज के लोगों ने सन 1291 में तकरीबन 600 घरों वाले इस गांव को बसाया था. ईंट-पत्थर से बने इस गांव की बनावट ऐसी थी कि यहां कभी गर्मी का अहसास नहीं होता था. कहते हैं कि इस कोण में घर बनाए गए थे कि हवाएं सीधे घर के भीतर होकर गुजरती थीं. कुलधरा के ये घर रेगिस्तान में भी वातानुकूलन का अहसास देते थे. इस जगह गर्मियों में तापमान 45 डिग्री रहता हैं. यहां पर गर्मी का असर बहुत कम होता है. 

 

कैसे पहुंचे 

जैसलमेर वायु, रेल और सड़क द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं. आप जैसलमेर पहुंचकर किसी टैक्सी या बस से कुलधरा पहुंच सकते हैं. जैसलमेर का सबसे निकतम एयरपोर्ट जोधपुर है, जो जैसलमेर से 300 किमी की दूरी पर है. यह हवाई अड्डा नियमित उड़ानें के द्वारा नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय  हवाई अड्डे से अच्छी तरह से जुड़ा है. यह कोलकाता, चेन्नई, मुंबई और बेंगलुरु जैसे प्रमुख भारतीय गंतव्यों के लिए दैनिक उड़ानों के द्वारा जुड़ा हुआ है. प्री-पेड टैक्सियां जोधपुर हवाई अड्डे से जैसलमेर के लिए उपलब्ध हैं. रेलवे जैसलमेर रेलवे स्टेशन कई गाड़ियों द्वारा जोधपुर और अन्य प्रमुख भारतीय शहरों से जुड़ा है. बस जैसलमेर के लिए डीलक्स और सेमी-डीलक्स बसें भी जयपुर, अजमेर, बीकानेर, और दिल्ली से उपलब्ध हैं. 


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