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राजस्थान की पिंक सिटी जितनी ही खास है ब्लू सिटी जोधपुर, जानें यहां का शाही अंदाज

अगर आपको राजस्थानी बंधेज, लहेरिया चुननी और साडि़यां खरीदनी हैं तो घंटाघर के पास ही कई बाजार हैं। त्रिपोलिया बाजार, मोती कटला बाजार, मोटी चौक से आप शॉपिंग कर सकते हैं।

By Pratima JaiswalEdited By: Published: Thu, 14 Jun 2018 04:18 PM (IST)Updated: Fri, 15 Jun 2018 06:00 AM (IST)
राजस्थान की पिंक सिटी जितनी ही खास है ब्लू सिटी जोधपुर, जानें यहां का शाही अंदाज
राजस्थान की पिंक सिटी जितनी ही खास है ब्लू सिटी जोधपुर, जानें यहां का शाही अंदाज

मेवाड़ के राजसी वैभव की छटा और थार के ग्राम्य जीवन की सुहानी झलक देखनी हो तो राजस्थान का दूसरे सबसे बड़े नगर जोधपुर आएं। नीले रंग वाले घरों, इमारतों से लिपटा यह नगर ब्लू सिटी के नाम से भी लोकप्रिय है। आज चलें जोधपुर के दिलकश सफर पर..

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अगर जयपुर की पहचान पिंक सिटी के रूप में है तो जोधपुर की पहचान ब्लू सिटी है। मेहरानगढ़ के ऊंचे शिखर से नीचे देखने पर ओल्ड सिटी के सारे घर नीले रंग के नजर आते हैं। यह खूबसूरत लैंडस्केप ऐसे ही नहीं बना है। इसके लिए जोधपुर का नगर निगम और ओल्ड सिटी में रहने वाली जनता का निरंतर प्रयास और कमिटमेंट है। मजाल है जो कोई अपने घर को किसी और रंग से पुतवा ले। यह लोगों का अपने नगर के प्रति बेइंतहा लगाव ही तो है कि जिसके चलते पूरी दुनिया में जोधपुर ब्लू सिटी के नाम से अपनी अलग पहचान रखता है। यह नगर तमाम रोचक किस्सों और अचरजों को अपने में समेटे हुए है।

मेहरानगढ़ है शाही पहचान

नीले घरों के सजीले आंचल के परे पीली जगमगाती रोशनियों में नहाई हुई भव्य इमारत का नाम है मेहरानगढ़ किला। जोधपुर की शाही पहचान माना जाने वाला यह एक प्राइवेट किला है, इसलिए इसका रखरखाव भी बहुत कायदे और करीने के साथ किया जाता है। यह भारत का पहला ऐसा किला है जिसके अंदर लिफ्ट जैसी आधुनिक सुविधा है। इसे जब ब्रिटिश लेखक रुडयार्ड किपलिंग ने देखा तो वे इसकी भव्यता से अचंभित रह गए। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि इस दुर्ग को इंसानों ने बनाया है। तब इस किले के लिए उन्होंने कहा था 'द वर्क ऑफ जाइयेंट्स' यानी ऐसा किला जो इतना विशाल है कि लगता है कि इसे इंसानों ने नही बल्कि दैत्यों ने बनाया हो।

राठौर राजवंश के प्रतापी सम्राट राव जोधा ने वर्ष 1438 में इस किले के निर्माण की नींव रखी। यह किला 400 फीट की उंचाई पर चिडिय़ाकूट पर्वत पर बना है। इसका नाम मेहरानगढ़ ऐसे ही नहीं पड़ा। मेहरानगढ़ का अर्थ होता है सूर्य का किला। राव जोधा ने इस किले को बनाया भी ऐसा ही कि सूर्य की पहली किरण से ही यह रोशनी से भर जाता है। इस किले को तसल्ली से देखने के लिए कम से कम आधा दिन चाहिए। किले में एक छोटा-सा बाजार है जहां से आप लहरिया दुपट्टे ,पगडिय़ां, राजस्थानी जूतियां और आभूषण खरीद सकते हैं। वहीं आगंतुकों के जलपान के लिए कई रेस्टोरेंट भी मौजूद हैं। यहां 7 दरवाजे हैं और हर दरवाज़ा यहां पर राज करने वाले राजाओं और उनकी वीरता को समर्पित है।

किले में कला दीर्घा

मेहरानगढ़ किले में कई नायाब कला-दीर्घाएं हैं जैसे एलिफेंट हावड़ा गैलरी, जिसमें राजपूत राजाओं द्वारा प्रयोग की जाने वाली गद्दिया-हावड़ा जिसे हाथी के ऊपर रखा जाता था, का संकलन मौजूद है। वहीं राजकुल की महिलाओं द्वारा प्रयोग की जाने वाली पालकियों को भी एक दीर्घा मे दर्शन के लिए संजो कर रखा गया है। ऐसे ही एक दीर्घा है दौलतखाना, जिसमें राजपूत कुल की कुछ बेहद नायाब वस्तुओं का संकलन मौजूद है। एक दीर्घा में राज कुंवरों के पालने संजोए गए हैं तो एक दीर्घा राजपरिवार के पहनावे को दिखाती है। एक दीर्घा मे अस्त्र-शस्त्र का भंडार है तो एक दीर्घा हस्तशिल्प का संकलन प्रस्तुत करती है। यहां की नक्काशी और पेंटिंग्स दर्शनीय हैं।

जसवंत थडा

मेहरानगढ़ किले के नजदीक ही एक नयनाभिराम सफेद रंग की संरचना नजर आती है जिसका नाम जसवंत थडा है। इसका निर्माण महाराजा सरदार सिंह ने अपने स्वर्गवासी पिता महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय की याद में करवाया था। धवल संगमरमर से बना यह स्मारक समर्पित है उस राजा को जिसने मेवाड़ की भूमि के लिए अनेक कार्य किए। राज्य की आर्थिक-सामाजिक उन्नति के लिए प्रतिबद्ध राजा जसवंत यहां के लोकप्रिय शासक थे। मेवाड़ में ट्रेन चलाने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है।

ग्राम्य जीवन की सुहानी झलकियां

जोधपुर के शाही आकर्षणों के अलावा एक और अनोखा आकर्षण है यहां का ग्रामीण आंचल। कहते हैं जहां जोधपुर शाही परिवार वैभव का गढ़ था, वहीं मेवाड़ की राजशाही का मजबूत आधार यहां की लोक संस्कृति थी, जिसके कद्रदान यहां के राजा भी हुए। इसीलिए जोधपुर के महाराजाओं ने अपने राज्य की असली संस्कृति को दिखाने के लिए 'विलेज सफारी' की नींव रखी। रॉयल फैमिली का आंखों को चौंधिया देने वाला वैभव और जोधपुर से सटे गांवों में फैला सादगी से भरा हुआ ग्राम्य जीवन एक ऐसा मेल है, जो दुनिया में शायद कहीं और देखने को नहीं मिलता।

इन अनोखे गांवों को देखने के लिए आधा दिन तो होना ही चाहिए। जोधपुर से सटा बिश्नोइयों का गांव है, जहां एक अनोखी परंपरा से आप रूबरू होंगे। इस परंपरा का नाम है अफीम परंपरा। ठेठ गांव के भीतर एक घर में आपके सम्मान में अफीम अनुष्ठान आयोजित किया जाता है। यह इस गांव की अति प्राचीन परंपरा है, जिसे आज भी इन लोगों ने जीवित रखा है। यहां आपको बड़ी आसानी से अफीम चखने को मिल सकती है।

इसके अलावा यहां कुम्हारों का गांव है जहां आप पॉटरी मेकिंग में भी अपने हाथ आजमा सकते हैं। साथ ही है सलवास विलेज, जो बुनकरों का गांव है। यह पूरी दुनिया में अपने बनाए हुए रग्स और दरियों के लिए मशहूर है। यहां पर लघु उद्दोग लगा कर बुनकर बहुत ही नफीस किस्म के रग्स और दरियां बनाते हैं।

उम्मेद भवन पैलेस

जोधपुर में पाई जाने वाली सभी ऐतिहासिक इमारतों मे से उम्मेद भवन पैलेस सबसे नवीन संरचना है। इसका निर्माण सन् 1929 में हुआ था। कहते हैं यहां एक भीषण अकाल आया था और पूरा मेवाड़ अकाल की चपेट में आ गया था। आम लोग भूख से बेहाल थे। कोई कामकाज नहीं था। ऐसे में मेवाड़ के महाराजा उम्मेद सिंह जी ने अपनी प्रिय प्रजा की रक्षा के लिए इस पैलेस का निर्माण कार्य शुरू करवाया ताकि लोगों को रोजगार मिल सके। यह पैलेस आज भी राजपरिवार का निवास स्थान है। इस पैलेस का डिजाइन मशहूर ब्रिटिश आर्किटेक्ट लैनचेस्टर ने तैयार किया था। आज भी यह पैलेस इंडो-सेरेसेनिक, क्लासिकल रिवाइवल और वेस्टर्न आर्ट डेको स्टाइल्स स्थापत्य कला का अद्वितीय नमूना है, जो पूरे भारत में अनोखा है।

पैलेस में एक शानदार म्यूजियम है, जिसमें राजपरिवार की कुछ दुर्लभ चीज़ें लोगों के दर्शन के लिए रखी गई हैं। पैलेस का एक हिस्सा संग्रहालय दूसरा हिस्सा महाराजा का निवास और तीसरा हिस्सा ताज होटल के पास है। यहां विंटेज कारों का एक शानदार संग्रहालय भी मौजूद है।

 

यह घंटाघर खास है

जोधपुर ऐसी जगह है, जहां आपको दूर से ही घंटाघर नजऱ आ जाएगा। इसके चारों ओर एक भरापूरा व्यस्त बाजार है। इस क्लॉक टावर यानी घंटाघर का निर्माण महाराजा सरदार सिंह ने करवाया था। उन्हीं के नाम पर इस मार्केट का नाम पड़ा। आज इस संरचना के प्रथम तल पर नगर निगम का एक कार्यालय है। अगर आप उनसे अनुरोध करेंगे तो वे इसे ऊपर से देखने की इजाजत भी दे देते हैं। इसमें लगी घड़ी की खास बात यह है कि जो घड़ी यहां फिट है वैसी ही घड़ी लंदन के क्लॉक टॉवर बिग-बेन में लगी हुई है।

चामुंडा माताजी मंदिर

राव जोधा जी चामुंडा माताजी के अनन्य भक्त थे। जब मेहरानगढ़ किला बना तो चामुंडा माताजी की मूर्ति को यहां लाया गया। तभी से किले के एक सिरे पर चामुंडा माताजी का मंदिर है। यह इस राजपरिवार की कुलदेवी भी हैं। जोधपुर के समस्त निवासी आज भी यहां प्रतिदिन पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। कहते हैं चामुंडा माता ही इस दुर्ग की रक्षा करती हैं।

गुलाब सागर झील

नगर में एक छोटी झील भी है, जिसका नाम गुलाब सागर है। स्थानीय लोग अक्सर इसके किनारे कुछ छोटे-मोटे आयोजन करते हैं। यहां से मेहरानगढ़ किला बहुत खूबसूरत नजर आता है। इस झील का निर्माण महाराजा विजय सिंह ने सन् 1788 में करवाया था। इसे वाटर-रिजर्व के रूप में बनाया गया था, जिसे बनाने में 8 साल लगे थे।

प्रकृति के संरक्षक : बिश्नोई समाज

जोधपुर का नाम आते ही अगर किसी समुदाय का नाम सबसे पहले लिया जाता है तो वो है बिश्नोई समाज। इस समाज के लोग गुरु जंभेश्र्वर के मानने वाले हैं। इनका प्रकृति प्रेम किसी से छुपा नहीं है। अगर कहें की ये लोग सही अथरें में प्रकृति के रक्षक हैं तो गलत नहीं होगा। बिश्नोई समाज के लोग खेजड़ी के पेड़ और चिंकारा हिरण की रक्षा अपनी जान से भी ज्यादा करते हैं। यहां इससे जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। खेजड़ली गांव के निवासी भैरो सिंह बताते हैं कि, 'खेजड़ली गांव के निवासियों का संबंध बिश्नोई संप्रदाय से है, जो कि गुरु जंभेश्र्वर के अनुयायी हैं। गुरु की शिक्षा के अनुसार हरे पेड़ को काटना और पशुओं को मारना वर्जित है, इसका पालन पूरा बिश्नोई समाज करता है।' बिश्नोई समाज हिंदू धर्म का एकमात्र ऐसा समाज है, जो कि मरने के बाद किसी व्यक्ति की चिता नहीं जलाता, बल्कि जमीन में दफनाता है।

 

वैभवकालीन दौर की खामोश गवाह

जोधपुर शहर से थोड़ा बाहर निकालने पर बहुत ही खूबसूरत संरचनाएं देखने को मिलती हैं, जिन्हें छतरियां कहा जाता है। ये छतरियां राजपरिवार के लोगों की समाधियां हैं। हाइवे के नजदीक बनी ये छतरियां खामोशी से उस वैभवकलीन दौर की गवाही देती हैं जो कभी मेवाड़ पर राज करता था। अगर आप इस संरचना को देखने जाएं तो दोपहर बाद जाएं। यह सूर्यास्त के समय बहुत खूबसूरत नजऱ आती है।

राजस्थानी हैंडीक्राफ्ट का गढ़

अगर आपको राजस्थानी बंधेज, लहेरिया चुननी और साडि़यां खरीदनी हैं तो घंटाघर के पास ही कई बाजार हैं। त्रिपोलिया बाजार, मोती कटला बाजार, मोटी चौक से आप शॉपिंग कर सकते हैं। अगर आप यहां से राजस्थानी जूतियां खरीदना चाहते हैं तो नई सड़क या फिर मोजड़ी बाजार से खरीद सकते हैं। अगर आपको राजस्थान का एंटीक फर्नीचर पसंद है तो आप सही जगह पर पहुंच गए हैं। दरअसल, जोधपुर पूरी दुनिया को शीशम की मजबूत लकड़ी से बना एंटीक फर्नीचर एक्सपोर्ट करता है। इसके लिए आप किसी राजस्थानी एम्पोरियम में जा सकते हैं और अगर अच्छी-खासी सेविंग करना चाहते हैं तो फिर ओल्ड सिटी से थोड़ा दूर बाड़मेर रोड पर इंडसक्त्राफ्ट पहुंच जाएं, जो एक एक्सपोर्ट हाउस है। राजसी आन-बान-शान वाले फर्नीचर की पूरी रेंज यहां देखने को मिल जाएगी। अगर आपको राजस्थानी हैंडीक्त्राफ्ट्स पसंद हैं तो जोधपुर से अच्छी जगह कोई हो ही नही सकती शॉपिंग के लिए। जोधपुर में एक से बढ़कर एक मार्केट है शॉपिंग करने के लिए। सबसे अच्छी बात यह है कि ये मार्केट आसपास ही हैं।


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